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Friday, April 18, 2008

आश्वासन


मन्त्रीजी स्वर्ग सिधारे
( नरक के बदले )
शायद चित्रगुप्त की भूल
या खिलाया
कम्प्यूटर ने गुल

नकली दया दिखाई थी
वो गई असल के खाते में
रिश्वत खाई वो पैसा गया
दान के एकाउन्ट में

हाय ! कर्मों का लेखा आया
कुछ ऐसे स्वरुप में
घपला ये हुआ कि
मन्त्री की छवि उभरी
सन्त के रूप में

अंधे के हाथ बटेर !
देखा, स्वर्ग में खुले आम
सोमरस बांटती सुन्दरी का नर्तन
वे कह न पाये इसे
पाश्चात्य संस्कृति का वर्तन

गंधर्व, किन्नर सब आये और गये
नहीं लगे अपने से
साकी और जाम
सब लगे सपने से

इच्छा हुई अपना झन्डा गाड़ने की
हूक हुई अब उन्हे भाषण झाड़ने की
अमीर ! गरीब !
पर शब्द हुये विलिन
न कोई अमीर था न कोई गरीब
हिम्मत कर बोले मन्दिर… मस्जिद…
पर सब अर्थहीन

जिबान बन्द रही
बैठे रहे मन मार
मानो काया पर हो रहा
छुरे भालों का प्रहार

अब लाइसेन्स, रिश्वत, घोटाला
सब गया
मानो गरम गरम तेल की
कड़ाही में शरीर झुलस गया

दो यमदूत और चित्रगुप्त अचानक दिखे
मन्त्रीजी उन पर ही बरस पड़े
“ऐसा होता है क्या स्वर्ग ?
नरक से भी बदतर !”

चित्रगुप्त ने जवाब दिया
हँसते हुये -
“कैसा स्वर्ग मत्रींजी ! याद कीजिये आपने
देश के गद्दारो के साथ
पकाई खिचड़ी
आपको तो कुम्भीपाक में पकाया जायगा
आपने जनता से किये थे झूठे वादे
दिये थे आश्वासन
बदले मे यह नरक - स्वर्ग से उल्टा
स्वर्ग का शिर्षासन है
और ये मेनका-उर्वशी की छवियां
स्वर्ग का आश्वासन है ।

- हरिहर झा

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Chandan Kumar Jha का कहना है कि -

इच्छा हुई अपना झन्डा गाड़ने की
हूक हुई अब उन्हे भाषण झाड़ने की
अमीर ! गरीब !
पर शब्द हुये विलिन
न कोई अमीर था न कोई गरीब
हिम्मत कर बोले मन्दिर… मस्जिद…
पर सब अर्थहीन

बहुत अच्छा व्यंग किया है आप ने!

Alpana Verma का कहना है कि -

अच्छा व्यंग्य किया है व्यवस्था पर.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

अंधे के हाथ बटेर !
देखा, स्वर्ग में खुले आम
सोमरस बांटती सुन्दरी का नर्तन
वे कह न पाये इसे
पाश्चात्य संस्कृति का वर्तन

एक अच्छा व्यंग किया है आपने अपनी इस रचना में ..अच्छा लिखा है हरिहर जी !!

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

हा हा हा.. बहुत बढिया..

जैसे को तैसा -

बदले मे यह नरक - स्वर्ग से उल्टा
स्वर्ग का शिर्षासन है
और ये मेनका-उर्वशी की छवियां
स्वर्ग का आश्वासन है ।

अच्छा व्यग्य है श्रीमान..
बहुत बहुत बधाई

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

एक मजेदार व्यंग है |
अच्छा लिखा है |

अवनीश तिवारी

Anonymous का कहना है कि -

बहुत खूब,बहुत ही बेहतरीन व्यंग,मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"

mehek का कहना है कि -

:):):);)बहुत खूब बधाई

विश्व दीपक का कहना है कि -

वाह!!!!!

तगड़ा व्यंग्य है। इस रचना की खासियत यह है कि व्यंग्य क्लाईमेक्स में जाकर अपना रंग दिखाता है। मेरे अनुसार व्यंग्य उसी को कहते हैं जो आपको जड़ से उठाकर पटक दे और आपको पता हीं न चले कि वार किधर से हुआ था। इस मामले में आप सफल हुए हैं।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

seema sachdeva का कहना है कि -

आपकी व्यंग्यात्मक कविता बहुत अच्छी लगी

Anonymous का कहना है कि -

क्या खूब व्यंग्य किया है हरिहर जी !!! अंत की पंक्तियों से शीर्षक सार्थक व्यंग्य करता है , बहुत ही अच्छा लिखा है , बधाई

^^पूजा अनिल

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