कौन हो तुम…
बता दो……
मैं जानना चाहती हूँ
आकर्षण की डोरी
क्यों फेंक रहे हो?
मैं इसमें बँधती जा रही हूँ
बहुत कुलबुला रही हूँ
सम्मोहन का जाल
क्यों बुन रहे हो?
ये मुझे कसता जा रहा है
मैं इसमें कसमसा रही हूँ
प्रेम की मदिरा
क्यों बहा रहे हो
ये मुझे मदहोश कर रही है
मैं इसमें डूबती जा रही हूँ
तुम्हारे सम्मोहन ने मुझे
परवश कर दिया है
दीन और कातर बना दिया है
मैं अपनी सुध-बुध
अपने होशोहवास
सब खो बैठी हूँ
तुम्हारे ही ध्यान में
हर पल डूबी रहती हूँ
तुम ये प्रेम की बीन
क्यों बजा रहे हो?
इसपर मैं थिरकती जा रही हूँ
इस थिरकन में आनन्द तो है
पर दर्द की लहरों के साथ
जो मुझे पल भर भी
चैन से जीने नहीं देता
ऐ दोस्त
मुझे इतना ना सताओ
मेरी दशा पर
कुछ तो तरस खाओ
सम्मोहन का गीत
अब ना सुनाओ
जहाँ से आए हो
वहीं लौट जाओ
बता दो……
मैं जानना चाहती हूँ
आकर्षण की डोरी
क्यों फेंक रहे हो?
मैं इसमें बँधती जा रही हूँ
बहुत कुलबुला रही हूँ
सम्मोहन का जाल
क्यों बुन रहे हो?
ये मुझे कसता जा रहा है
मैं इसमें कसमसा रही हूँ
प्रेम की मदिरा
क्यों बहा रहे हो
ये मुझे मदहोश कर रही है
मैं इसमें डूबती जा रही हूँ
तुम्हारे सम्मोहन ने मुझे
परवश कर दिया है
दीन और कातर बना दिया है
मैं अपनी सुध-बुध
अपने होशोहवास
सब खो बैठी हूँ
तुम्हारे ही ध्यान में
हर पल डूबी रहती हूँ
तुम ये प्रेम की बीन
क्यों बजा रहे हो?
इसपर मैं थिरकती जा रही हूँ
इस थिरकन में आनन्द तो है
पर दर्द की लहरों के साथ
जो मुझे पल भर भी
चैन से जीने नहीं देता
ऐ दोस्त
मुझे इतना ना सताओ
मेरी दशा पर
कुछ तो तरस खाओ
सम्मोहन का गीत
अब ना सुनाओ
जहाँ से आए हो
वहीं लौट जाओ
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
तुम ये प्रेम की बीन
क्यों बजा रहे हो?
इसपर मैं थिरकती जा रही हूँ
इस थिरकन में आनन्द तो है
पर दर्द की लहरों के साथ
जो मुझे पल भर भी
चैन से जीने नहीं देता
वाह शोभाजी आपने सुन्दर रूप से भावों को
शब्दों में ढाला है
कविता के भाव प्रबल हैं परंतु आपकी पूर्व रचनाओं की तुलना में कमतर प्रतीत हो रही है..
बहुत अच्छा लिखा है आप ने.
अच्छा है पर बिल्कुल सामान्य सी लगी |
-- अवनीश तिवारी
शोभा जी,
कथ्य सुंदर है परंतु कहने का तरीका आपकी अन्य कविताओं की तुलना में बेहद कमतर है।
मुझे लगा कि आपने अकारण हीं "कुलबुला रही हूँ,कसमसा रही हूँ , ना सताओ,तरस खाओ" जैसे शब्दों पर बल दिया है। इनसे बचा जाता तो ज्यादा अच्छा होता।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
bahut sundar,komal bhav ki prastuti hai,ek baat kahe is bhav ko ek nari man shayad achhi tarah se jaan samjh sakta hai,hai na.
कुछ नया नही लगा फ़िर भी आपकी कविता पढ़कर "महादेवी वर्मा " जी की एक कविता याद आ गयी "कौन तुम मेरे ह्रदय मे....?"
सभी पा़ठकों का धन्यवाद। रचना पढ़ते समय सबकी अपनी मनः स्थिति होती है और लिखते समय कवि की अपनी। अतः इसमें कोई विवाद नहीं ।
तनहाँ जी,
कविता लिखते समय भाव प्रधान होते हैं और हृदय से सहज रूप में शब्द आते हैं । उनको अकारण दुरूह बनाना मुझे नहीं भाता। यह कविता एक आवेग है और उसमें भाषा को सप्रयास दुरूह करना मुझे रूचिकर नहीं।
शोभा जी!
मैं भी मानता हूँ कि रचना में भाव की प्रधानता होती है,इसीलिए अकारण का दुरूहीकरण मुझे भी नहीं भाता। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि शिल्प और शब्दों का कुछ भी महत्व नहीं होता। तब तो कविता और कहानी में कोई भी अंतर नहीं रह जाएगा।
मैंने ऎसा तो नहीं कहा था कि शब्द बदल दें। मेरा कहना था कि "अगर आपको तुकबंदी भाती है तो उसके लिए सही शब्द चुनें....."कुलबुलाना, कसमासाना....जैसे शब्द तुकबंदी के लिए तो ठीक हैं लेकिन भाव बिगाड़ रहे हैं......"। तुकबंदी तो "खाना-जाना-पाना" भी है...लेकिन इनका सार्थक प्रयोग हो तभी अच्छे लगते हैं।
अगर मेरी बात बुरी लगी हो....तो क्षमा कीजिएगा।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
यह कविता आप की बाकी कविताओं की तुलना में कम लगी.
यह चित्र भी कविता के साथ बहुत नहीं जम रहा.
सम्मोहन का गीत
अब ना सुनाओ
जहाँ से आए हो
वहीं लौट जाओ
अच्छी कविता शोभा जी ..
शोभा जी, अपने मन के भावों को सुंदर रूप दिया है आपने , बधाई
^^पूजा अनिल
शोभा जी,प्यास पुरी न हो सकी,
आलोक सिंह "साहिल"
शोभा जी और हिंदी युग्म को बधाई
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