पति.... उसके लिए
ठीक वैसे ही है
जैसे किसी ढ़ाबे वाले के लिए
उसका परिवार और
ढ़ाबे का बचा खाना
जिस दिन उसे
कोई ग्राहक नहीं मिलता
वह सोती है
अपने पति के साथ
अपने पति की
प्यास बुझाने में
हर बार उसे
अलग-से एहसास होते
कई बार बेग़ार का मलाल
कई बार कल की चिन्ता
कई बार पैसे की कमी
कई बार गुस्सा...कई बार जरुरत...
कई बार........न जाने क्या-क्या...
...लेकिन प्यार....
शायद कभी...शायद कभी नहीं !
इन तमाम उतार-चढ़ाव में
उसने कई बार
खुद को समझने का...
खुद के खुद जैसे होने का...
खुद का औरों से अलग होने के
कारण तलाशने की
कोशिश की
और हर बार
उसे पूरी दुनिया ही
अपनी तरह बाज़ार में
खड़ी-बिकती-सोती नज़र आई
फिर उसने तो
बेजरुरत भी कइयों को
शमशेरों की तपिश
चूसते देखा है
और उनके पतियों को
अपने जैसियों के साथ सोते
उसे कोई मलाल नहीं...
उसे कोई मलाल नहीं होता
क्योंकि....हर दिन
एक नए रूप में
ढ़ल जाने की कोशिश
उसकी ज़िन्दगी का जरिया है
जैसे वह जरिया है..
...अपनी ज़िन्दगी का !
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
एक कटु सत्य को निर्भयता से कहने के लिए बधाई |
क्या साहित्य से आगे निकल कर इस तरह के विवशता को हटाने के लिए प्रयास करे ?
-- अवनीश तिवारी
आपने सामाजिक कटु सत्य या फ़िर किसी की मजबूरी को सीधे -सादे शब्दों मे व्यक्त कर दिया
बिल्कुल सही है अवनीश जी, यही कोशिश होनी चाहिए, दरअसल कविता का मकसद भी यही है, कि किसी मे इस तरह का जज्बा जगे, और अभिषेक की कविता उस मकसद में कमियाब रही है
वेश्या जीवन की कशमकश का यथार्थ चित्रण.
अच्छी रचना.. अवनीश जी का प्रश्न सोचनीय.
अभिषेक जी , अगर किसी स्त्री के पास पति है तो वो वेश्या क्यों बनेगी? यह बात मेरी समझ नहीं आई!!!
^^पूजा अनिल
अभिषेक जी,बहुत ही करारा बाण चलाया है,अद्भुत
आलोक सिंह "साहिल"
बड़ी अजीब सी बात है हम एक सुख के लिए ,एक प्यास लिए वेश्या तक पहुँचते हैं और एक कविता पढ़ना इसी विषय पर कहीं न कहीं मेरी कोई प्यास शांत कर रहा है |हाँ ये प्यास ग़लत नही शायद ....| एक वेश्या ने कितनी ही प्यास शांत कर दी ,लिखने वाले कि पढने वाले की, किस्सी के पति की , वेश्या के पति की ....
वेश्यावृति जो की दुनिया का सबसे पुराना व्यवसाय है कहीं न कहीं समाज की जरूरतों को पूरा कर रहा है तभी आज तक ये समाज में उपस्थित है | ये कविता एक बेहद ही दर्दनाक सत्य को उजागर करती है | मुझे नही लगता कि हम साहित्य से हटकर कोई भी ऐसा प्रयास कर सकते हैं जो इस विवशता को हटा सके | नग्न सत्य के बेबाक चित्रण के लिए अभिषेक जी को बधाई|
“?अगर किसी स्त्री के पास पति है तो वो वेश्या क्यों बनेगी? यह बात मेरी समझ नहीं आई!!!”
पूजा अनिल जी , किस्सी के पास पति है इसका बिल्कुल मतलब नही वो वेश्या नही हो सकती|
वैसे भी ज्यदा तर वेश्या कोई बनता नही बहुत सारी स्थितियां ,परिथिथियाँ मजबूर कर देती हैं और बना देती हैं शायद येही जवाब होगा अभिषेक जी का भी , इस कविता के परिप्रेक्ष्य में ...मेरे ख्याल से ...
दिव्य प्रकाश
क्योंकि....हर दिन
एक नए रूप में
ढ़ल जाने की कोशिश
उसकी ज़िन्दगी का जरिया है
अभिषेक जी, वैश्या के जीवन में
कुछ अछुते विचारों को कविता में
प्रकाश में लाने की कोशिश! बधाई
अभिषेक जी!
आपने परदे के पीछे की कहानी बताई है, जिससे बाकी लोग बचकर निकल जाना चाहते हैं। आपकी इस हिम्मत के लिए आपको दाद देता हूँ।
कविता हर मामले में सफल है। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक’तन्हा’
Bold poem well written
आपने कई समय से समाज मेँ चल रहे कटु सत्य को लिखा। हमें ऐसे शब्द को नब्ट करना होगा।
लूणाराम पंवार पत्रकार
ईटीवी राजस्थान सांचौर
MO.9166487063
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