प्रतियोगिता की तीसरी कविता के रचनाकार शीर्ष १० में पहली बार स्थान बनाये हैं। विश्व पुस्तक मेला के बाद प्रत्येक सप्ताह हमें इनकी एक कविता प्राप्त हो ही जाती है। मूलरूप से झारखंड के रहने वाले कवि नागेन्द्र पिछले २० वर्षों से दिल्ली मे हैं और यहीं एक सीनियर सेकेन्डरी स्कूल गणित का अध्यापन कार्य कर रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- माटी की खुशबू
वो माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
जिसपर न्यौछावर है सारी खुदाई
वो नदिया का पानी वनों की रवानी
नहीं भूल पाया हूँ कोई निशानी
वो बागों के झूले वो उठते बगूले
वो गलियाँ पुरानी वो जलते से चूल्हे
वो गेहूँ की बाली भरी थी या खाली
सभी को पता था सभी थे सवाली
न दिखती है सरसों न दिखती है राई
वो माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
लड़कपन में लड़ती वो लड़कों की टोली
वो फागुन की अपनी सी हुड़दंग होली
वो सावन का आना नदी में नहाना
वो पूजा का मौसम गया क्यों ज़माना
वो मक्के की बाली वो स्वाद निराली
वो गन्ने की खेती वो मीठी सी गाली
वो प्यारी सी दुनिया हुई क्यों पराई
वो माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
कहाँ आ गया मैं कहर ढा गया मैं
कैसी ये बस्ती शहर आ गया मैं
नहीं कोई सुनता सभी भागते हैं
किसकी कहूँ मैं सभी आँकते हैं
कभी माँगते हैं वे पहचान मेरी
कभी जाँचते हैं वे छोटी सी गठरी
समझ पाऊँ मैं न करूँ क्या गुसाईं
वो माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
नहीं लोभ करना मुझे रास आया
मगर पीछा करती है जैसे हो छाया
सुबह से सड़क पर चलूँ मैं अनाड़ी
जहाँ जाती नज़रें दिखे गाड़ी गाड़ी
अगर जानता जो ये माया की नगरी
बड़ी बेशरम जिसने निंदिया चुराई
नःईं माँगता मन से दु:सह ज़ुदाई
वो माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
वो माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- २, ७॰१, ८, ६॰४
औसत अंक- ५॰८७५
स्थान- ग्यारहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰५, ६॰५, ७॰५, ५॰८७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰३४३७५
स्थान- तृतीय
पुरस्कार- ज्योतिषाचार्य उपेन्द्र दत्त शर्मा की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'एक लेखनी के सात रंग' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
याद दिला दिया अपना गाँव |
सुंदर |
अवनीश तिवारी
डा. रमा द्विवेदीsaid...
गांव का बहुत सुन्दर और सजीव चित्रण किया है आपने....बहुत बहुत मुबारकवाद...
बहुत बडिया nagender ji
लड़कपन में लड़ती वो लड़कों की टोली
वो फागुन की अपनी सी हुड़दंग होली
वो सावन का आना नदी में नहाना
वो पूजा का मौसम गया क्यों ज़माना
वो मक्के की बाली वो स्वाद निराली
बधाई
बहुत सुंदर बधाई
वो माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
जिसपर न्यौछावर है सारी खुदाई
ओये नागेन्द्र जी,कमाल कर दिया आपने तो,घर की याद आ गई.बधाई हो सर जी
आलोक सिंह "साहिल"
वो माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
जिसपर न्यौछावर है सारी खुदाई
नागेन्द्र जी रचना का प्रवाह और आपका शब्द चयन भाव को पूरी तरह से संप्रेषित करने में सफल है। कविता में कहरे उतर कोई भी उस टीस को महसूस कर सकता है जो आपकी रचना का मर्म है। बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
आपकी कविता बहुत अच्छी है मैं दिल से आपकी कविता के प्रवाह की ही नही समस्त विषय वस्तु की तारीफ़ करता हूँ परन्तु मुझे बहुत दुःख होता है जब किसी कविता का प्रवाह एक दो पंक्तियों मे टूटता है न जाने क्यों हिन्दी कवि सोचते हैं कि हिन्दी कविता मे ये चलता है
गजल मे पूरा अनुशाशन हो सकता है तो हिन्दी कविता मे क्यों नही आख़िर छंद तो छंद ही है चाहे वो हिन्दी हो या फारसी . खैर आपने हिम्मत तो की इतनी बढ़िया लय के साथ आने की . आपकी कविता के प्रहाव के साथ "वो कागज़ की कश्ती " की पंक्तियाँ याद आ गई इसे निम्न बहर के साथ ढालने की कोशिश करें तो बहुत आनंद आएगा
'फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन'
धन्यवाद
बहुत खूब ! इसी लय और रवानगी की आज की कविता को जरुरत है.छंद मे लिखी गाई कविता की बात अलग होती है.
बहुत खूब !! जीओ!!
अपने देश की माटी की खुशबू में रची बसी आपकी ये कविता अच्छी लगी और अपनी मिट्टी की सौंधी खुशबु की याद दिला रही है . बहुत बहुत बधाई
पूजा अनिल
bahut achchi lagi aapki kavita ,badhaai
"गांव का बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने बहुत सुंदर बधाई"
Regards
बहुत अच्छी कविता लिखी है आप ने दिल को छू गयी.
कभी माँगते हैं वे पहचान मेरी
कभी जाँचते हैं वे छोटी सी गठरी
समझ पाऊँ मैं न करूँ क्या गुसाईं
वो माटी की खुशबू दिला दो रे भाई
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'मिटटी की खुशबू' ज़मीन से जुड़ी हुई एक कविता.
बधाई
nagendra ki nishchhalta is kavita se saaf chhalakti hai - premchand sahajwala
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