दावत बुला के धोखे से है काट सर दिया
हैवां का जी भरा न तो फिर ढ़ा कहर दिया
दुनिया कि कोई हस्ती शिकन इक न दे सकी
अपनों ने उसको घोंप छुरा टुकड़े कर दिया
कण-कण बिखर गया जो किया वार पीठ पर
खुद को रहा समेट कहाँ तोड़ धर दिया
अंडों को खाता सांप ये हैं उसकी आदतें
बच्चे को नर ने खा सच को मात कर दिया
इंसां गिरा है इतना रहा झूठ सच बना
पैसा बना इमान वही घर में भर दिया
होली जला के रिश्तों की नंगा है नाचता
बन कंस खेल बदतर वह खेल फिर दिया
कवि कुलवंत सिंह
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत बढ़िया !
घुघूती बासूती
दूसरा और तीसरा शेर कुछ बेहतर है..
*** राजीव रंजन प्रसाद
दुनिया कि कोई हस्ती शिकन इक न दे सकी
अपनों ने उसको घोंप छुरा टुकड़े कर दिया
कण-कण बिखर गया जो किया वार पीठ पर
खुद को रहा समेट कहाँ तोड़ धर दिया
बहुत बढ़िया
लाजवाब
इंसां गिरा है इतना रहा झूठ सच बना
पैसा बना इमान वही घर में भर दिया
" बहुत अच्छा शेर ,सही कहा है"
Regards
माफ़ी चाहूँगा कुलवंत जी और बेहतर की उम्मीद थी
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल
दुनिया कि कोई हस्ती शिकन इक न दे सकी
अपनों ने उसको घोंप छुरा टुकड़े कर दिया
अंडों को खाता सांप ये हैं उसकी आदतें
बच्चे को नर ने खा सच को मात कर दिया
पंक्तिया अच्छी लगी.....सीमा सचदेव
इंसां गिरा है इतना रहा झूठ सच बना
पैसा बना इमान वही घर में भर दिया
अच्छा शेर
कवि कुलवंत जी आपकी गजल बहुत अच्छी है ; विशेषतः अन्तिम शेर
कुछ खास मजा नहीं आया कुलवंत जी। साधारण शे'र थे।आपसे उम्मीदें अधिक हैं।
बात कुछ बनी नहीं।
अच्छी गज़ल है
अपने ज़ज़्बातो को अल्फ़ाज़ मे समेटने की अच्छी कोशिश है बस आखिरी शेर में काफ़िया में गडबड है
Thank you all dear friends! barbad Ji aap ne sahi pharmaya.. ek galti ho gayee...Thanks for correcting me
with love kavi kulwant singh
अंडों को खाता सांप ये हैं उसकी आदतें
बच्चे को नर ने खा सच को मात कर दिया
यह शेर अच्छा लगा। बाकी में पता नहीं क्यों,कुछ कमी-सी लग रही है। आपसे बेहतर की उम्मीद है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
आपसे बेहतर की उम्मीद ज्यादा रहती है ,पता नही क्यों गजल के मापदंड पर कही कुछ कमी सी लगती है .
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