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Wednesday, March 12, 2008

गजल


दावत बुला के धोखे से है काट सर दिया
हैवां का जी भरा न तो फिर ढ़ा कहर दिया

दुनिया कि कोई हस्ती शिकन इक न दे सकी
अपनों ने उसको घोंप छुरा टुकड़े कर दिया

कण-कण बिखर गया जो किया वार पीठ पर
खुद को रहा समेट कहाँ तोड़ धर दिया

अंडों को खाता सांप ये हैं उसकी आदतें
बच्चे को नर ने खा सच को मात कर दिया

इंसां गिरा है इतना रहा झूठ सच बना
पैसा बना इमान वही घर में भर दिया

होली जला के रिश्तों की नंगा है नाचता
बन कंस खेल बदतर वह खेल फिर दिया

कवि कुलवंत सिंह

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

ghughutibasuti का कहना है कि -

बहुत बढ़िया !
घुघूती बासूती

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

दूसरा और तीसरा शेर कुछ बेहतर है..

*** राजीव रंजन प्रसाद

mehek का कहना है कि -

दुनिया कि कोई हस्ती शिकन इक न दे सकी
अपनों ने उसको घोंप छुरा टुकड़े कर दिया

कण-कण बिखर गया जो किया वार पीठ पर
खुद को रहा समेट कहाँ तोड़ धर दिया
बहुत बढ़िया

हेमंत गोयल का कहना है कि -

लाजवाब

seema gupta का कहना है कि -

इंसां गिरा है इतना रहा झूठ सच बना
पैसा बना इमान वही घर में भर दिया
" बहुत अच्छा शेर ,सही कहा है"
Regards

Anonymous का कहना है कि -

माफ़ी चाहूँगा कुलवंत जी और बेहतर की उम्मीद थी
आलोक सिंह "साहिल"

seema sachdeva का कहना है कि -

बहुत अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल

दुनिया कि कोई हस्ती शिकन इक न दे सकी
अपनों ने उसको घोंप छुरा टुकड़े कर दिया

अंडों को खाता सांप ये हैं उसकी आदतें
बच्चे को नर ने खा सच को मात कर दिया
पंक्तिया अच्छी लगी.....सीमा सचदेव

anju का कहना है कि -

इंसां गिरा है इतना रहा झूठ सच बना
पैसा बना इमान वही घर में भर दिया
अच्छा शेर

Unknown का कहना है कि -

कवि कुलवंत जी आपकी गजल बहुत अच्छी है ; विशेषतः अन्तिम शेर

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

कुछ खास मजा नहीं आया कुलवंत जी। साधारण शे'र थे।आपसे उम्मीदें अधिक हैं।

RAVI KANT का कहना है कि -

बात कुछ बनी नहीं।

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी गज़ल है
अपने ज़ज़्बातो को अल्फ़ाज़ मे समेटने की अच्छी कोशिश है बस आखिरी शेर में काफ़िया में गडबड है

Kavi Kulwant का कहना है कि -

Thank you all dear friends! barbad Ji aap ne sahi pharmaya.. ek galti ho gayee...Thanks for correcting me
with love kavi kulwant singh

विश्व दीपक का कहना है कि -

अंडों को खाता सांप ये हैं उसकी आदतें
बच्चे को नर ने खा सच को मात कर दिया

यह शेर अच्छा लगा। बाकी में पता नहीं क्यों,कुछ कमी-सी लग रही है। आपसे बेहतर की उम्मीद है।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

डॉ .अनुराग का कहना है कि -

आपसे बेहतर की उम्मीद ज्यादा रहती है ,पता नही क्यों गजल के मापदंड पर कही कुछ कमी सी लगती है .

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