विनय के॰ जोशी यूनिकवि प्रतियोगिता का ऐसा नाम है जिसकी कविताएँ पिछले ४ महीनों से प्रकाशित होती ही होती हैं। इस बार भी इनकी कविता शीर्ष १० में है। 'मैं' नामक कविता जोकि ९वें पायदान पर है, हम प्रकाशित कर रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- मैं
दर्पण में दिखता
तन मेरा,
महसूस करता
मन मेरा,
पर "मैं" कहाँ .... ?
प्रतिपल प्रश्नों से
उलझता,
मेरा पता,
पर "मैं" लापता |
नयन निर्झर
जिव्हा हर-हर
कर्मठ हस्त
उदर मस्त
ठाकर मस्तक
चाकर पग तक
नृत्य रत
नख-शिख
चेतना,
पर "मैं" कहाँ .....?
अन्वेषित कट गया
बाह्य जगत से,
तंद्रा टूटी
एक हल्की थपक से |
गिर पड़ा था
एक नन्हा,
राह रपट से |
धूल-धूसरित गेसु
और ढलका
अश्रु गाल से |
तभी बिजली सी कौंधी !
वह .. वह ..
आंसू मैं हूँ |
शाला जाते किसलय का
रक्त रंजित
जानू मैं हूँ |
अहा ! पा लिया
मैंने "मैं" को |
अब हर तरफ़
मैं ही मैं था |
हर दुखी का
दुखड़ा मैं था |
सूनी कलाई
चूड़ियों का
टुकड़ा मैं था |
विस्तरित "मैं"
व्योम व्यापक
छा गया |
मुझ से
परे निकल
"मैं" पा गया |
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-५॰५, ७, ७॰४
औसत अंक- ६॰६३३
स्थान- चौथा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-६॰५, ५॰८, ४, ५॰७३३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰७३३३
स्थान- दसवाँ
अंतिम जज की टिप्पणी-
कवि की शब्द-क्रीड़ा प्रशंसनीय है, पढ़ते हुए प्रवाह आनंदित करता है।
कला पक्ष: ६॰५/१०
भाव पक्ष: ५/१०
कुल योग: ११॰५/२०
स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
विनय जी
बहुत ही बढ़िया रचना है आपकी. पढ़कर आनंद आ गया
तभी बिजली सी कौंधी !
वह .. वह ..
आंसू मैं हूँ |
शाला जाते किसलय का
रक्त रंजित
जानू मैं हूँ |
अहा ! पा लिया
बहुत-बहुत बधाई
दर्पण में दिखता
तन मेरा,
महसूस करता
मन मेरा,
पर "मैं" कहाँ .... ?
प्रतिपल प्रश्नों से
उलझता,
मेरा पता,
पर "मैं" लापता |
बहुत ही बढ़िया ,बहुत बधाई
विनय जी बेहतरीन प्रस्तुति,हरबार की तरह इसबार भी शानदार
आलोक सिंह "साहिल"
अति उत्तम
विनय जी बहुत अच्छे
अच्छी रचना के लिए बधाई
हर दुखी का
दुखड़ा मैं था |
सूनी कलाई
चूड़ियों का
टुकड़ा मैं था |
अच्छी रचना है विनय जी। बहुत बहुत बधाई।
हर दुखी का
दुखड़ा मैं था |
सूनी कलाई
चूड़ियों का
टुकड़ा मैं था |
विस्तरित "मैं"
व्योम व्यापक
छा गया |
मुझ से
परे निकल
"मैं" पा गया |
सुन्दर रचना।
हर दुखी का
दुखड़ा मैं था |
सूनी कलाई
चूड़ियों का
टुकड़ा मैं था |
"बेहतरीन ,बहुत ही सुन्दर रचना"
Regards
विनय जी बहुत ही उम्दा कविता है हिंदी पर अच्छी पकड है और भावों को भी बखूबी अभिव्यक्त किया है इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई
अच्छी कविता विनय जी
bahut hi sundar, preranaspad gahre bhav. hindyugm ki sabse acchi kaviton me se ek.
सूनी कलाई
चूड़ियों का
टुकड़ा मैं था |
vinayji aapki kavitaye bahut gahre bhav liye hoti hain. badhai.
ravi
Vinay,
JSK!
It is in long time I read such a such deep and meaningful poetry.
Regards
Tarkeshwar
vinayji ,
'मैं' रचना निखालिस साहित्यक
रचना नही है . मेरी सोच मे
कुछ और अधिक है . दिल की
गहरायिओं में मथानी से घूम्म घूम्म
करते हुए जो अमृत छलक कर बाहर
आया वो ही यह रचना है - 'मैं'
बधाईयाँ
हर्ष ,
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