समय …
एक …
'पढ़ी हुई पुस्तक'
बन जाता है
होते हैं ..
जब हम निराश
ज़िन्दगी …
उड़ने लगती है
बिखरे ..
अधखुले पन्नों की तरह
समय के झोंके से
और एक कहानी,
छोड़ देती है
भावों के ऊहापोह में
आशा का सूरज…
सामाजिक रूढ़ियों में जकड़े
कैदी की तमस कोठरी में
नहीं उगता है
और तब …
‘ज़िन्दगी की किताब’
पूरी न कर
हम बन जाते हैं
एक 'दुखान्त उपन्यास’
समय
एक 'पढ़ी हुई पुस्तक'
बन जाता है
होते है जब हम निराश
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
श्री कान्त जी अच्छी सोच अच्छे भाव .....
बिखरे अधखुले पन्नों की तरह
प्रायः समय के झोंके से
और एक कहानी
छोड़ देती है भावों के ऊहापोह में
आशा का सूरज
सामाजिक रूढ़ियों में जकड़े....
क्या कहना
समय एक पढी हुई किताब ....
भाव अच्छे है
अच्छी लगी आपकी कविता ....सीमा सचदेव
श्री कान्त जी,
आशा का सूरज…
सामाजिक रूढ़ियों में जकड़े
कैदी की तमस कोठरी में
नहीं उगता है......
अच्छे भाव....
समय
एक 'पढ़ी हुई पुस्तक'
बन जाता है
होते है जब हम निराश
बिल्कुल सही कहा आपने श्रीकांत जी ..अच्छा लगा इस रचना को पढ़ना !!
श्रीकान्त जी
कविता सुन्दर और भाव प्रधान है । अच्छे उपमान लिए हैं आपने । जीवन का एक दुखान्त उपन्यास बन जाना अति सुन्दर प्रयोग है-
आशा का सूरज…
सामाजिक रूढ़ियों में जकड़े
कैदी की तमस कोठरी में
नहीं उगता है
और तब …
‘ज़िन्दगी की किताब’
पूरी न कर
हम बन जाते हैं
एक 'दुखान्त उपन्यास’
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें
thodi nirshavadi abhivyakti hai...achhe samay ko bhi sthan dete to purn kavita ban jati....par shayad ye bhi ek samay ka hi chitran hai?
kuch shabd aor bhav bahut achhe hai.
bahut bahut sundar bhav,ati sundar kavita bahut badhai
श्रीकांत जी
बहुत अच्छा लिखा है आपने .. खूबसूरत रचना! यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आईं ..
"सामाजिक रूढ़ियों में जकड़े
कैदी की तमस कोठरी में
नहीं उगता है
और तब …
‘ज़िन्दगी की किताब’
पूरी न कर
हम बन जाते हैं
एक 'दुखान्त उपन्यास’"
और तब …
‘ज़िन्दगी की किताब’
पूरी न कर
हम बन जाते हैं
एक 'दुखान्त उपन्यास’
श्रीकान्त जी, अच्छा प्रयोग है।
समय पर ये विचार जीवन के सन्दर्भ मी सुंदर है |
रचना को सरलता से प्रस्तुत किया है |
अवनीश तिवारी
ज़िन्दगी की किताब’
पूरी न कर
हम बन जाते हैं
एक 'दुखान्त उपन्यास’
" बहुत खुबसुरत पंक्तीयाँ और जीवन का एक सच , भावपूर्ण रचना"
Regards
श्रीकांत जी अंत कैसा भी हो ... उपन्यास की कहानी अच्छी होनी चाहिए.....अभी तो बहुत से मोड़ बाकी हैं
श्री कान्त जी,
गहरी रचना... सचमुच जिन्दगी एक किताव की तरह ही है... कभी कभी पन्ने खाली रह जाते हैं या अनपढे भी रह राते हैं और जिन्दगी का हर पल तह बतह इसमें जुडता जाता है... याद का एक झोंका न जाने यादों के कितने पन्ने खोल देता है...
बधाई
समय
एक 'पढ़ी हुई पुस्तक'
बन जाता है
होते है जब हम निराश
रचना स्पर्श करती है। बेहतरीन...
*** राजीव रंजन प्रसाद
श्री कान्त जी एक बार फ़िर एक मर्म्स्पर्शी कविता के लिये बधाई
समय
एक 'पढ़ी हुई पुस्तक'
बन जाता है
होते है जब हम निराश
कांत जी,
इन चार पंक्तियों में आपने जीवन के कई रहस्य सुलझा डाले हैं। रचना अच्छी लगी।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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