प्यार कितना भी हो
लाश कौन ढोता है
कौन किस के लिये
ज़िन्दगी भर रोता है
फूल खिलती शाखों को
सींचते हैं पानी से
सूख कर ठूंठ तो
आग ही में जलता है
ख़्वाब कितने भी हों दिलक़श
गमलों तक ही रहते हैं
मेज़ों और आलों पर
गुलदान ही सजता है
महे-कामिल से चेहरे भी
अंधेरों में डूब जाते हैं
हाथ में न हों लकीरें तो
हुनर भी हाथ मलता है
यूं तो इन किताबों में दबे
लाखों दर्दे-मुहब्बत के किस्से हैं
फिर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख़्वाब पलता है
महे-कामिल = पूरा चांद
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपको सोच एक रति प्रेम मे पागल विहल मानव की भावना का सम्पूर्ण प्रभाव हैं
फ़िर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख्वाब पलता है
यूं तो इन किताबों में दबे
लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं
फ़िर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख्वाब पलता है
" लाजवाब , सच का आईना एक सुंदर अभीव्य्क्ती , आकर्षक चित्र और उतनी ही भावनात्मक रचना"
Regards
बहुत अच्छे मोहिंदर जी
अच्छी रचना के लिए बधाई
हाथ में न हों लकीरें तो
हुनर भी हाथ मलता है
यूं तो इन किताबों में दबे
लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं
फ़िर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख्वाब पलता है
अच्छी रचना
महे-कामिल से चेहरे भी
अंधेरों में डूब जाते हैं
हाथ में न हों लकीरें तो
हुनर भी हाथ मलता है
यूं तो इन किताबों में दबे
लाखों दर्दे-मुहब्बत के किस्से हैं
फिर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख़्वाब पलता है
आपकी कविता पढ़ के बहुत अच्छा लगा ,एक अच्छी रचना के लिए बधाई ....सीमा सचदेव
मोहिंदर जी,
हाथ में न हों लकीरें तो
हुनर भी हाथ मलता है....
अच्छी रचना......बधाई
महे-कामिल से चेहरे भी
अंधेरों में डूब जाते हैं
हाथ में न हों लकीरें तो
हुनर भी हाथ मलता है
एक सुंदर बात कहती हुई है यह रचना ..अच्छी लगी यह पंक्तियाँ मोहिंदर जी !!
मोहिन्दर जी
एक दार्शनिक सोच लिए लिखी गई यह कविता जीवन की सच्चाई का बयान करती है। जीवन एक निरन्तर बहती हुई नदी है उसका प्रवाहमान होना नितान्त आवश्यक है। मोह में पड़कर पुरानी यादों को ढोना कभी भी प्रगतिशील मानव का आदर्श नहीं रहा -
फूल खिलती शाखों को
सींचते हैं पानी से
सूख कर ठूंठ तो
आग ही में जलता है
ख़्वाब कितने भी हों दिलक़श
गमलों तक ही रहते हैं
मेज़ों और आलों पर
गुलदान ही सजता है
बहुत ही सही सोच है। एक सही दृष्टि देने के लिए बधाई
यूं तो इन किताबों में दबे
लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं
फ़िर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख्वाब पलता है
सुंदर अभीव्य्क्ती ,बहुत बहुत बधाई
मोहिंदर जी.. दिल से निकली पंक्तियाँ सीधी दिल तक गयीं...
बहुत खूबसूरत लिखा है आपने ...
ख़्वाब कितने भी हों दिलक़श
गमलों तक ही रहते हैं
मेज़ों और आलों पर
गुलदान ही सजता है
महे-कामिल से चेहरे भी
अंधेरों में डूब जाते हैं
हाथ में न हों लकीरें तो
हुनर भी हाथ मलता है
हाथ में न हों लकीरें तो
हुनर भी हाथ मलता है
मोहिन्दर जी,यह भाग्यवाद भी लाश ही है। क्या ढोना इसे??
हाथ में न हों लकीरें तो
हुनर भी हाथ मलता है
-- बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं |
अवनीश तिवारी
फूल खिलती शाखों को
सींचते हैं पानी से
सूख कर ठूंठ तो
आग ही में जलता है
बिल्कुल सही कहा है मोहिन्दर जी। जबर्दस्त रचना।
ख़्वाब कितने भी हों दिलक़श
गमलों तक ही रहते हैं
मेज़ों और आलों पर
गुलदान ही सजता है
सरल अंदाज़ में गहरा दर्शन.....
लाश कौन ढोता है
कौन किस के लिये
ज़िन्दगी भर रोता है
सींचते हैं पानी से
सूख कर ठूंठ तो
आग ही में जलता है
मेज़ों और आलों पर
गुलदान ही सजता है
फिर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख़्वाब पलता है
वाह!! वाह!!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुंदर और सहज रचना है. परंतु इतने सरल शब्दों के बीच यकायक महे-क़ामिल जैसे शब्द का प्रयोग समझ नहीं आता.
फूल खिलती शाखों को
सींचते हैं पानी से
सूख कर ठूंठ तो
आग ही में जलता है
....... शुभकामनाएं
मोहिंदर जी,
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है
यूं तो इन किताबों में दबे
लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं
फ़िर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख्वाब पलता है
मोहिंदर जी,
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है
यूं तो इन किताबों में दबे
लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं
फ़िर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख्वाब पलता है
मोहिंदर जी,
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है
यूं तो इन किताबों में दबे
लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं
फ़िर भी इन नम आंखों में
हर पल इक ख्वाब पलता है
मोहिन्दर जी,
सच का आईना पसंद आया। कुछ बातें समझ नहीं आईं मसलन
ख़्वाब कितने भी हों दिलक़श
गमलों तक ही रहते हैं
मेज़ों और आलों पर
गुलदान ही सजता है
गमला और गुलदान में कोई फर्क होता है क्या?
overall रचना अच्छी है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
तन्हा जी,
गुलदान = गुलदस्ता . छोटा सा जो मेज और रखा जाता है... गमले अकसर मिट्टी के होते है.. थोडे बडे और ज्यादातर बाहर ही रखे जाते हैं..
दूसरी बात यह कहने की थी कि (गमले मतलव.. Raw stage).. हर सपना हकीकत नहीं होता... हर पेड पर फ़ूल नहीं लगते.. आदि आदि... और गुलदान में तो फ़ूल तोड कर सजाये जाते हैं जबकि गमलों मे लगाये जाते हैं
रचना पसन्द करने के लिये धन्यवाद
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