tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post6993498284242679328..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: सच का आइनाशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-17824594489262873032008-03-13T18:24:00.000+05:302008-03-13T18:24:00.000+05:30तन्हा जी,गुलदान = गुलदस्ता . छोटा सा जो मेज और रखा...तन्हा जी,<BR/><BR/>गुलदान = गुलदस्ता . छोटा सा जो मेज और रखा जाता है... गमले अकसर मिट्टी के होते है.. थोडे बडे और ज्यादातर बाहर ही रखे जाते हैं..<BR/>दूसरी बात यह कहने की थी कि (गमले मतलव.. Raw stage).. हर सपना हकीकत नहीं होता... हर पेड पर फ़ूल नहीं लगते.. आदि आदि... और गुलदान में तो फ़ूल तोड कर सजाये जाते हैं जबकि गमलों मे लगाये जाते हैं<BR/><BR/>रचना पसन्द करने के लिये धन्यवादMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-59092417245881154762008-03-13T13:51:00.000+05:302008-03-13T13:51:00.000+05:30मोहिन्दर जी,सच का आईना पसंद आया। कुछ बातें समझ नही...मोहिन्दर जी,<BR/>सच का आईना पसंद आया। कुछ बातें समझ नहीं आईं मसलन<BR/>ख़्वाब कितने भी हों दिलक़श<BR/>गमलों तक ही रहते हैं<BR/>मेज़ों और आलों पर<BR/>गुलदान ही सजता है<BR/><BR/>गमला और गुलदान में कोई फर्क होता है क्या?<BR/><BR/>overall रचना अच्छी है।<BR/><BR/>बधाई स्वीकारें।<BR/><BR/>-विश्व दीपक ’तन्हा’विश्व दीपकhttps://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-53234563619908153652008-03-13T09:17:00.002+05:302008-03-13T09:17:00.002+05:30मोहिंदर जी,बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना हैयूं तो इन कि...मोहिंदर जी,<BR/>बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है<BR/><BR/>यूं तो इन किताबों में दबे<BR/>लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं<BR/>फ़िर भी इन नम आंखों में<BR/>हर पल इक ख्वाब पलता हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-38220360608658415092008-03-13T09:17:00.001+05:302008-03-13T09:17:00.001+05:30मोहिंदर जी,बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना हैयूं तो इन कि...मोहिंदर जी,<BR/>बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है<BR/><BR/>यूं तो इन किताबों में दबे<BR/>लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं<BR/>फ़िर भी इन नम आंखों में<BR/>हर पल इक ख्वाब पलता हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77741490780118540692008-03-13T09:17:00.000+05:302008-03-13T09:17:00.000+05:30मोहिंदर जी,बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना हैयूं तो इन कि...मोहिंदर जी,<BR/>बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है<BR/><BR/>यूं तो इन किताबों में दबे<BR/>लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं<BR/>फ़िर भी इन नम आंखों में<BR/>हर पल इक ख्वाब पलता हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-29399539320986716472008-03-12T19:54:00.000+05:302008-03-12T19:54:00.000+05:30फूल खिलती शाखों कोसींचते हैं पानी सेसूख कर ठूंठ तो...फूल खिलती शाखों को<BR/>सींचते हैं पानी से<BR/>सूख कर ठूंठ तो<BR/>आग ही में जलता है<BR/>....... शुभकामनाएंAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42373845098107112442008-03-12T17:51:00.000+05:302008-03-12T17:51:00.000+05:30सुंदर और सहज रचना है. परंतु इतने सरल शब्दों के बीच...सुंदर और सहज रचना है. परंतु इतने सरल शब्दों के बीच यकायक महे-क़ामिल जैसे शब्द का प्रयोग समझ नहीं आता.SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-64240089896120537692008-03-12T12:25:00.000+05:302008-03-12T12:25:00.000+05:30लाश कौन ढोता हैकौन किस के लियेज़िन्दगी भर रोता हैसी...लाश कौन ढोता है<BR/>कौन किस के लिये<BR/>ज़िन्दगी भर रोता है<BR/><BR/>सींचते हैं पानी से<BR/>सूख कर ठूंठ तो<BR/>आग ही में जलता है<BR/><BR/>मेज़ों और आलों पर<BR/>गुलदान ही सजता है<BR/><BR/>फिर भी इन नम आंखों में<BR/>हर पल इक ख़्वाब पलता है<BR/><BR/>वाह!! वाह!!!<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26607914769588170942008-03-12T09:01:00.000+05:302008-03-12T09:01:00.000+05:30ख़्वाब कितने भी हों दिलक़शगमलों तक ही रहते हैंमेज़ो...ख़्वाब कितने भी हों दिलक़श<BR/>गमलों तक ही रहते हैं<BR/>मेज़ों और आलों पर<BR/>गुलदान ही सजता है<BR/><BR/>सरल अंदाज़ में गहरा दर्शन.....Sajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-42677279210658594112008-03-11T23:36:00.000+05:302008-03-11T23:36:00.000+05:30फूल खिलती शाखों कोसींचते हैं पानी सेसूख कर ठूंठ तो...फूल खिलती शाखों को<BR/>सींचते हैं पानी से<BR/>सूख कर ठूंठ तो<BR/>आग ही में जलता है<BR/><BR/>बिल्कुल सही कहा है मोहिन्दर जी। जबर्दस्त रचना।तपन शर्मा Tapan Sharmahttps://www.blogger.com/profile/02380012895583703832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-4606703157434065552008-03-11T22:29:00.000+05:302008-03-11T22:29:00.000+05:30हाथ में न हों लकीरें तोहुनर भी हाथ मलता है-- बहुत ...हाथ में न हों लकीरें तो<BR/>हुनर भी हाथ मलता है<BR/>-- बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं |<BR/><BR/>अवनीश तिवारीअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-39374306886415446662008-03-11T21:17:00.000+05:302008-03-11T21:17:00.000+05:30हाथ में न हों लकीरें तोहुनर भी हाथ मलता हैमोहिन्दर...हाथ में न हों लकीरें तो<BR/>हुनर भी हाथ मलता है<BR/><BR/>मोहिन्दर जी,यह भाग्यवाद भी लाश ही है। क्या ढोना इसे??RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-21199757307159229732008-03-11T21:15:00.000+05:302008-03-11T21:15:00.000+05:30मोहिंदर जी.. दिल से निकली पंक्तियाँ सीधी दिल तक गय...मोहिंदर जी.. दिल से निकली पंक्तियाँ सीधी दिल तक गयीं...<BR/>बहुत खूबसूरत लिखा है आपने ...<BR/><BR/>ख़्वाब कितने भी हों दिलक़श<BR/>गमलों तक ही रहते हैं<BR/>मेज़ों और आलों पर<BR/>गुलदान ही सजता है<BR/>महे-कामिल से चेहरे भी<BR/>अंधेरों में डूब जाते हैं<BR/>हाथ में न हों लकीरें तो<BR/>हुनर भी हाथ मलता हैविपुलhttps://www.blogger.com/profile/13962852081810792299noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-74558654006069833852008-03-11T20:56:00.000+05:302008-03-11T20:56:00.000+05:30यूं तो इन किताबों में दबेलाखों दर्दो-मुहब्बत के कि...यूं तो इन किताबों में दबे<BR/>लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं<BR/>फ़िर भी इन नम आंखों में<BR/>हर पल इक ख्वाब पलता है <BR/>सुंदर अभीव्य्क्ती ,बहुत बहुत बधाईAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-26019706525615464082008-03-11T20:22:00.000+05:302008-03-11T20:22:00.000+05:30मोहिन्दर जीएक दार्शनिक सोच लिए लिखी गई यह कविता जी...मोहिन्दर जी<BR/>एक दार्शनिक सोच लिए लिखी गई यह कविता जीवन की सच्चाई का बयान करती है। जीवन एक निरन्तर बहती हुई नदी है उसका प्रवाहमान होना नितान्त आवश्यक है। मोह में पड़कर पुरानी यादों को ढोना कभी भी प्रगतिशील मानव का आदर्श नहीं रहा -<BR/>फूल खिलती शाखों को<BR/>सींचते हैं पानी से<BR/>सूख कर ठूंठ तो<BR/>आग ही में जलता है<BR/>ख़्वाब कितने भी हों दिलक़श<BR/>गमलों तक ही रहते हैं<BR/>मेज़ों और आलों पर<BR/>गुलदान ही सजता है<BR/><BR/>बहुत ही सही सोच है। एक सही दृष्टि देने के लिए बधाईशोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-77528506435613314752008-03-11T19:45:00.000+05:302008-03-11T19:45:00.000+05:30महे-कामिल से चेहरे भीअंधेरों में डूब जाते हैंहाथ म...महे-कामिल से चेहरे भी<BR/>अंधेरों में डूब जाते हैं<BR/>हाथ में न हों लकीरें तो<BR/>हुनर भी हाथ मलता है<BR/><BR/>एक सुंदर बात कहती हुई है यह रचना ..अच्छी लगी यह पंक्तियाँ मोहिंदर जी !!रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-10677259864159068552008-03-11T18:46:00.000+05:302008-03-11T18:46:00.000+05:30मोहिंदर जी,हाथ में न हों लकीरें तोहुनर भी हाथ मलता...मोहिंदर जी,<BR/>हाथ में न हों लकीरें तो<BR/>हुनर भी हाथ मलता है....<BR/>अच्छी रचना......बधाईजीतेशhttps://www.blogger.com/profile/04163324037223506807noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55453629007300165962008-03-11T17:52:00.000+05:302008-03-11T17:52:00.000+05:30महे-कामिल से चेहरे भीअंधेरों में डूब जाते हैंहाथ म...महे-कामिल से चेहरे भी<BR/>अंधेरों में डूब जाते हैं<BR/>हाथ में न हों लकीरें तो<BR/>हुनर भी हाथ मलता है<BR/>यूं तो इन किताबों में दबे<BR/>लाखों दर्दे-मुहब्बत के किस्से हैं<BR/>फिर भी इन नम आंखों में<BR/>हर पल इक ख़्वाब पलता है<BR/><BR/>आपकी कविता पढ़ के बहुत अच्छा लगा ,एक अच्छी रचना के लिए बधाई ....सीमा सचदेवseema sachdevahttps://www.blogger.com/profile/15533434551981989302noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31805207497979517542008-03-11T17:27:00.002+05:302008-03-11T17:27:00.002+05:30बहुत अच्छे मोहिंदर जी अच्छी रचना के लिए बधाई हाथ म...बहुत अच्छे मोहिंदर जी <BR/>अच्छी रचना के लिए बधाई <BR/>हाथ में न हों लकीरें तो<BR/>हुनर भी हाथ मलता है<BR/>यूं तो इन किताबों में दबे<BR/>लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं<BR/>फ़िर भी इन नम आंखों में<BR/>हर पल इक ख्वाब पलता है<BR/>अच्छी रचनाanjuhttps://www.blogger.com/profile/05253751080116301279noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-86357198381178218382008-03-11T17:27:00.000+05:302008-03-11T17:27:00.000+05:30यूं तो इन किताबों में दबेलाखों दर्दो-मुहब्बत के कि...यूं तो इन किताबों में दबे<BR/>लाखों दर्दो-मुहब्बत के किस्से हैं<BR/>फ़िर भी इन नम आंखों में<BR/>हर पल इक ख्वाब पलता है <BR/>" लाजवाब , सच का आईना एक सुंदर अभीव्य्क्ती , आकर्षक चित्र और उतनी ही भावनात्मक रचना" <BR/>Regardsseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-67261483236273657362008-03-11T17:12:00.000+05:302008-03-11T17:12:00.000+05:30आपको सोच एक रति प्रेम मे पागल विहल मानव की भावना क...आपको सोच एक रति प्रेम मे पागल विहल मानव की भावना का सम्पूर्ण प्रभाव हैं <BR/>फ़िर भी इन नम आंखों में<BR/>हर पल इक ख्वाब पलता हैvivek "Ulloo"Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08517005469491054267noreply@blogger.com