शीर्ष १० कवियों की सूची में आखिरी नाम है संजीव कुमार गोयल 'सत्य' का जिनकी कविता बड़प्पन ने निर्णायकों का दिल जीता है। संजीव पेशे से राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान, नागपुर में वैज्ञानिक हैं।
पुरस्कृत कविता- बड़प्पन
दरख़्त,
तुम फिर भी मौन,
समेट लेते हो चुपचाप,
अपने भीतर,
अपनी समस्त वेदनाओं,
अपनी पीड़ाओं को।
अपने बंधु-बाँधवों, और
संगे-संबंधियों की निर्मम हत्या,
देखते रहते हो सब निश्चल,
पीकर अपमान, क्रोध का घूंट,
फिर भी रहते हो सदा अविचल।
दरख़्त--------मौन।
निरीह बन सह लेते हो
चुपचाप सब अत्याचार,
क्यों नहीं करते मानव की,
निकृष्ट प्रवृत्ति का प्रतिकार।
क्यों, आखिर क्यों,
इतनी निर्ममता, इतनी कठोरता
इतनी निकृष्टता सहने के बाद भी,
तुम सदा मुस्कुराते रहते हो।
इसपर भी कभी वंचित नहीं करते,
फल, फूल, लकड़ी और छाया से।
आखिर तुम्हें भी पूरा अधिकार है,
अपने अस्तित्व, अपने जीवन पर।
दरख़्त--------मौन।
शायद यह विडम्बना,
यह नियति
विवशता है तुम्हारी,
तुम्हारे बड़प्पन की।
क्योंकि-
तुमने तो सिर्फ
देना ही सीखा है
तुम्हार आदि, अंत
समस्त अस्तित्व,
सब कुछ, मानव के लिए है।
मानव को पूर्णतया समर्पित
दरख़्त-
सचमुच तुम महान हो,
और तुम्हारा ये मौन,
प्रतीक है तुम्हारी महानता का।।
दरख़्त- तुम सच में महान हो।।
दरख़्त-सम भाव से ही,
मानव जीवन सुखमय, सफल होगा,
क्योंकि तत्सम ही-
यह मानव शरीर भी,
अंततः पंचतत्व विलीन होगा।
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-६॰५, ८, ७॰०५
औसत अंक- ७॰१८३३
स्थान- पहला
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-४, ७॰५, ३॰५, ७॰१८३३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰५४५८३
स्थान- चौदहवाँ
अंतिम जज की टिप्पणी-
दरख्त तुम “फिर भी” मौन से आरंभ हुई रचना “फिर भी” को पूरी कविता में स्थापित नहीं करती। विषय जो आरंभ में गंभीर प्रतीत होता था कविता के बढ़ने के साथ ही घिसी-घिसाई लीक पर समाप्त होता है।
कला पक्ष: ५॰४/१०
भाव पक्ष: ६/१०
कुल योग: ११॰४/२०
स्थान- दसवाँ
पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छे संजीव जी
सुंदर रचना
तुम फिर भी मौन,
समेट लेते हो चुपचाप,
अपने भीतर,
अपनी समस्त वेदनाओं,
अपनी पीड़ाओं को।
बधाई आपको
शायद यह विडम्बना,
यह नियति
विवशता है तुम्हारी,
तुम्हारे बड़प्पन की।
क्योंकि-
तुमने तो सिर्फ
देना ही सीखा है
"अच्छी पंक्तीयाँ लगीं , सुंदर रचना के लिए बधाई"
Regards
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता |एक अच्छी रचना के लिए बधाई .....सीमा सचदेव
संजीव जी,
बेहद उम्दा रचना। निश्चित ही वैज्ञाकिक सोच भी..
***राजीव रंजन प्रसाद
संजीव जी
एक वैज्ञानिक के भीतर की वेद्नाओं को कगज़ पर क्या खूब उकेरा है बधाई
शायद यह विडम्बना,
यह नियति
विवशता है तुम्हारी,
तुम्हारे बड़प्पन की।
क्योंकि-
तुमने तो सिर्फ
देना ही सीखा है
बहुत सुंदर बधाई
क्यों, आखिर क्यों,
इतनी निर्ममता, इतनी कठोरता
इतनी निकृष्टता सहने के बाद भी,
तुम सदा मुस्कुराते रहते हो।
इसपर भी कभी वंचित नहीं करते,
फल, फूल, लकड़ी और छाया से।
आखिर तुम्हें भी पूरा अधिकार है,
अपने अस्तित्व, अपने जीवन पर।
बहुत सुन्दर संजीव जी,
अच्छे प्रवाह में बढ़िया ढंग से प्रश्न उठाया है
उपदेश देने वाली कविता। कुछ भी नया नहीं कहा है आपने वैज्ञानिक जी। कुछ विज्ञान की दृष्टि से भी कहते तो बात बनती।
ओए बहुत सोना लिखया है तूने पुत्तर..अरे तू कद से आ गया एत्थे..? बधाई जी...my batch mate.. kavi kulwant
http://kavikulwant.blogspot.com
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