शीर्ष १० कविताओं से आगे बढ़ते हैं। ११ वें स्थान की कवयित्री डॉ॰ सुरेखा भट्ट ने ६-७ महीने बाद इस प्रतियोगिता में भाग लिया है। बिलकुल नया जायका 'त्रिवेणियाँ' लेकर आई हैं।
पुरस्कृत कविता- त्रिवेणियाँ
१.
एक ऊँगली व्यस्त रही नन्हें को जमीन पर चलाने में,
अन्य ने सारे, सफाई की, खाना पकाया, बाल संवारे,
पति को फिर भी कौन सी मिल गयी, जीवन भर नाचने को ?
२.
देखनेवालों के दिल तड़प रहे हैं ना ?
मरनेवालों को अब तो हाथ में ले माँ ,
जिन्दगी की पीड़ा कोई कम थी क्या?
३.
पवन के थपेडे ले जाए मन को मोह तो समझ सको भक्ती,
पानी की बूँद की तरह ऊपर उड़े मन तो पा सको मुक्ती,
परन्तु धरती में भी है खीचने की शक्ती |
४.
दो अयोग्य हाथों ने दृष्टता करके छुया,
दो हाथ पूरे अपने, रुष्ट हुए, दूर रहे,
द्रौपदी के केशों का एक अपना दुर्भाग्य था |
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-६, ५, ६॰६
औसत अंक- ५॰८६६७
स्थान- छब्बीसवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-५, ६, ४॰५, ५॰८६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰३४१६७
स्थान- बीसवाँ
अंतिम जज की टिप्पणी-
त्रिवेणियाँ अच्छी हैं किंतु जटिल भी।
कला पक्ष: ६/१०
भाव पक्ष: ४॰५/१०
कुल योग: १०॰५/२०
स्थान- ग्यारहवाँ
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
देखनेवालों के दिल तड़प रहे हैं ना ?
मरनेवालों को अब तो हाथ में ले माँ ,
जिन्दगी की पीड़ा कोई कम थी क्या?
बहुत सुंदर बधाई
सुरेखा जी बहुत अच्छे
अच्छी त्रिवेणी लिखी है आपने
बधाई
देखनेवालों के दिल तड़प रहे हैं ना ?
मरनेवालों को अब तो हाथ में ले माँ ,
जिन्दगी की पीड़ा कोई कम थी क्या?
" बहुत खूब , अती सुंदर दर्द भरे भाव "
Regards
दो अयोग्य हाथों ने दृष्टता करके छुया,
दो हाथ पूरे अपने, रुष्ट हुए, दूर रहे,
द्रौपदी के केशों का एक अपना दुर्भाग्य था |
मे अर्थ की गहराई मन को चू गई ....सीमा
सुरेख जी आजतक गुलजार साहब की ही त्रिवेनियाँ पढी थीं,आज आपकी त्रिवेणी पढ़ने का मौका मिल,अच्छी लगीं,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
पहली त्रिवेणी तो त्रिवेणी है भी नहीं। यह तो एक क्षणिका है। त्रिवेणी की शुरू की दो पंक्तियाँ एक दूसरे से सीधे तौर पर तो जुड़ी हुई होती है, लेकिन तीसरी शुरू के दो पंक्तियों से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी होती है। लेकिन यहाँ तो सब सीधे-सीधे है।
दूसरी बढ़िया है। मगर त्रिवेणी की धार नहीं है।
तीसरी तो पता नहीं क्या है।
चौथी बहुत कलात्मक है।
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