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Monday, March 17, 2008

जीतेश नौगरैया मानव हैं


सोमवार का दिन पूरी तरह से प्रतियोगी कवियों का होता है। इसलिए आज प्रतियोगिता से एक और तोहफा लेकर हम उपस्थित हैं। 'विप्रो' नाम बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत कवि जीतेश नौगरैया हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता के लिए नये हैं और इनकी कविता १७वें स्थान पर आई है।

पुरस्कृत कविता- हूँ मानव

बस एक बार,
बस एक बार झुक जाए हिमालय, वैशाखी से पार उसे मैं कर लूँ
बस एक बार घन बरसे इतना, सागर एक नया मैं भर लूँ
बस एक बार छू लूँ आकाश, सितारा एक नया बन चमकूँ
बस एक बार मिल जाए शक्ति, दुनिया को मुठठी में कर लूँ
पर क्यों,
क्यों हिमालय के झुकने तक, वैशाखी को रखूँ
क्यों घन बरसे तक तक, ज्ञान पीयूष को तरसूँ
क्यों आकाश के छूने तक, ख़ुद को रोके रखूँ
क्यों बैठ सहारे शक्ति के, अपनी मुट्ठी खुली रखूँ
हूँ मानव,
दौड़ श्रृंखला पर्वतों की पार मैं कर लूँगा
हर क्षण एक बूंद से सिंधु नया मैं भर लूँगा
हो जाऊँ नभ स्वयं का विस्तार मैं इतना कर लूँगा
हो कर्मयोगी सूरज बन चमकूँगा

निर्णायकों की नज़र में-


प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-६, ६॰४, ६॰३५
औसत अंक- ६॰२५
स्थान- आठवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-५॰५, ५, ५, ६॰२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰४३७५
स्थान- सत्रहवाँ


अंतिम जज की टिप्पणी-
आशावादी रचना तो है किंतु कविता बाँधती नहीं है।
कला पक्ष: ३॰५/१०
भाव पक्ष: ४॰५/१०
कुल योग: ८/२०
स्थान- सत्रहवाँ

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत सकारात्म सोच है |
बधाई और स्वागत |


अवनीश तिवारी

anju का कहना है कि -

जीतेश जी बहुत खूब
पहले आपने इच्छा जताई और फिर आगे बदने की प्रेरणा दी
अच्छी लगी रचना
महनत करने का नया संदेश
बधाई आपको

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

जीतेश भाई,
साफ कहें तो कविता आपके उमरते आवेग को संप्रेषित करने मे सक्षम है किंतु पुनरुक्ति के अत्यधिक प्रयोग ने इसकी धारा को कुंद सा किया दिया है ! शायद आप अपने कथ्य के प्रति बहुत ज़्यादा स्पष्ट नही हैं ! कविता की सबसे बड़ी विशेषता आपकी उद्दाम जिजीविषा है, और यह सर्वथा प्रशंश्नीय है !

mehek का कहना है कि -

आशावादी कविता के लिए बधाई,बहुत अच्छे

Unknown का कहना है कि -

बस एक बार,
बस एक बार झुक जाए हिमालय, वैशाखी से पार उसे मैं कर लूँ
बस एक बार घन बरसे इतना, सागर एक नया मैं भर लूँ
बस एक बार छू लूँ आकाश, सितारा एक नया बन चमकूँ
"अच्छी रचना बधाई"

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुन्दर काव्य सकारात्मक सोच का अच्छा उदाहरण..

raybanoutlet001 का कहना है कि -

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