चूँकि हमें इस माह प्रतियोगिता से ३० कविताएँ प्रकाशित करनी है, इसलिए जल्दी-जल्दी ही १८वीं कविता तक बढ़ आये हैं। इस स्थान पर प्रतियोगिता में अक्सर भाग लेने वाली और प्रकाशित होने वाली कवयित्री प्रगति सक्सेना की कविता है।
पुरस्कृत कविता- रब्बा ज़रूर करना
कर दो नसीब भले ही आंसुओं का सैलाब किसी को
लग कर रो सके वह रब्बा .. एक दामन ऐसा ज़रूर करना ..
अपने सारे ज़ख्मों को वो ठंडक का मरहम लगा पाये
एक दफ़ा ज़िंदगी में रब्बा ..एक सावन ऐसा ज़रूर करना ..
मिल सके उसको बारी बराबर, ज़माने की बाज़ियों में
पत्तों की तरह खेलें रब्बा ...ताश हों बावन ऐसा ज़रूर करना ..
एक मर्यादा में हो जूनून, हर जगह घात लगाये उस लुटेरे का
कलयुग नारी के लिए तुम रब्बा.. एक रावण ऐसा ज़रूर करना ..
जो अपनी हकीक़तों के खौफ से कभी चैन से सो ही न सका
आखिरी नींद का सपना तो रब्बा .. मनभावन ऐसा ज़रूर करना ..
फूलों का साथ ले, जो राख बनकर घुला बहा जा रहा है
आज गंगा में मोक्ष उसका रब्बा ...एक पावन ऐसा ज़रूर करना
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-६, ५॰६, ६
औसत अंक- ५॰८६६७
स्थान- छब्बीसवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-४, ६॰१, ६, ५॰८६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰४९१६७
स्थान- पंद्रहवाँ
अंतिम जज की टिप्पणी-
सही स्थलों पर सही शब्दों का अभाव है। औसत रचना।
कला पक्ष: ४/१०
भाव पक्ष: ३॰५/१०
कुल योग: ७॰५/२०
स्थान- अठारहवाँ
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी रचना
फूलों का साथ ले, जो राख बनकर घुला बहा जा रहा है
आज गंगा में मोक्ष उसका रब्बा ...एक पावन ऐसा ज़रूर करना
बहुत खूब
प्रगति जी ,
प्रयास सराहनीय किंतु निरंतर प्रगति की आवश्यकता है, जो निरंतर लेखन से ही संभव है !
बहुत ही सुंदर बधाई
अच्छा प्रयास..
*** राजीव रंजन प्रसाद
अपने सारे ज़ख्मों को वो ठंडक का मरहम लगा पाये
एक दफ़ा ज़िंदगी में रब्बा ..एक सावन ऐसा ज़रूर करना ..
"बहुत सुंदर बधाई"
कोशिश अच्छी है, प्रयासरत रहें..
बहुत बहुत शुभकामनाये
aap sabki shubhkamnayon ke liye
bahut bahut dhanyavaad..
aise hi protsaahan dete rahen..
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