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Tuesday, March 18, 2008

समाजवाद बबुआ..



ल्हासा लाल हो गया है
साम्यवाद ने
खीसें निपोड़ कर कहा है
’धम्मम शरणम गच्छामि’
और पकड़-पकड़ कर तिब्बतियों के
फोड़े जा रहे हैं सर
कील लगे बूटों के सेलूट
खामोश होती गलियों, सड़कों और मठों पर
हुंकार रहे हैं – लाल सलाम।

अफ़ज़लों को पोसने वाले
इस देश की सधी प्रतिक्रिया है
दूसरों के फटे में अपनी टाँग क्योंकर?
वैसे भी यहाँ आज़ादी का अर्थ आखिर
दीवारों पर पिच्च से थूकना
या कि सड़कों पर
अनबुझे सिगरेट के ठुड्डे फेंकना ही तो है?
फिर सरकार की बैसाखियों का रंग लाल है
लेनिन के अंधे को लाल-लाल दिखता है
मजबूरी है भैया
जय गाँधी बाबा की।

घुप्प अंधकार में
जुगनू की चुनौती
कुचल तो दी जायेगी, तय है
और मेरी नपुंसक कलम
आवाज़ नहीं बन सकती, जानता हूँ।

दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।

*** राजीव रंजन प्रसाद
16.03.2008

छायाचित्र- मनुज मेहता

इस विषय पर पूरा कवरेज़- अपने पड़ोसी देश में रहने वाले लोगों के लिये दुखी हूँ

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

anuradha srivastav का कहना है कि -

हमेशा की तरह राजीँव जी ज्वलन्त विषय पर अपनी लेखनी चलाई है -और सफल रहें हैं।

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

आपकी प्रतिक्रिया सही है |
लेकिन जुल्म करने वाले इतने निर्दयी है कि उन्हें इससे कुछ नही होने वाला |

फ़िर भी एक रचनाकार इसी तरह आवाज़ बुलंद करता है |
-- अवनीश तिवारी

Unknown का कहना है कि -

ल्हासा लाल हो गया है
साम्यवाद ने
खीसें निपोड़ कर कहा है
’धम्मम शरणम गच्छामि’
और पकड़-पकड़ कर तिब्बतियों के
फोड़े जा रहे हैं सर
कील लगे बूटों के सेलूट
खामोश होती गलियों, सड़कों और मठों पर
हुंकार रहे हैं – लाल सलाम।
"अच्छे विषय पर अच्छी रचना , काश जुल्म करने वाले ये बात समझ पाएं ..."
Regards

विश्व दीपक का कहना है कि -

फिर सरकार की बैसाखियों का रंग लाल है
लेनिन के अंधे को लाल-लाल दिखता है

सत्य वचन!

राजीव जी,
आपकी रचना सही समय पर सही प्रतिक्रिया के रूप में आई है।तिब्बत में जो हो रहा है , वो नि:संदेह भीषण एवं शर्मनाक है। आशा करता हूँ कि इस नपुंसक एवं भीरू समाज पर आपकी रचना का असर हो।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

anju का कहना है कि -

बहुत खूब राजीव जी
दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
आपने तिब्बत्वासियों पर हो रहे अत्याचार के लिए जो लिखा है उसका असर अवश्य होगा

Sajeev का कहना है कि -

मेरा आक्रोश आपकी कविता में आ गया राजीव जी.... आपकी कलम नपुंसक नही......आपने मनुज के इन चित्रों के साथ भरपूर न्याय किया है..... थामे रहिये यूहीं सच्चे बयानों की मशाल ...

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

सही वक़्त पर सही आवाज़।

Unknown का कहना है कि -

राजीव जी आपकी कलम से हमेशा ऐसे ही कविता क़ी प्रतीक्षा मे रहते है
बहुत ही सुंदर रचना ..
जिन पर ये पंक्तिया तो बहुत ही सुंदर है..
"अफ़ज़लों को पोसने वाले
इस देश की सधी प्रतिक्रिया है
दूसरों के फटे में अपनी टाँग क्योंकर?
वैसे भी यहाँ आज़ादी का अर्थ आखिर
दीवारों पर पिच्च से थूकना
या कि सड़कों पर
अनबुझे सिगरेट के ठुड्डे फेंकना ही तो है?
फिर सरकार की बैसाखियों का रंग लाल है
लेनिन के अंधे को लाल-लाल दिखता है
मजबूरी है भैया
जय गाँधी बाबा की।"

Harihar का कहना है कि -

दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।

वाह राजीव जी

seema sachdeva का कहना है कि -

घुप्प अंधकार में
जुगनू की चुनौती
कुचल तो दी जायेगी, तय है
और मेरी नपुंसक कलम
आवाज़ नहीं बन सकती, जानता हूँ।

राजीव जी एक लेखक की कलम ही उसकी ताकत और आवाज़ होती है और यही आवाज़ एक दिन आज़ादी का फरमान भी लिखेगी | आपकी कविता पर कोई टिप्पणी कर सकू अपने आप को उस काबिल नही समझती | सीमा सचदेव

Anonymous का कहना है कि -

kavita jis jazbe ke saath likhi gai hai us jasbe ko salaam.

Anupama का कहना है कि -

kavita jis jazbe ke saath likhi gai hai us jasbe ko salaam.-Anupama

SahityaShilpi का कहना है कि -

तिब्बत में हुये इस दुष्कृत्य की जितनी भी निंदा की जाये कम है. चीन से अपने राजनैतिक संबंध सुधारने की उत्कंठा में हम अपनी मानवीय संवेदना को नहीं भूल सकते. स्वयं को साम्यवादी कहने वाले चीन का यह कदम उसके मानवीय समता के प्रति वास्तविक विचारों का मुँह-बोलता प्रमाण है.
राजीव जी! आपकी कलम से निकली यह रचना हम सबकी आवाज है.

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

घुप्प अंधकार में
जुगनू की चुनौती
कुचल तो दी जायेगी, तय है
और मेरी नपुंसक कलम
आवाज़ नहीं बन सकती, जानता हूँ।

दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।

- बहुत सुन्दर आवाज..

शोभा का कहना है कि -

tbansalराजीव जी
हमेशा की तरह एक सुंदर तथा बेहतरीन रचना-
दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।

बधाई

abhi का कहना है कि -

राजीव जी,
ज्वलंत विषय पर आपने बहुत अच्छा लिखा है तिब्बत में जो हो रहा है आपने अपनी कविता के मध्यम से सही चित्रित किया है. मुझे ' धम्मम शरणं गच्छामि ' और सड़कों और मठों पर हुंकार रहा है 'लाल सलाम' बहुत अच्छी लगी. हर पंक्ति एक आवाज़ है जिसे दूर तक जन चाहिए ऐसा मेरा मानना है.

Manuj Mehta का कहना है कि -

Namaskar rajeev ji

dhanyawad meri li hui tasviron ko kalam ke madhyam se awaz ke liye. bahut hi sarthkata hai aapki is kavita mein, jis tarah mera hriday Tibetan bhaiyon ke saath rehkar dukhi hua hai shayad humari aazadi se pehle ke parwano ka bhi raha hoga.
main to in Ahinsa ke pujariyon ke aage natmastak hun.

manuj mehta

Anonymous का कहना है कि -

समसामयिक घटना पर कडा प्रहार किया है राजीव जी आपकी रचनायें ह्रदय को झंकझोर देती हैं

Anonymous का कहना है कि -

कुछ लिखने को शब्द चाहिए और जब शब्द लाचारी महसूस करने लगें तो कोई क्या करे वाही कुछ हुआ है मेरा साथ पहले तो पूरा लेख पढ़ा फ़िर आप की कविता मै तो मूक होगई दर्द और गुस्से का अच्छा इज़हार है आप की कविता में .लेखनी की ताकत पे भरोसा रखें आवाज निकली है तो दूर तलक जायेगी
सादर
रचना

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