ल्हासा लाल हो गया है
साम्यवाद ने
खीसें निपोड़ कर कहा है
’धम्मम शरणम गच्छामि’
और पकड़-पकड़ कर तिब्बतियों के
फोड़े जा रहे हैं सर
कील लगे बूटों के सेलूट
खामोश होती गलियों, सड़कों और मठों पर
हुंकार रहे हैं – लाल सलाम।
अफ़ज़लों को पोसने वाले
इस देश की सधी प्रतिक्रिया है
दूसरों के फटे में अपनी टाँग क्योंकर?
वैसे भी यहाँ आज़ादी का अर्थ आखिर
दीवारों पर पिच्च से थूकना
या कि सड़कों पर
अनबुझे सिगरेट के ठुड्डे फेंकना ही तो है?
फिर सरकार की बैसाखियों का रंग लाल है
लेनिन के अंधे को लाल-लाल दिखता है
मजबूरी है भैया
जय गाँधी बाबा की।
घुप्प अंधकार में
जुगनू की चुनौती
कुचल तो दी जायेगी, तय है
और मेरी नपुंसक कलम
आवाज़ नहीं बन सकती, जानता हूँ।
दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।
*** राजीव रंजन प्रसाद
16.03.2008
छायाचित्र- मनुज मेहता
इस विषय पर पूरा कवरेज़- अपने पड़ोसी देश में रहने वाले लोगों के लिये दुखी हूँ
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
19 कविताप्रेमियों का कहना है :
हमेशा की तरह राजीँव जी ज्वलन्त विषय पर अपनी लेखनी चलाई है -और सफल रहें हैं।
आपकी प्रतिक्रिया सही है |
लेकिन जुल्म करने वाले इतने निर्दयी है कि उन्हें इससे कुछ नही होने वाला |
फ़िर भी एक रचनाकार इसी तरह आवाज़ बुलंद करता है |
-- अवनीश तिवारी
ल्हासा लाल हो गया है
साम्यवाद ने
खीसें निपोड़ कर कहा है
’धम्मम शरणम गच्छामि’
और पकड़-पकड़ कर तिब्बतियों के
फोड़े जा रहे हैं सर
कील लगे बूटों के सेलूट
खामोश होती गलियों, सड़कों और मठों पर
हुंकार रहे हैं – लाल सलाम।
"अच्छे विषय पर अच्छी रचना , काश जुल्म करने वाले ये बात समझ पाएं ..."
Regards
फिर सरकार की बैसाखियों का रंग लाल है
लेनिन के अंधे को लाल-लाल दिखता है
सत्य वचन!
राजीव जी,
आपकी रचना सही समय पर सही प्रतिक्रिया के रूप में आई है।तिब्बत में जो हो रहा है , वो नि:संदेह भीषण एवं शर्मनाक है। आशा करता हूँ कि इस नपुंसक एवं भीरू समाज पर आपकी रचना का असर हो।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बहुत खूब राजीव जी
दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
आपने तिब्बत्वासियों पर हो रहे अत्याचार के लिए जो लिखा है उसका असर अवश्य होगा
मेरा आक्रोश आपकी कविता में आ गया राजीव जी.... आपकी कलम नपुंसक नही......आपने मनुज के इन चित्रों के साथ भरपूर न्याय किया है..... थामे रहिये यूहीं सच्चे बयानों की मशाल ...
सही वक़्त पर सही आवाज़।
राजीव जी आपकी कलम से हमेशा ऐसे ही कविता क़ी प्रतीक्षा मे रहते है
बहुत ही सुंदर रचना ..
जिन पर ये पंक्तिया तो बहुत ही सुंदर है..
"अफ़ज़लों को पोसने वाले
इस देश की सधी प्रतिक्रिया है
दूसरों के फटे में अपनी टाँग क्योंकर?
वैसे भी यहाँ आज़ादी का अर्थ आखिर
दीवारों पर पिच्च से थूकना
या कि सड़कों पर
अनबुझे सिगरेट के ठुड्डे फेंकना ही तो है?
फिर सरकार की बैसाखियों का रंग लाल है
लेनिन के अंधे को लाल-लाल दिखता है
मजबूरी है भैया
जय गाँधी बाबा की।"
दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।
वाह राजीव जी
घुप्प अंधकार में
जुगनू की चुनौती
कुचल तो दी जायेगी, तय है
और मेरी नपुंसक कलम
आवाज़ नहीं बन सकती, जानता हूँ।
राजीव जी एक लेखक की कलम ही उसकी ताकत और आवाज़ होती है और यही आवाज़ एक दिन आज़ादी का फरमान भी लिखेगी | आपकी कविता पर कोई टिप्पणी कर सकू अपने आप को उस काबिल नही समझती | सीमा सचदेव
kavita jis jazbe ke saath likhi gai hai us jasbe ko salaam.
kavita jis jazbe ke saath likhi gai hai us jasbe ko salaam.-Anupama
तिब्बत में हुये इस दुष्कृत्य की जितनी भी निंदा की जाये कम है. चीन से अपने राजनैतिक संबंध सुधारने की उत्कंठा में हम अपनी मानवीय संवेदना को नहीं भूल सकते. स्वयं को साम्यवादी कहने वाले चीन का यह कदम उसके मानवीय समता के प्रति वास्तविक विचारों का मुँह-बोलता प्रमाण है.
राजीव जी! आपकी कलम से निकली यह रचना हम सबकी आवाज है.
घुप्प अंधकार में
जुगनू की चुनौती
कुचल तो दी जायेगी, तय है
और मेरी नपुंसक कलम
आवाज़ नहीं बन सकती, जानता हूँ।
दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।
- बहुत सुन्दर आवाज..
tbansalराजीव जी
हमेशा की तरह एक सुंदर तथा बेहतरीन रचना-
दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड़ में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड़ नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।
बधाई
राजीव जी,
ज्वलंत विषय पर आपने बहुत अच्छा लिखा है तिब्बत में जो हो रहा है आपने अपनी कविता के मध्यम से सही चित्रित किया है. मुझे ' धम्मम शरणं गच्छामि ' और सड़कों और मठों पर हुंकार रहा है 'लाल सलाम' बहुत अच्छी लगी. हर पंक्ति एक आवाज़ है जिसे दूर तक जन चाहिए ऐसा मेरा मानना है.
Namaskar rajeev ji
dhanyawad meri li hui tasviron ko kalam ke madhyam se awaz ke liye. bahut hi sarthkata hai aapki is kavita mein, jis tarah mera hriday Tibetan bhaiyon ke saath rehkar dukhi hua hai shayad humari aazadi se pehle ke parwano ka bhi raha hoga.
main to in Ahinsa ke pujariyon ke aage natmastak hun.
manuj mehta
समसामयिक घटना पर कडा प्रहार किया है राजीव जी आपकी रचनायें ह्रदय को झंकझोर देती हैं
कुछ लिखने को शब्द चाहिए और जब शब्द लाचारी महसूस करने लगें तो कोई क्या करे वाही कुछ हुआ है मेरा साथ पहले तो पूरा लेख पढ़ा फ़िर आप की कविता मै तो मूक होगई दर्द और गुस्से का अच्छा इज़हार है आप की कविता में .लेखनी की ताकत पे भरोसा रखें आवाज निकली है तो दूर तलक जायेगी
सादर
रचना
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