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Tuesday, March 18, 2008

निर्बंध हुआ है हर यौवन


सजनी रजनी तम चुनर ओढ़
अभिकम्पित शुभ्र ज्योत्सना से
होली आहट सुन जाग रही
चुपके चुपके से भाग रही

स्मित अधरों संग खुले नयन
सर पर नीरज द्रुम दल खिलते
अरुणिम अम्बर रंग भरा थाल
उषा बिखेरती है गुलाल

भावी सपने बिहगों के दल
नीले अम्बर में खोल पंख
बंदी पिंजर से हरिल खोल
उन्मुक्त भावना का बहाव

धानी परिधानों से सज्जित
अवनी आँचल से कनक लुटा
सजती क्षैतिज का ले दरपन
बौराई अमवा की डालें
झूमें खाकर मदमस्त भंग
यष्टि में फैलाती सुगंध

बादल निचोड़ ले मुठ्ठी से
कर डाल जलद घन से वर्षा
अम्बर तम मुख मल दे गुलाल
अंतस में स्नेह फुहार लिये
पापों की गठरी ले समेट
मन आंधी मैला कुत्सित मन
कर डाल आज होलिका दहन
चहुँओर निमंत्रण भावों का
निर्बंध हुआ है हर यौवन

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

anju का कहना है कि -

बादल निचोड़ ले मुठ्ठी से
कर डाल जलद घन से वर्षा
अम्बर तम मुख मल दे गुलाल
अंतस में स्नेह फुहार लिये
बहुत खूब श्री कान्त जी
हर बार की तरह बहुत बढिया रचना

Harihar का कहना है कि -

स्मित अधरों संग खुले नयन
सर पर नीरज द्रुम दल खिलते
अरुणिम अम्बर रंग भरा थाल
उषा बिखेरती है गुलाल

बहुत सुन्दर ! श्रीकान्त जी

Sajeev का कहना है कि -

आप तो होली के रंगों में डूब गए हैं अभी से, चलिए मुबारक को आपको रंगों का ये त्यौहार

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

विशुद्ध मौलिक और समयानुकूल प्राकृतिक अल्हरपन के साथ साथ युगीन परिस्थितियों व तद्जन्य विद्रूपताओं को ससमाधान समेटे सुंदर कविता के लिए साधुवाद !

seema gupta का कहना है कि -

सजनी रजनी तम चुनर ओढ़
अभिकम्पित शुभ्र ज्योत्सना से
होली आहट सुन जाग रही
चुपके चुपके से भाग रही
"बहुत खूब श्री कान्त जी "
Regards

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सुन्दर होली मुबारक

seema sachdeva का कहना है कि -

होली की शुभकामनाएं और एक रंग भरी रचना के लिए बधाई ....सीमा सचदेव

Alpana Verma का कहना है कि -

बादल निचोड़ ले मुठ्ठी से
कर डाल जलद घन से वर्षा
अम्बर तम मुख मल दे गुलाल
अंतस में स्नेह फुहार लिये

बहुत सुंदर पंक्तियाँ--
-होली का रंगों भरा त्यौहार आप सब को भी मुबारक हो!
***रचना के साथ रंगों भरी तस्वीर भी अपेक्षित थी-जो श्रीकांत जी की कविताओं की ख़ास पहचान हैं.

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सजनी रजनी तम चुनर ओढ़
अभिकम्पित शुभ्र ज्योत्सना से
होली आहट सुन जाग रही
चुपके चुपके से भाग रही

स्मित अधरों संग खुले नयन
सर पर नीरज द्रुम दल खिलते
अरुणिम अम्बर रंग भरा थाल
उषा बिखेरती है गुलाल

-क्या बात है कांत जी..
प्राकृतिक उपमाओ से होली का स्वागत..
और सारी की सारी उपमाये आई.एस.आई मार्क

बहुत बहुत बधाई
शुभ होली..

शोभा का कहना है कि -

श्रीकान्त जी
कविता को पढ़कर लग रहा है कि होली तो होली । अति सुन्दर बिम्ब और भाव भरी रचना है-
धानी परिधानों से सज्जित
अवनी आँचल से कनक लुटा
सजती क्षैतिज का ले दरपन
बौराई अमवा की डालें
झूमें खाकर मदमस्त भंग
यष्टि में फैलाती सुगंध

ए क सुन्दर रचना के लिए बधाई

Anonymous का कहना है कि -

बहुत खूब श्री कान्त जी आपने बहुत ही बेहतर डंग से आपने होली के रंगों को कैनवस पर उतारा है बधाई

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

श्री कांत जी ...वाह ...बहुत समय बाद कविता पढने में मजा आ गया
शब्द चयन बहुत सुंदर ...!भावना प्रवाहमय ...!प्राकृतिक उपादानों से भरे बिम्ब ..!
किस शब्द को पृष्ट पर लिखूं और कह दूँ ..अति सुंदर ..?न ..न ..ध्वनि-ध्वनि में
गुलाल है ...शब्द-शब्द में स्नेह फुहार है ...आत्मीयता का रंग है ...साधुवाद ..नमन आप की लेखनी को .....

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