सजनी रजनी तम चुनर ओढ़
अभिकम्पित शुभ्र ज्योत्सना से
होली आहट सुन जाग रही
चुपके चुपके से भाग रही
स्मित अधरों संग खुले नयन
सर पर नीरज द्रुम दल खिलते
अरुणिम अम्बर रंग भरा थाल
उषा बिखेरती है गुलाल
भावी सपने बिहगों के दल
नीले अम्बर में खोल पंख
बंदी पिंजर से हरिल खोल
उन्मुक्त भावना का बहाव
धानी परिधानों से सज्जित
अवनी आँचल से कनक लुटा
सजती क्षैतिज का ले दरपन
बौराई अमवा की डालें
झूमें खाकर मदमस्त भंग
यष्टि में फैलाती सुगंध
बादल निचोड़ ले मुठ्ठी से
कर डाल जलद घन से वर्षा
अम्बर तम मुख मल दे गुलाल
अंतस में स्नेह फुहार लिये
पापों की गठरी ले समेट
मन आंधी मैला कुत्सित मन
कर डाल आज होलिका दहन
चहुँओर निमंत्रण भावों का
निर्बंध हुआ है हर यौवन
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
बादल निचोड़ ले मुठ्ठी से
कर डाल जलद घन से वर्षा
अम्बर तम मुख मल दे गुलाल
अंतस में स्नेह फुहार लिये
बहुत खूब श्री कान्त जी
हर बार की तरह बहुत बढिया रचना
स्मित अधरों संग खुले नयन
सर पर नीरज द्रुम दल खिलते
अरुणिम अम्बर रंग भरा थाल
उषा बिखेरती है गुलाल
बहुत सुन्दर ! श्रीकान्त जी
आप तो होली के रंगों में डूब गए हैं अभी से, चलिए मुबारक को आपको रंगों का ये त्यौहार
विशुद्ध मौलिक और समयानुकूल प्राकृतिक अल्हरपन के साथ साथ युगीन परिस्थितियों व तद्जन्य विद्रूपताओं को ससमाधान समेटे सुंदर कविता के लिए साधुवाद !
सजनी रजनी तम चुनर ओढ़
अभिकम्पित शुभ्र ज्योत्सना से
होली आहट सुन जाग रही
चुपके चुपके से भाग रही
"बहुत खूब श्री कान्त जी "
Regards
बहुत सुन्दर होली मुबारक
होली की शुभकामनाएं और एक रंग भरी रचना के लिए बधाई ....सीमा सचदेव
बादल निचोड़ ले मुठ्ठी से
कर डाल जलद घन से वर्षा
अम्बर तम मुख मल दे गुलाल
अंतस में स्नेह फुहार लिये
बहुत सुंदर पंक्तियाँ--
-होली का रंगों भरा त्यौहार आप सब को भी मुबारक हो!
***रचना के साथ रंगों भरी तस्वीर भी अपेक्षित थी-जो श्रीकांत जी की कविताओं की ख़ास पहचान हैं.
सजनी रजनी तम चुनर ओढ़
अभिकम्पित शुभ्र ज्योत्सना से
होली आहट सुन जाग रही
चुपके चुपके से भाग रही
स्मित अधरों संग खुले नयन
सर पर नीरज द्रुम दल खिलते
अरुणिम अम्बर रंग भरा थाल
उषा बिखेरती है गुलाल
-क्या बात है कांत जी..
प्राकृतिक उपमाओ से होली का स्वागत..
और सारी की सारी उपमाये आई.एस.आई मार्क
बहुत बहुत बधाई
शुभ होली..
श्रीकान्त जी
कविता को पढ़कर लग रहा है कि होली तो होली । अति सुन्दर बिम्ब और भाव भरी रचना है-
धानी परिधानों से सज्जित
अवनी आँचल से कनक लुटा
सजती क्षैतिज का ले दरपन
बौराई अमवा की डालें
झूमें खाकर मदमस्त भंग
यष्टि में फैलाती सुगंध
ए क सुन्दर रचना के लिए बधाई
बहुत खूब श्री कान्त जी आपने बहुत ही बेहतर डंग से आपने होली के रंगों को कैनवस पर उतारा है बधाई
श्री कांत जी ...वाह ...बहुत समय बाद कविता पढने में मजा आ गया
शब्द चयन बहुत सुंदर ...!भावना प्रवाहमय ...!प्राकृतिक उपादानों से भरे बिम्ब ..!
किस शब्द को पृष्ट पर लिखूं और कह दूँ ..अति सुंदर ..?न ..न ..ध्वनि-ध्वनि में
गुलाल है ...शब्द-शब्द में स्नेह फुहार है ...आत्मीयता का रंग है ...साधुवाद ..नमन आप की लेखनी को .....
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