कवि सुदर्शन गुप्ता जो झालावाड़ (राजस्थान) से हैं, हिन्द-युग्म पर प्रतियोगिता के लिए बिलकुल नये हैं। १६वें स्थान की इनकी कविता में ऐसा क्या है, चलिए देखते हैं।
पुरस्कृत कविता- आग ज़ज़बातों की लगाकर
कोई मेरी सांसों को छूकर गुजर गया,
आग जज़बातों में लगा कर गुजर गया
मेरी मसरूफियत का आलम न पूछो,
खुद से मिले हुए अरसा गुजर गया
जिसका इन्तज़ार था सालों से मुझे वो,
दरवाजा-ए-दिल पे दस्तक देकर गुजर गया
तेरे जाने के बाद अब रोता हूँ मैं हाय,
कितनी जल्दी वस्ल का आलम गुजर गया
यूँ भी हुआ मुहब्बत में कि मिलने से पहले,
कई दफ़ा मैं उसकी गली से गुजर गया
ये ग़मों की धूप भी कैसी है मौसम,
कल जो दोस्त था आज बिना देखे गुजर गया
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-६, ६, ६॰७
औसत अंक- ६॰२३३३
स्थान- तेरहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-५, ५॰५, ६, ६॰२३३३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰६८३३३
स्थान- बारहवाँ
अंतिम जज की टिप्पणी-
कोई शेर चमत्कृत नहीं करता, पुरानापन और पुनरावृत्तियाँ हावी हैं।
कला पक्ष: ४/१०
भाव पक्ष: ४॰५/१०
कुल योग: ८॰५/२०
स्थान- सोलहवाँ
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
जिसका इन्तज़ार था सालों से मुझे वो,
दरवाजा-ए-दिल पे दस्तक देकर गुजर गया
"बहुत सुंदर शेर , क्या कहने, बहुत अच्छा लिखा है बधाई"
Regards
नवीनता का अभाव...
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुदर्शन जी ग़ज़ल अच्छी है
किंतु वही सब बात है जो कही सुनी हुई है नयापन नही है
btiwari2007सुदर्शन जी , आप के शेर बहुत अच्छी है विशेषतः; दूसरी
"झलवार" को ठीक करके झालावाड कर लीजिये।
और प्रयास की जरूरत है, शुभकामनायें..
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