विश्व पुस्तक मेला २००८ ने हिन्द-युग्म को कई कवियों से नवाज़ा है। रमेश अनु से तो आप रूबरू हो चुके हैं, आज हम उत्तराखंड के ग़ज़लगो महावीर रावत 'मसिरा उत्तराँचली' की एक ग़ज़ल से आपका परिचय करवा रहे हैं, यह ग़ज़ल १५वें स्थान पर रही।
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
हो रही है शा'इरी मेरी ज़बाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
देखना ये बात घूमेगी कहाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
पाप थे शायद पुराने जन्म-जन्मों के कोई
क़हर क्यों टूटा है वरना ये कहाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
जान लेगा जब वो तेरी बेवफ़ा सच्चाइयाँ
मर मिटेगा तेरा आशिक़ फिर जहाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
हो मदारी या तवायफ़ पेट भरने के लिए
हर तमाशा अंत तक होता यहाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
आए थे हम सब अकेले और अकेले जाएँगे
मौत आएगी हमें जाने कहाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-६, ६॰५, ६॰६
औसत अंक- ६॰३६६७
स्थान- पाँचवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-८,७ , ७, ६॰३६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰०९१६७
स्थान- पहला
अंतिम जज की टिप्पणी-
बहुत से शब्द इस्तेमाल हुए लेकिन हर शे'र से कथ्य कम-कम निकल पाया..
कला पक्ष: ४॰५/१०
भाव पक्ष: ४॰५/१०
कुल योग: ९/२०
स्थान- पंद्रहवाँ
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह महावीर जी
शायरी निकलेगी आपकी कलम से ख़ुद-ब-ख़ुद
तो तारीफ निकलेगी दिल से ख़ुद-ब-ख़ुद
हो मदारी या तवायफ़ पेट भरने के लिए
हर तमाशा अंत तक होता यहाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
वाह क्या बात है.....
बहुत खूब बधाई
जान लेगा जब वो तेरी बेवफ़ा सच्चाइयाँ
मर मिटेगा तेरा आशिक़ फिर जहाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
" कमाल का शेर है, अच्छा लगा"
Regards
औसत...
*** राजीव रंजन प्रसाद
वाह बहुत खूब
पाप थे शायद पुराने जन्म-जन्मों के कोई
क़हर क्यों टूटा है वरना ये कहाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
जान लेगा जब वो तेरी बेवफ़ा सच्चाइयाँ
मर मिटेगा तेरा आशिक़ फिर जहाँ से ख़ुद-ब-ख़ुद
अच्छा लगा आपका खुद-ब-खुद
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