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Sunday, March 16, 2008

कुछ भाव, कुछ शब्द


१.
परत-दर-परत
तहजीबों के चिथड़े
उतार फेंके।

हवा आती है अब!
अब बेफ़िक्र जीता हूँ।

२.
वह अर्श
आशियाना बना फिरता था।
नंगों ने
हाथ बढाकर चिथड़े कर डाले उसके।

सच है-
भूख अपना-पराया नहीं जानती।

३.
तुम्हारे दर से कई बार
अनकहे लौटा हूँ।

कहते हैं-
खुदा भी नैनों के बोल समझता है।

४.
अमूमन हर शाम
कोसता हूँ खुद को,
अमूमन हर रात
मैं मर जाता हूँ।

बाबूजी को दमा था
और मैं कपूत...

अब मैं भी बाप हूँ।

५.
तुम्हारे टेरेस का
वह नन्हा पीपल
जो
ढँकता था चाँद को ...तुमसे,
सुना है जल गया है।

कहा था ना!
शहर का माहौल ठीक नहीं।

६.
१३ अंश २० कला-
स्वाति नक्षत्र
और एक चातक!

उसने कहा था-
प्यार ऎसा हीं होता है।

कल सरहद पर शहीद हो गया वह।

लोग कहते हैं कि
दसियों साल से कैंसर था उसे।

देशप्रेम!
प्यार इसी को कहते हैं ना?


-विश्व दीपक ’तन्हा’

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

anju का कहना है कि -

तनहा जी रचना अच्छी है
आपबीती और सामाजिक चीजों को अच्छे शब्दों में पिरोया गया है
भाव थोड़ा मुश्किल है
बधाई अच्छी रचना के लिए

Anonymous का कहना है कि -

बहुत मार्मिक ,बहुत खूब बधाई

Anonymous का कहना है कि -

कम शब्दों में काफ़ी कुछ कह जाने की आपकी क्षमता को बयां करती है आपकी ये कविता ...........a treat for me and all your readers.

Harihar का कहना है कि -

तुम्हारे दर से कई बार
अनकहे लौटा हूँ।

कहते हैं-
खुदा भी नैनों के बोल समझता है।

बहुत खूब तन्हाजी

Sajeev का कहना है कि -

परत-दर-परत
तहजीबों के चिथड़े
उतार फेंके।

हवा आती है अब!
अब बेफ़िक्र जीता हूँ।

तनहा जी सब बहुत ही परिपक्व लघु कवितायें है सब के सब, एक से बढ़ कर एक.....लाजावाब, आनंद आ गया...वाह

Anonymous का कहना है कि -

भाव शब्द और प्रतीकों का अच्छा समन्वय | बधाई!

seema gupta का कहना है कि -

तुम्हारे दर से कई बार
अनकहे लौटा हूँ।

कहते हैं-
खुदा भी नैनों के बोल समझता है।
" बहुत खूब, अच्छे भाव"
Regards

Kavi Kulwant का कहना है कि -

तन्हा जी..खूबसूरत..

रंजू भाटिया का कहना है कि -

तुम्हारे दर से कई बार
अनकहे लौटा हूँ।

कहते हैं-
खुदा भी नैनों के बोल समझता है।

दिल को छू लेने वाली रचना है ..यह विशेष रूप से पसंद आई .!!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

तनहा जी,

बेहतरीन भाव और श्रेष्ठतम शब्द...। "जहाँ काम आवै सुई, कहाँ करै तलवारि" और यह बात तनहा जी की लघु-कवितायें और क्षणिकायें बेहतर जानती हैं।

बधाई स्वीकारें।

***राजीव रंजन प्रसाद

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बढिया

अवनीश तिवारी

Unknown का कहना है कि -

तन्हा जी बहुत ही अच्छी रचना है ..
बहुत ही सुंदर शब्द है आपकी डिक्शनरी में
और ये तो बहुत ही सुंदर है ...

"अमूमन हर शाम
कोसता हूँ खुद को,
अमूमन हर रात
मैं मर जाता हूँ।

बाबूजी को दमा था
और मैं कपूत...

अब मैं भी बाप हूँ।"

विपुल का कहना है कि -

बहुत खूब तन्हा जी बहुत अच्छा लिखा है आपने... यह वाली क्षणिका बहुत अच्छी लगी !

तुम्हारे टेरेस का
वह नन्हा पीपल
जो
ढँकता था चाँद को ...तुमसे,
सुना है जल गया है।

कहा था ना!
शहर का माहौल ठीक नहीं।

शोभा का कहना है कि -

तनहा जी
सुन्दर क्षणिकाएँ लिखी हैं आपने । मुझे यह क्षणिका सबसे अच्छी लगी-
तुम्हारे दर से कई बार
अनकहे लौटा हूँ।

कहते हैं-
खुदा भी नैनों के बोल समझता है।
साधुवाद

Alok Shankar का कहना है कि -

तनहा भाई , ये अच्छा लगा , लेकिन सबका एक शीर्षक दे देते तो और भी अच्छा था .पहला और आखिरी वाला सबसे सुंदर लगे

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