प्रतियोगिता की २५ वीं कविता मॉरिशस निवासी गुलशन की है। गुलशन अपने अन्य हिन्दी प्रेमी साथियों के साथ मॉरिशस में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं।
कविता- टिश्यू पेपर
टिश्यू पेपर बना रखा है तुमने मुझे
और अपने आस पास के सभी लोगों को
तुम्हारे हर काम में इस्तेमाल किया जाने वाले
तुम्हारी हर गन्दगी को साफ़ करने वाले
कोई विशेष हुनर दिखता हैं तुममें
कि हर बार बिना किसी औपचारिकता के
प्रयोग कर जाते हो हमारा
अन्दर तक गन्दला कर जाते हो हमें
और खुद साफ़ रहते हो
एकदम ‘क्लीन’
एक प्रार्थना हैं फिर भी
कि फेंक दिया करो
इस्तेमालशुदा टिश्यू पेपर
फ़्लश कर दिया करो
बार बार प्रयोग करने से
हमारी गन्दगी तो बढ़ती ही है
तुम भी साफ नहीं रह पाते हो
अब तो तुमसे
अजीब सी
उबकाई देने वाली
बदबू आने लगी है...
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
14 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुन्दर कविता !
टिश्यू पेपर शायद प्रतीक बन कर आते
तो कविता ज्यादा सुन्दर बन सकती थी।
विभत्स्य रस में कलम चलाते हुए कथ्य को अस्पष्ट रखना कवि को भारी पड सकता है। पाठक पहले ही रचना नाक भौं सिकोड कर पढता है फिर रचना से निराश भी हो तो....
*** राजीव रंजन प्रसाद
टिश्यू पेपर का पर्तीक देकर आपने जो फैलती सामाजिक बुराई को कहने का प्रयास किया है ,use aap poori tarah se kah nahee paaye,baat nahee jamee (kshama chaahungee)
बार बार प्रयोग करने से
हमारी गन्दगी तो बढ़ती ही है
तुम भी साफ नहीं रह पाते हो
अब तो तुमसे
अजीब सी
उबकाई देने वाली
बदबू आने लगी है...
से आपने अगर थोड़ा सा और आगे सोचा होता टू आपके तिशु पेपर के प्रतीक के साथ कविता बहुत अच्छी बन padhatee
शाब्बाश गुल्लू भाई !
अरे, ये आधुनिक बिम्ब आपने ढूंढा कहाँ से ! और बड़ी साफगोई से युगीन सच्चाई बयां कर गए ! बढ़िया है ! कोशिश जारी रखिये !
वह तिश्यु पेपर के मध्यम से जो भाव पोड़ा करने की कोशिश्स की है वो अन्तायाँ ही प्रशंशानिया है ..
समाज के प्रति आपका किया गाया यह व्यंग्य निश्चय ही लोगों में क्रत्न्ति लाएगा.
बहुत सटीक कहा समाज पर बहुत खूब बधाई
तिस्सू पेपर का माद्यम अच्छा है लेकिन विषय और संदेश सामान्य लगा |
अवनीश
गुलशन जी,
एक साथ कई स्तरों पर बुद्धि और भावोंसे सन्मुख करानेवाली रचना !
बहुतही बढिया , लिखते रहियेगा ....
गुलशन जी पहले तो एक बार गंदगी की और धयान जाता है किंतु समाज की बुराइयाँ प्रस्तुत कराती है आपकी कविता
अच्छी नही कह सकूंगी
वैसे बुरी भी नही कह रही
ठीक ठीक है
मुझे अच्छी लगी आपकी कविता.... गहरी सोच....और बेहतर लिखते रहिये
badhiya bhai...hunar hai,
अच्छी लगी आपकी कविता....
राजीव जी के कमेंट्स से सहमत हूँ.
एक पाठक के रूप में मुझे कभी भी इस प्रकार के प्रतीक पसंद नहीं आते.
न ही इन पर लिखी कवितायें .
लेकिन सभी कवितायें सभी को पसंद आ जायें ऐसा बहुत कम होता है.
आप का एक अलग पाठक और प्रशंसक वर्ग हो सकता है.
लेकिन सामान्य वर्ग इसे पसंद नही करेगा,ऐसा मेरा मानना है..
[माफ़ करियेगा ]
बहुत कुछ कहते हुए भी अस्पष्ट सी कविता है , वैसे अच्छा लिखा गया है .
पूजा अनिल
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)