बहुत देर तक,
यूहीं तकता रहा मैं,
परिंदों के उड़ते हुए काफिलों को,
बहुत देर तक,
यूहीं सुनता रहा मैं,
सरकते हुए वक्त की आहटों को,
बहुत देर तक,
डाल के सूखे पत्ते,
भरते रहे रंग आँखों में मेरे,
बहुत देर तक,
शाम की डूबी किरणें,
मिटाती रही जिंदगी के अंधेरे,
बहुत देर तक,
मेरा मांझी मुझको,
बचाता रहा भंवर से उलझनों की,
बहुत देर तक,
वो उदासी को थामे,
बैठा रहा दहलीज पे धडकनों की,
बहुत देर तक,
उसके जाने के बाद भी,
ओढा रहा मैं उसकी परछाई को,
बहुत देर तक,
उसके एहसास ने,
सहारा दिया मेरी तन्हाई को,
बहुत देर तक...
हाँ ... बहुत देर तक ...
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
वह किसिस के इंतजार की परिदाती अऔर् वियोग की भावना का अच वरण किया है आपने...
बहुत देर तक,
डाल के सूखे पत्ते,
भरते रहे रंग आँखों में मेरे,
बहुत देर तक,
शाम की डूबी किरणें,
मिटाती रही जिंदगी के अंधेरे,
बहुत ही सुन्दर कविता!
हमेशा की तरह "मखमली अहसासों" पर खूबसूरत शब्द...
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत देर तक,
मेरा मांझी मुझको,
बचाता रहा भंवर से उलझनों की,
और
बहुत देर तक,
उसके एहसास ने,
सहारा दिया मेरी तन्हाई को,
पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ......सीमा सचदेव
सजीव
अब तुम सब के साथ बहुत अच्छे से खेलने लगे हो बहुत देर तक एक बहुत बेहतरीन कविता है
सजीव
अब तुम सब के साथ बहुत अच्छे से खेलने लगे हो बहुत देर तक एक बहुत बेहतरीन कविता है
बहुत देर तक...
हाँ ... बहुत देर तक ...
ये कविता बहुत याद आती रही,
मेरे मानस को बरबस लुभाती रही !
बहुत देर तक...
हाँ ... बहुत देर तक ...
धन्यवाद !
सजीव जी
भावों को सुंदर रूप मैं वाणी दी है-
बहुत देर तक,
उसके जाने के बाद भी,
ओढा रहा मैं उसकी परछाई को,
बहुत देर तक,
उसके एहसास ने,
सहारा दिया मेरी तन्हाई को,
ऐसा होता है अक्सर संवेदन शील लोगों के saath
बहुत देर तक ,
याद रहेगी यह कविता ....
हाँ....... ,बहुत देर तक .
बहुत बढिया
पूजा अनिल
बहुत देर तक,
उसके एहसास ने,
सहारा दिया मेरी तन्हाई को,
बहुत देर तक...
हाँ ... बहुत देर तक ...
अन्तिम पंक्तियों में बड़ा ही बढ़िया भाव है
सुंदर अभिव्यक्ती…
बहुत देर तक,
उसके जाने के बाद भी,
ओढा रहा मैं उसकी परछाई को,
बहुत देर तक,
उसके एहसास ने,
सहारा दिया मेरी तन्हाई को,
-- खूबसूरत है |
अवनीश
kavita padhne mein uttam hai...
baandh kar rakhti hai बहुत देर तक ,
हाँ....... ,बहुत देर तक .
nikhil anand giri
शब्द अच्छे लगे पर भाव में खास कुछ नहीं लगा।
बहुत देर तक,
उसके जाने के बाद भी,
ओढा रहा मैं उसकी परछाई को,
बहुत देर तक,
उसके एहसास ने,
सहारा दिया मेरी तन्हाई को,
बहुत देर तक...
हाँ ... बहुत देर तक ...
अच्छी लगी आपकी यह रचना सजीव जी ...:)
अच्छी रचना
बहुत खूब सजीव जी
बहुत देर हो गई अब जाग जाइये बुरा न मानिएगा
अति सुंदर
ओढा रहा मैं उसकी परछाई को,
बहुत देर तक,
उसके एहसास ने,
सहारा दिया मेरी तन्हाई को,
-सीधी सरल सुंदर कविता.
भावाभिव्यक्ति में सफल.
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