तुम मिले तो धूप भी, छत-मकान हो गई
झुक गई थी जो नजर, तन कमान हो गई
राह की दुशवारियों से, अब कोई शिकवा नहीं
साथ जो तेरा मिला, मेरी राहें आसान हो गई
सिमटी सी चाहतों को जैसे, पँख हों मिल गये
हसरतें फ़िर से आज एक, खुली उडान हो गई
दिल से निकल बरसों, होठों पर जो रुकी रही
वो अनकही बातें सभी, खुलकर बयान हो गई
इक तमन्ना उदास लहरों पर डूबती उतराती रही
छू लिया झुककर चांद ने जब, आसमान हो गई
रात के अंधेरों में रंग,सूर्ख-चाँदनी का भर गया
छोटी सी दुनिया मेरी, तारों का जहान हो गई
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
रात के अंधेरों में रंग,सूर्ख-चाँदनी का भर गया
छोटी सी दुनिया मेरी, तारों का जहान हो गई
तुम मिले, तो न जाने क्यों धूप, छाँव हो गई
हार खुदबखुद आज जैसे, जीता दांव हो गई
"वाह बहुत सुंदर , सुबह सुबह इतनी अच्छी कवीता पढ़ कर बहुत अच्छा लगा, ये पंक्तियाँ खासकर"
Regards
मोहिन्दर जी,
सुबह सुबह दिल खुश हो गया... मज़ा आ गया श्रीमन
सिमटी सी चाहतों को जैसे, पँख हों मिल गये
हसरतें फ़िर से आज एक, खुली उडान हो गई
दिल से निकल बरसों, होठों पर जो रुकी रही
वो अनकही बातें सभी, खुलकर बयान हो गई
इक तमन्ना उदास लहरों पर डूबती उतराती रही
छू लिया झुककर चांद ने जब, आसमान हो गई
रात के अंधेरों में रंग,सूर्ख-चाँदनी का भर गया
छोटी सी दुनिया मेरी, तारों का जहान हो गई
बहुत सुन्दर..
दिल से निकल बरसों, होठों पर जो रुकी रही
वो अनकही बातें सभी, खुलकर बयान हो गई
वाह वाह ... किसी कवि ने कहा है बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी ... मोहिंदर जी बहुत बढ़िया सुंदर रचना है - सुरिंदर रत्ती, मुम्बई
अच्छी ग़ज़ल है |
लेकिन एक शंका है - मतले के दो शेरों का काफिया और अन्य शेरों का काफिया मुझे मेल खाता नही लगा ?
क्या मेरी शंका सही है ?
अवनीश तिवारी
पंकज सुबीर जी की नाराजगी देखते हुये मैने अपनी रचना की पहली दो पक्तियां बदल दी हैं... और साथ ही लेबल गीत से बदल कर गजल कर दिया है... पता नहीं अभी भी यह कितने प्रतिशत गजल बनीं है... पाठक ही बता पायेंगे.....
मोहिंदर जी ग़ज़ल अच्छी है
सिमटी सी चाहतों को जैसे, पँख हों मिल गये
हसरतें फ़िर से आज एक, खुली उडान हो गई
यह पंक्तियाँ अच्छी है
किंतु यहाँ उतराती रही शब्द कुछ अजीब सा लग रहा है
इक तमन्ना उदास लहरों पर डूबती उतराती रही यहं डूबती रही ही लिखे तो केसा होगा
भाव पसंद आए
अंजु जी,
रचना आप को पसन्द आई इसके लिये शुक्रिया...
"लहरों पर" जो वस्तु होगी वो लहरों के स्वभाव के अनुसार उपर नीचे "डूबती और उतराती" ही प्रतीत होगी... :)
मोहिन्दर जी!
उम्दा गज़ल है।
बस
दूसरे शेर में "राहें " की जगह" राह ", तीसरे में "आज एक " की जगह " आज" और पाँचवे में "डूबती उतराती " की जगह कोई भी एक शब्द डालते तो आपकी गज़ल "बहर" में आ जाती। मेरा मतलब कि परफेक्ट हो जाती ।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बेंतेहा खूबसूरत चाँद सितारों के दुनिया में पहुँचा दिया ,बहुत बधाई
मोहिन्दर जी,
गज़ल की संरचना पर प्रश्न हो सकते हैं किंतु रचना की उत्कृष्ठता पर कोई प्रश्न नहीं..
दिल से निकल बरसों, होठों पर जो रुकी रही
वो अनकही बातें सभी, खुलकर बयान हो गई
बहुत अच्छी रचना..
*** राजीव रंजन प्रसाद
मोहिन्दर जी
मुझे आपकी रचना अच्छी लगी । आपकी सबसे अच्छी बात यह है कि आप अन्तः प्रेरणा से लिखते हैं । एक कवि के लिए यह काफी है -
इक तमन्ना उदास लहरों पर डूबती उतराती रही
छू लिया झुककर चांद ने जब, आसमान हो गई
तुम मिले तो धूप भी मकान हो गई
झुकी हुई थी जो नजर कमान हो गई
सिमटी सी चाहतों को जैसे पँख मिल गये
और हसरतों की फ़िर से इक उडान हो गई
दिल से निकल के अब तलक थी होठ पर रुकी
वो अनकही सी बात अब बयान हो गई
लहरों पे डूबती थी उतरती थी तमन्ना
छूआ जेा चांद ने तो आसमान हो गई
रातों के अंधेरों में तुम्हारे कदम पड़े
दुनिया मेरी ये तारों का जहान हो गई
मोहिंदर जी ,
सुधार के लिए धन्यवाद.
इस उदाहरण के जरिये हमे कुछ ग़ज़ल के सीख याद रहेंगे |
अवनीश तिवारी
मोहिंदर जी !
मतला ऐ गजल बदला तो बखान हो गयी
आपकी विनम्रता और भाव से महान हो गयी
मोहिन्दर जी,आपकी गज़ल के बारे मे क्या कहुं इसके सिवा
तमाम अल्फ़ाज़ नज़र से जिगर में उतर गये
खामोश लब हुए बंद ये जुबान हो गयी
मोहिन्दर जी! आपकी विनम्रता को सलाम!
अब यदि इस गज़ल की बात करें तो इसमें बहर का दोष स्पष्ट नज़र आता है. रदीफ़ मिलाने के प्रयास में कहीं-कहीं व्याकरण दोष भी आ गया है. (जैसे ’मेरी राहें आसान हो गई’ में शब्द ’गई’ की जगह वयाकरण की दृष्टि से ’गईं’ होना चाहिये था)
आशा है कि अगली बार एक बेहतर गज़ल पढ़ने को मिलेगी.
जरुरी बदलाव के बाद ग़ज़ल अब खूबसूरत बन पड़ी है मोहिंदर जी.... i appreciate.....
सिमटी सी चाहतों को जैसे, पँख हों मिल गये
हसरतें फ़िर से आज एक, खुली उडान हो गई
दिल से निकल बरसों, होठों पर जो रुकी रही
वो अनकही बातें सभी, खुलकर बयान हो गई
बहुत अच्छे लगे यह ..भाव बहुत अच्छे हैं इसके .!!
एक बेहद उम्दा गजल
आलोक सिंह "साहिल"
nice ghazal...par bahar mein kuch
sheron mein fark laga mujhe...bhaav bahut achhe hain...
mohinder ji...badhai sweekar karein...
इक तमन्ना उदास लहरों पर डूबती उतराती रही
छू लिया झुककर चांद ने जब, आसमान हो गई
क्या बात है...अच्छी लगी गज़ल।
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