पाठ क्रमांक 10 मैं आज निराश हूं और निराशा के पीछे कारण जो है वो भी यहीं पर लगा रहा हूं । नीचे एक ग़ज़ल लगा रहा हूं जो कि मेरे ही पिछले सारे पाठों को खारिज करते हुए हिन्द युग्म पर लगी है । और दो महानुभावों ने भूरि भूरि प्रशंसा भी कर दी है । पिछले कई सारे दिनों से जो मैं सिखा रहा था वो ऐसा लग रहा है कि सब कुछ व्यर्थ हो गया है । अब आप ही बताइये कि मैं कक्षा जारी रखूं या नहीं आपके सुझाव केवल इसलिये मांग रहा हूं कि अगर आप कहेंगें तो मैं कल आगे का पाठ लगा दूंगा बात केवल बहर की नहीं है बात तो ये है कि काफिया तो वो चीज है जिसको हम पिछली कक्षाओं में देख रहे थे और शायद कोई बच्चा भी देख कर बता देगा कि छांव और आसान की तो तुक ही नहीं है । मैं कहना चाहता हूं हिन्द युग्म पर कविताओं का चयन करके उनको पृष्ठ पर लगाने वाले संपादक महोदय से कि कृपया एक बार देखें जरूर मैं किसी बड़ी ग़लती की तरफ इशारा नहीं कर रहा हूं ये तो आम सी गलती है जो नजर में आनी ही चाहिये । नहीं तो उन लोगों के साथ अन्याय होगा जो मेहनत करके ग़ज़ल लिख रहे हैं । अगर आप मेहनत करने वालों और नहीं मेहनत करने वालों , सीखने की इच्छा रखने वालों और सीखने की बिल्कुल इच्छा नहीं रखने वालों को एक ही साथ रखेंगें तो मुश्किल होगी । मैं खिन्न हूं और इसीलिये अपनी खिन्नता दर्शा भी रहा हूं । मैं केवल ये चाहता हूं कि प्रकाशन से पूर्व एक बार देखें तो सही कि क्या प्रकाशित हो रहा है । और यदि आपको लगता है कि कहीं कुछ सुधार की गुंजाइश है तो कवि को कहें कि एसा कुछ कर लिया जाए । खैर जैसा आप चाहें
तुम मिले, तो न जाने क्यों धूप, छाँव हो गई
हार खुदबखुद आज जैसे, जीता दांव हो गई
राह की दुशवारियों से, अब कोई शिकवा नहीं
साथ जो तेरा मिला, मेरी राहें आसान हो गई
सिमटी सी चाहतों को जैसे, पँख हों मिल गये
हसरतें फ़िर से आज एक, खुली उडान हो गई
दिल से निकल बरसों, होठों पर जो रुकी रही
वो अनकही बातें सभी, खुलकर बयान हो गई
इक तमन्ना उदास लहरों पर डूबती उतराती रही
छू लिया झुककर चांद ने जब, आसमान हो गई
रात के अंधेरों में रंग,सूर्ख-चाँदनी का भर गया
छोटी सी दुनिया मेरी, तारों का जहान हो गई
तुम मिले, तो न जाने क्यों धूप, छाँव हो गई
हार खुदबखुद आज जैसे, जीता दांव हो गई
रात के अंधेरों में रंग,सूर्ख-चाँदनी का भर गया
छोटी सी दुनिया मेरी, तारों का जहान हो गई
तुम मिले, तो न जाने क्यों धूप, छाँव हो गई
हार खुदबखुद आज जैसे, जीता दांव हो गई
"वाह बहुत सुंदर , सुबह सुबह इतनी अच्छी कवीता पढ़ कर बहुत अच्छा लगा, ये पंक्तियाँ खासकर"
मोहिन्दर जी,
सुबह सुबह दिल खुश हो गया... मज़ा आ गया श्रीमन
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
पंकज जी, यह तो दिख रहा है दांव और आसान काफिया नहीं मिल रहे इस रचना में रदीफ़ मोहिंदर जी ने मिला दी है, मोहिंदर इस रचना को ग़ज़ल मानते है तो काफिया ग़लत है, अगर वो इस रचना को एक साधारण रचना की तरह लेते हैं तो चलेगा, हाँ ये हो सकता है मोहिंदर जी ने ये रचना पहले लिखी हो और वह ध्यान न दे पाए हों मैं उनका बचाव नहीं कर रहा, पंकज जी आपने जो कार्य शुरू किया है वह जारी रखें, खिन्न होने की बात नहीं है, आपने जो सिखाया उसके लिए धन्यवाद. सुरिंदर रत्ती मुम्बई.
अभी अभी हिन्दयुग्म खोला तो पंकज जी की निराशा को पढ़ा। और फिर जब मोहिन्दर जी की रचना को पढ़ा तो लगा कि हाँ, पंकज जी की नाराजगी सही है। काफिये के नियमों का सीधा उल्लंघन है। पर पंकज जी, पाठकों की परीक्षा तो अब शुरू हुई है। मोहिन्दर जी और पढ़ने वालों से गलती हुई, आपने टोक दिया।सही किया। अब दोबारा अगर गलती होती है तो सजा के हक़दार हैं। पर आपसे निवेदन है कि आप अपनी कक्षायें जारी रखें। यहाँ हम पाठकों को काफिये की प्रेक्टिकल सीख मिल गई है। असली परीक्षा तो प्रेक्टिकल कर के ही होती है। हम फेल हुए पर बार बार नहीं होंगे ये हम पर यकीन रखें। आप युग्म पर पोस्ट हो रहीं गज़लों पर नज़र रखें। आप इनमें सुधार अवश्य देखेंगे। अगली कक्षा का इंतज़ार रहेगा।
धन्यवाद
पंकज जी,
शायद आपने मेरी रचना का लेबल ध्यान से नहीं देखा मैने उसे गजल नहीं कहा है गीत कहा है...
आप मुझे नालायक विद्यार्थी समझ कर जो सीखना चाह रहे हैं उन्हें सीखाना जारी रखें.. एक के लिये सब का नुकसान हो यह ठीक नहीं होगा.
प्रिय कवि मित्रो, मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूँ, अगर आपको किसी की कोई रचना अच्छी न लगे तो अच्छा हो आप उनको ईमेल कर सूचित करें क्या ग़लत था उस रचना में, यूं तो रचना कार कुछ सोच कर ही कोई लाइन लिखते हैं उसने वह लाइन क्यों लिखी ये तो वो ही जानता है, नए कवियों से गलती हो सकती है पर एक दिन कोई कवि नहीं बन जाता है अनुभव उसे सिखाते हैं, और वो लेखनी में सुधार लाता है, अगर मैंने कुछ ग़लत कहा हो तो क्षमा करे. सुरिंदर रत्ती, मुम्बई
Pankaj Ji is doing very good and appreciable job. His anger is also justified but rachnakar has not posted his poem as a Gazal.
पंकज जी मैं ये नही कहना चाहती की आपका कहना सही नही है, आप अपनी जगह सही हैं . मगर हाँ ये जरुर कहूंगी की मैं एक बहुत ही साधारण सी पाठक हूँ जिसको इन सब बातों का ज्ञान नही है, और एक साधारण सी रचना पढ़ कर भी मुझे बहुत अच्छा लगता है. जो दोष और कमियां आप देख सकतें हैं वो मैं कदापि नही देख सकती. आप की नाराजगी जायज है, मगर गुरु तो हमेशा गुरु होता है ना . आप अपना कार्य जारी रखें और हम भी कोशिश करेंगे की आप से सीख सकें.
Regards
कबीर सा रा रा रा रा रा रा रा रारारारारारारारा
जोगी जी रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा री
गुरूजी,
मुझे भी यही लगा और मैंने यह शंका जताई भी है |
मोहिंदर जी जैसे किसी शख्स से ऐसा होना नही जंचा | :(
लेकिन ऐसी कोई कक्षा नही जन्हा गलती ना हो |
ऐसी ही सीखा जायेगा | गलती सुधर जायेंगी |
अवनीश तिवारी
पंकज जी,
आपकी खिन्नता और उदासी समझी जा सकती है किंतु आपको हिन्द युग्म का मंच विश्वास अवश्य दिला सकता है कि आपकी कक्षायें वृथा नहीं जा रहीं। मोहिन्दर जी का स्पष्टीकरण पर्याप्त है।
आपकी कक्षाओं का ही असर है कि अपनी प्रकाशित करने के लिये लगभग तैयार पुस्तक से मैने अपनी सारी गज़ले हटा लीं है। जब तक उन्में यथोचित तत्वों का समावेश नहीं होगा, प्रकाशित नहीं करूंगा। आपकी कक्षाओं के कारण ही मैने अपनी कोई भी नयी गज़ल हिन्द-युग्म पर प्रकाशित भी नहीं की है...आपके सिखाये जाने को पूरी गंभीरता से लिया जा रहा है। कृपया खिन्न न हों...
*** राजीव रंजन प्रसाद
पंकज जी,
आपकी नाराज़गी जायज है। पर, छात्रों से भूल तो हो हीं जाती है। अब देखिए तो आपकी नाराज़गी को जानकर मोहिन्दर जी ने अपनी गज़ल के शुरू के दो शेर बदल दिए हैं। मेरे विचार से अब , रदीफ और काफिया दुरूस्त हो गया है। आप ऎसा न सोचें कि छात्र सीखना नहीं चाह रहे। आपने डाँट पिला दी ना। देखिए इसका असर कितना जल्द हुआ। इसलिए आप खिन्न न हों।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
गुरु जी की नाराजगी को ध्यान रखते हुये मैने अपनी रचना की पहली दो पंक्तियों में परिवर्तन किया है... साथ ही अब लेवल गीत से बदल कर गजल कर दिया है....... पता नहीं कितने प्रतिशत गजल बनी है... गुरु जी ही बता सकते हैं
पंकज जी आप की निराशा जायज है किंतु गुरु अगर शिष्य से ऐसे रूठ जाए तो अच्छा नही होगा
हम चाहेंगे की आप अपनी कक्षा जारी रखे , शिष्य तो गलती करता है मगर गुरु सुधार देता है
यह गलती आम गलती थी किंतु आप निराश न होए आप अपनी कक्षा दे हम ध्यान से और लगन से सीखेंगे
दुःख है की आप निराश हुए
आगे आपको निराशा नही होगी
गुरूजी आप सिखाना जरी रखे ,हम भी सीम्स जी की भाति
साधारण से कविता को अच्छा जन लेते है ,कोई नुक्स दिखता ही नही ,अभी तो ग़ज़ल समझना शुरुवात है हमारी ,धीरे धीरे ही सीखेंगे ,कुछ छात्रों को बार बार एक ही चीज़ बतानी होती है ,तब जाके सीखते है ,हम भी उन में से है
पंकज जी आप निराश न हों आपकी मेहनत जरूर सफ़ल होगी आप हुमें युं ही सिखाते रहियेगा गज़ल लिख्नना सरल कार्य नहीं है धीरे धीरे हम सीख जायेंगे
और आप्को यकीन दिलाते है एक दिन एक बेहतरीन गज़ल आपके सामने होगी
मोहंदेर जी आपने अपनी रचना मे जो बद्लाव किया है वाकई काबिल-ए-तारीफ़ है आपकी गज़ल मे जान आ गयी है
पंकज जी! आपकी नाराज़गी जायज़ है, परंतु किसी छात्र के एक गलती कर देने भर से गुरु का कक्षा ही छोड़ देने का विचार कुछ समझ नहीं आता. और फिर मोहिन्दर जी ने पूरी विनम्रता से अपनी गलती मानकर अपेक्षित सुधार का प्रयास भी किया है.
इसके अलावा एक बात मैं यहाँ रचनाओं के संपादन के बारे में और कहना चाहूँगा. यद्यपि इस संदर्भ में अधिक व आधिकारिक जानकारी तो नियंत्रक महॊदय ही दे सकते हैं परंतु हिन्द-युग्म के विषय में जहाँ तक मैं जानता हूँ, यहाँ प्रकाशित प्रत्येक रचना को संपादित करने का दायित्व स्वयं रचनाकार का ही होता है. कोई अन्य संपादक विशेष इस काम को नहीं करता.
आपकी अगली कक्षा का मुंतज़िर
- अजय यादव
पंकज जी, मैं जानता हूँ कि आप खिन्न अवश्य हैं पर नाराज़ नही, यह एक wake up call है आपका, मुझे लगता है कि आज के बाद हर रचनाकार अपनी रचना डालने से पहले और भी सतर्क हो जाएगा, यही तो फायदा है एक अच्छे गुरु का दूसरे छोर पर होने का, जैसा कि अजय जी ने कहा, कि यहाँ रचना कार ख़ुद अपनी रचना के लिए जिम्मेदार है और यही वो खूबी है जो युग्म, को दूसरों से अलग करता है, और यकीन मानिये पंकज जी यहाँ हर कोई इस जिम्मेदारी को बखूबी समझता है, मोहिंदर जी जिस विनर्मता का परिचय दिया, वो आपके सामने है, और फ़िर आप जो भी सिखा रहे हैं उनका असर होने में थोड़ा सा समय तो लगेगा गुरूजी, रातों रात हम बदलाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं, ....... नए परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है......
गुरू जी आप कक्षा जारी रखिये और इम्तहान की तिथी बताईये ।
देखिये आपकी कक्षा के कारण हमने एक गज़ल लिखी हैं जो काफ़िये के नियम का पालन कर रही है ।
बहर का पता नहीं ।
उदास रात की कोई सुबह हसीन नहीं ।
नहीं आँसमां मेरा ,मॆरी कहीं ज़मीन नहीं ।
मैं खूशबू बन के हवा में नहीं बसती ,
मैं कोई किरणों की तरह भी महीन नहीं ।
मुझे ख्वाबों में मत तराश अभी ,
उडती तितली की तरह, मैं कोई रंगीन नहीं ।
दफ़न कर या जला दे अब मुझको ,
ज़िस्म में रूह नहीं ,अब कोई तौहीन नहीं ।
बुझ गया ये “दीप” ,सुबह के सितारे के लिये ,
खुश हूँ मिट कर भी , मैं कोई गमगीन नहीं ।
२ शेर और भी हैं । जो आप को हमारे ब्लोग पर मिलेगे ।
अब तो गुरू जी आप मानेगे के हम पढ रहे है और उपयोग भी कर रहें हैं ।
आप की प्रतिक्रिया का इन्तजार रहेगा साथ ही हम समझे जायेगे के आप नराज़ भी नहीं है हम से
http://hemjyotsana.wordpress.com
नही नही निराश न होए सच जानिए हम जैसे बहुत से पाठक है जो सचमुच अपने पुराने लिखे मे गलतियों को दुरस्त कर रहे है.ओर कुछ चीजे ऐसी है जिन्हें जानना ओर समझना बेहद जरूरी है ,वैसे भी लोग आलोचना तो कर देते है पर explain नही करते की क्यों आलोचना की है .वैसे भी लेखक ने गजल कहकर यहाँ पोस्ट नही की है........सच जानिए लोग आपको पढ़ रहे है.......आप जरी रहिये
गुरुजी..इतनी बड़ी सजा तो न दीजिए। आप का खिन्न होना समझ में आता है लेकिन आपकी डाँट का असर तो आप देख ही चुके ऐसे में उम्मीद है कि हमें निराश नहीं करेंगे।
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