तेरी वो सहेली कहती है
कि भूल जाऊं तुझे
और मैं उसकी आँखों में आँखें डालकर
आत्मविश्वास के साथ कहता हूं
कि भूल चुका हूं।
मैं अन्धा हो गया हूं
और रात भर छत पर उल्टा लटककर
चमगादड़ों की तरह
गुमनाम आवाज़ों की राह तकता हूं;
मैं भागता हूं बेतहाशा,
इतना कि थक जाऊं,
इतना कि पसीने में डूब जाए
मेरा सारा दिमाग
और मिट जाए उसके भीतर का
सब उजला- मैला।
मैं दुनिया भर की किताबें पढ़ता हूं,
सार्थक-निरर्थक सब,
फ़िल्में देखता हूं अनवरत,
घर की एक-एक चीज
बिखेरता हूं
और फिर समेट कर, सहेज कर
रखने लगता हूं;
अनजान लोगों को
बुला लाता हूं
खाने पर घर
कि वे बतियाते रहें उल्टी-सीधी,
जैसी भी
ज़माने भर की बातें;
सड़क पर चलते हुए
भिखारियों से पूछने लगता हूं
हाल-चाल,
गिनने लगता हूं
बगल से गुजरती
मालगाड़ियों के डिब्बे,
आँगन में बैठकर
बच्चों की तरह
कुरेदता रहता हूं
बेचारी चींटियों के बिल;
इतनी तेज आवाज़ में
चलाता हूं टी.वी.
कि भीतर कुछ टूटे
तो सुनाई न दे छन-छन
और फिर भी
किसी एक क्षण
मेरी सब कोशिशों को नाकाम करती हुई
चीरती चली आए तेरी याद
तो पानी उबालता हूं भगोने में
और अपने पैरों पर
उड़ेल लेता हूं।
मासूम फफोले
कहाँ कुछ याद रख पाते होंगे फिर....
सुन,
तेरी वो सहेली कहती है
कि भूल जाऊं तुझे
और मैं उसकी आँखों में आँखें डालकर
आत्मविश्वास के साथ कहता हूं
कि भूल चुका हूं।
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32 कविताप्रेमियों का कहना है :
गौरव .....
पीता हूँ जैसे तुम्हारी रचनाओं को जैसे स्वास और टिपण्णी को रोकना जैसे स्वास निरोध और फ़िर भी मेरा अंतस ..... टिपण्णी करने को कुलबुलाने लगता है. जानता हूँ भविष्य की संकुचित चादर तुम्हारे रचनाकार को समेट पाने के लिए छोटी ही पड़ेगी. इसीलिए चुप रहा करता हूँ कि कोमल सा जन्म लेता रचनाकार ... टिपण्णी करते हुए ... कहीं वो कोमल फूल जैसी रचनाएँ ... मेरे हाथों ... मैली न हो जाएं
स्नेह
प्रेम पर लिखी गई एक शानदार कविता, सच किसी को भुलाना इतना आसन नही होता. पीडा, दर्द, संवेदना क्या कुछ नही दिखता आपकी रचना मैं. गौरव जी मैं आपका कायल हो गया हूँ . बधाई स्वीकार करे
प्रिय गौरव
हमेशा की तरह भावावेग से पूरित कविता लिखी है
मैं अन्धा हो गया हूं
और रात भर छत पर उल्टा लटककर
चमगादड़ों की तरह
गुमनाम आवाज़ों की राह तकता हूं;
मैं भागता हूं बेतहाशा,
इतना कि थक जाऊं,
इतना कि पसीने में डूब जाए
मेरा सारा दिमाग
और मिट जाए उसके भीतर का
विचारों का प्रवाह पाठक को बाँध लेता है और हृदय की स्पष्टता दिल को छू जाती है। इसी प्रकार अपने दर्द को वाणी देते रहो। आशीर्वाद सहित
मैं तो हमेशा से ही आपका प्रशंसक रहा हूँ......सो इस बारइसकी पुनरावृत्ति नहीं करूंगा बसा इतना ही की कविता हमेशा की तरह शानदार थी....
पर जिस तरह आप हमेशा उद्वेलित करतें है वो चमत्कार अपनी उस सीमा को नहीं छू पाया.....
शुभकामनायें
दिमाग का पसीने में डूब जाना वास्तव में एक सुन्दर उपमान है
और....
इतनी तेज आवाज़ में
चलाता हूं टी.वी.
कि भीतर कुछ टूटे
तो सुनाई न दे छन-छन
......
और एक बात और...कि...सहेली के द्वारा अपनी बात कहलवाना एक सामान्य बात है.....पर उसे कविता में उतारना... असामान्य .......
आपकी सामान्यता अथवा विशेषता पर बधाई और शुभ्कमंयें एक बार फिर
एक एक शब्द चिर कर घुसा है दिल में तीर की तरह,किसीको भुलाना आसन नही,बहुत सुंदर भाव है प्रेम के लिए बधाई
गौरव भाई...आजकल रात तक थक जा रहा हूँ...एक गलती कर दी...िफर पढ ली आपकी कविता...आज िफर जागते हुए रात कटेगी....
गौरवजी कविता का शीर्षक पढ़ते ही समझ गया था कि आप ही हैं|हमेशा की तरह इस बार भी बहुत अच्छा लिखा आपने |
गौरव जी भावों पर आपकी पकड़ अद्भुत है और उन्हें शब्दों में पिरोने की कला भी|पर एक बात जो मुझे हमेशा चुभती है वह यह कि आप सिर्फ़ प्रेम पर लिखा करते हैं |
प्रेम के सिवा और भी चीज़े हैं ज़माने में! देखिए आपने एक बार क्षणिका में लिखा था कि " तुम्हारा ईश्वर क्या नींद की गोलियाँ लेता है ? "
यह पंक्ति कई दिनों तक मेरे मस्तिष्क में घूमती रही|
व्यक्तिगत बात हमेशा सामूहिक बात से कम महत्व की होती है ऐसा मुझे लगता है |
इस क्षणिका की ही तरह फिर से कुछ जलता हुआ सा आपकी लेखनी से निकलता देखना चाहूँगा !
बहुत सुंदर. कितना सहज ... कितनी सहजता से. जैसे दिल की बात दिल तक पहुँचती हुई. क्या बात है भाई .. वाह !
गौरव! श्रीकांत जी की टिप्पणी के बाद कुछ और कहने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है, पर पीयूष जी की बात से मेरी भी सहमति है कि यह कविता आपकी पूर्ववर्ती कई रचनाओं के मुकाबले कुछ कमज़ोर है.
गौरव, सब ने बहुत कहा है, अब मुझमें कुछ कहने की गुंजाइश ही नहीं बची है। बस इतना कहना चाहता हूँ कि ऐसे समय न पोस्ट करें कि दूसरों की नींद खो जाये। मैं आपके कविता लिखने के अंदाज़ का कायल हूँ। कैसे दिन भर में होने वाली अलग अलग क्रियाओं से कविता बना लेना.....हर बार की तरह निस्संदेह एक साँस में पढ़ी जाने वाली कविता। हर सप्ताह आपकी कविता का इंतज़ार रहता है। पिछली बार जो "पी" होती है उसका "नशा" तो उतरता नहीं कि फिर पी लेते हैं। डरता हूँ कि कहीं ओवरडोज़ न हो जाये। पर शायद उस बेहोशी में भी मज़ा है।
गौरव इस बात पर मेरी पंजाबी कविता का अनुवाद सुनो
जब भी मैं निकलता हूं सफर पर
याद आता है
तुम्हारे साथ किया सफर
फिर सोचता हूं कि
जिंदगी भी तो है एक सफर
इस लिए तुम्हें
कभी न भुला पाता
मालूम है मुझे
न आओगी तुम
न बुलाओगी तुम
न आना
न बुलाना
न याद रखना मुझे
चाहो तो अपने हाथों से
विष का प्याला दे देना
मगर याद रखना
तुम मुझे
हर्गिज न कहना
तुम्हें भूल जाने को
बस क्या लिखूं गौरव जी
आप निश्चय ही हिन्दी-युग्म के गौरव हैं
अच्छी कविता लिखी है।
gaurav...chamgadarhon ki tarah latka hun...maza aa gaya...keep writing
विषय पुराना है, पर फिर भी तुम उसमे नयापन भरने में कमियाब रहे हो, कविता का प्रवाह बहुत बढ़िया है..... हर चित्र बखूबी उभरकर आता है....
प्रिय गौरव,
अब तो हम भी कविता के शीर्षक से तुम्हे पहचानने की कोशिश करने लगे....
अच्छी कविता।
क्या कहूं क्या न कहूं नि:शब्द हूं आपकी इस रचना के सामने। पीडा, दर्द, संवेदना, हर भाव की प्रभावी अभिव्यक्ती है......और अल्फ़ाज़ नहीं है मेरे पास इस रचना के समकक्ष
गौरव जी,
तेरी वो सहेली कहती है
मगर हमसे तो तेरी वो शैली कहती है
कि भूल जाऊँ..
और मैं आत्मविश्वास के साथ कह्ता हूँ
कि भूल चुका हूँ...
खुद को तेरी कविता में..
achchhi hai
bhulne ke liye insan kya kuchh nahi karta lekin apno ko bhulana itna aasan nahi hota sapno ko dhul me milte dekhkar ka bhi nahi tilmlana itna aasan nahi hota kis ko dil me basakar dil se bahar ka rasta dikhana itna bhi aasan nahi hota
very good
lekin dekho pani ko kewal garam kar liya karo ubalne me jayda gas kharch hoti hai
गौरव भाई,एक शब्द में "बेहतरीन"
अलोक सिंह "साहिल"
गौरव जी, प्रवाह बहुत अच्छा है। आपकी शैली का कायल हुँ।
Its too good, this poem if i said is as powerful as Muktibodhs' poems are.
मेरी सब कोशिशों को नाकाम करती हुई
चीरती चली आए तेरी याद
तो पानी उबालता हूं भगोने में
और अपने पैरों पर
उड़ेल लेता हूं।
मासूम फफोले
कहाँ कुछ याद रख पाते होंगे फिर....
सुन,
तेरी वो सहेली कहती है
कि भूल जाऊं तुझे
और मैं उसकी आँखों में आँखें डालकर
आत्मविश्वास के साथ कहता हूं
कि भूल चुका हूं।
"बहुत नाजुक दिल को जक्झोर देने वाली पंक्तियाँ , किसी को भुलाना भी आसान नही होता , भुलाने की नाकाम कोशिश का मार्मिक चित्रण , बहुत अच्छी रचना "
Regards
संवेदनाओं के तुम से चितेरे बिरले ही हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
कि भीतर कुछ टूटे
तो सुनाई न दे छन-छन
और फिर भी
किसी एक क्षण
मेरी सब कोशिशों को नाकाम करती हुई
चीरती चली आए तेरी याद !!
गौरव जी,
आप अद्भुत प्रतिभा के धनी हैं ! शब्द शिल्पी भी हैं ! किंतु आपको कैसी घाव लगी है, जिसकी पीड़ा आपकी कविताओं में अनवरत प्रवाहित होती रहती है ! अन्यथा न लें तो, लगभग हर रचना का कथ्य एक ही होता है ! प्रबंध काव्य या काव्य श्रृंखला के लिए तो यह प्रयास स्तुत्य है, किंतु पृथक-पृथक रचना की दृष्टि से एकरसता, गौरव सोलंकी से कुछ नए की अपेक्षा रखने वाले पाठकों को थोड़ा मायूस करती है !
लेकिन, सच कहूँ तो आपकी यह रचना भी पिछली रचनाओं की भांति मुझे बहुत पसंद आयी !
गौरव जी , "तेरी वो सहेली कहती है" सुन्दर प्रेम कविता । आजकल ऐसा प्रेम कम ही दिखता है।
परंतु सच्चा प्रेम यही है, जो भुलाए नही भुलता।
बहुत-बहुत बधाई!
गौरव!
साधारण बिंबों का असाधारण प्रयोग जिस तरह से तुम करते हो, शायद हीं कोई करता हो।
बधाई स्वीकारो।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
भावनाओं की गहरायी और उन से जुड़े हालातों का अनूठा संगम आपकी कविता में जान पड़ा .....बहुत ही मार्मिक कविता .....अच्छी लगी
अनिल कान्त
मेरा अपना जहान
saaagar ke recommdation pe tumhari blog visit karne. or usi ka kaha ek shabd duhra raha hoon " ADBHUT ". OR KUCH NAHI
GR8
KEEP IT UP .
SATYA
kal phir mujhe tum raah main mil gaye aise
jaise mil jaye koi achhi khabar namumkin
us lamhe jo guzra wohi ishq tha shayad
warna arse talak aisa asar namumkin
Gaurav, koi bhool jaye to aap ki tarah bhoole, warna yaad rakhke jeena to ham bhi seekhe hue hain
अत्यन्त खूबसूरत और अंता:मन पर अंकित होने वाली कविता है।
अपने ब्लॉग का भी लिकं प्रस्तुत कर रहा हूँ। आपके आगमन की सुभेच्छा के साथ, साभार।
http://kavya-srijan.blogspot.in/
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