खेल बना खिलवाड़,खिलाड़ी बिक गये भैया
बोली बन गयी बॉल, बॉल से बड़ा रुपैया
आठ बाउंड्री का बँटवारा एक ही घर में
दिल्ली मुम्बई कलकत्ता कुछ चंडीगढ़ में
पेशा बन गया खेल,खेल अब बन गया पैसा
फिरे बेचता हुनर, खिलाडी बन गया ऐसा
खेल-दलालों ने ऐसी स्टम्प लगाई
हिट-विकिट स्टम्प कैच सब एक दम भाई
उचक-उचक के छक के मारें चौके छक्के
दिखे बॉल की जगह रुपैया, सब भोंचक्के
तुम भी जाओ चढ़ जाओ जल्दी से लपक के
खड़ी खेल की रेल, जाम हैं सारे चक्के
थोड़ा सा पैसा दो और प्रतिष्ठा पाओ
खड़े खड़े क्यूँ मुहुँ ताकते भाई जाओ
इससे पहले कोचवान, कोई हाँके गाड़ी
मारो कुछ खेरीज बखेरी, बनो खिलाड़ी
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
थोड़ा सा पैसा दो और प्रतिष्ठा पाओ
खड़े खड़े क्यूँ मुहुँ ताकते भाई जाओ
इससे पहले कोचवान, कोई हाँके गाड़ी
मारो कुछ खेरीज बखेरी, बनो खिलाड़ी
"हा हा हा हा, बहुत खूब, हास्य व्यंग से भरपूर कवीता , अच्छी लगी "
Regards
आपने लेखन की अपनी ही शैली बना की है जो अनूठी भी है और रोचक भी..अच्छी कविता।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत सही भूपेंद्र जी। पिछली कविताओं की तरह ही अच्छा व्यंग्य।
थोड़ा सा पैसा दो और प्रतिष्ठा पाओ
खड़े खड़े क्यूँ मुहुँ ताकते भाई जाओ
इससे पहले कोचवान, कोई हाँके गाड़ी
मारो कुछ खेरीज बखेरी, बनो खिलाड़ी
इस बार का हास्य भी बहुत अच्छा लगा राघव जी ..:)
राघव जी ,
"बाल की बोली" सुन्दर व्यंग्य रचना ।
दलाली के दलदल में जब सब कुछ धँसता जा रहा है,तब हमें ही सचेतक की तरह नज़र रखनी होगी।
यह प्रयास जारी रहे।
अन्त्यानुप्रास अलंकार की सुंदर छटा सुगम शब्दों की सजावट उस पर चुटीली शैली ! क्या यह भूपेंद्र जी की कविताओं का परिचय नही है ?
सत्यम् शिवम् सुंदरम् !!
हा हा हा,
अपुन तो ओवर ऐज हो गईल भैया जी
राघव जी
अच्छा लिखा है। यथार्थ के करीब भी पर अभी तो टीम जीती है। कुछ दिन तो के लिए तो बख्श दीजिए बेचारों को।
सस्नेह
बहुत ही मज़ेदार सुंदर कविता बधाई
बहुत ही बढ़िया प्रयाश है वर्तमान जगत की विसंगतियों को प्रदर्शित करने का ...
बहुत ही गहरा भाव है जो सर्वदा प्रशंशानिया है
अच्छा व्यंग्य है, राघव जी! बधाई!
अच्छा है |
अवनीश
अच्छा हास्य-व्यंग्य है भूपेन्द्र जी। ऎसी हीं रचना पेश करते रहें, हिन्द-युग्म पर हर रस की आवश्यकता है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
मजेदार.......
वाह बहुत ही मजेदार हास्य से भरपूर रचना है मुबारक हो
राघव जी अच्छी कविता
आलोक सिंह "साहिल"
तुम भी जाओ चढ़ जाओ जल्दी से लपक के
खड़ी खेल की रेल, जाम हैं सारे चक्के
थोड़ा सा पैसा दो और प्रतिष्ठा पाओ
खड़े खड़े क्यूँ मुहुँ ताकते भाई जाओ
राघव जी, मज़ेदार!!
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