कल हमने अनिल जींगर की कविता 'ख़त साँस लेते हैं' प्रकाशित की। जिस तरह कवि अनिल जींगर हिन्द-युग्म के लिए नये हैं, उसी तरह आज प्रकाशित हो रही कविता 'सफ़र' के रचयिता अनुराग आर्या इस मंच के लिए नये हैं।
पेशे से डॉक्टर कवि अनुराग आर्या उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में त्वचा-रोग विशेषज्ञ के रूप में प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं। गुलज़ार, जावेद अख़्तर, मुजफ्फ़र वरसी, मुनव्वर राना, बशीर बद्र, निदा फ़ाजली इनके प्रिय शायरों में है और कमलेश्वर, फणीश्वर नाथ रेणु व शिवानी हिन्दी लेखकों में खास प्रिय हैं। इन्होंने MBBS और PG की पढ़ाई राजकीय मेडिकल कॉलेज़, सूरत से की है।
पुरस्कृत कविता- सफ़र
हर शब
सफ़र करती है
कई रगों का,
कई मोड़ों पे ठहरती है
जमा करती है कुछ लफ़्ज
और रखकर
"मायनों" को अपनी पीठ पर
सीने दर सीने फिरती है
आवाज दे देकर जब ढूंढ़ता है शायर
थकी हुई
किसी स्याही से लिपटी हुई
किसी सफ़हे पे सोई मिलती है
थामो हाथ तो ........
नब्ज़ रुकी-रुकी सी मिलती है
इन आवारा नज़्मों की उम्र मगर बहुत लंबी होती है
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-५, ५॰७, ७॰०५
औसत अंक- ५॰९१६६७
स्थान- उन्नीसवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰५, ६॰२, ५, ५॰९१६६७(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰१५४१६६
स्थान- पाँचवाँ
अंतिम जज की टिप्पणी-
बेहतरीन रचना। आवारा नज़्म और शायर की मन:स्थिति को बखूबी बयाँ करती है रचना।
कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १६/२०
स्थान- चौथा
पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
उत्कृष्ट रचना..... मर कर भी नहीं मरती ये आवारा नज़्म...
थामो हाथ तो ........
नब्ज़ रुकी-रुकी सी मिलती है
-- आपके पेशे से मेल खाती है ये पंक्तियाँ |
उत्तम रचना |
अवनीश तिवारी
bahut badhiya ,sabit hua ki aap "GULJAR " ji ke fan hai. sach me is nazm kiumr bhi lambi rahegi.
waah anuraag ji... atyant sundar....
is nazm ki umra wakai main bahut lambi hai..
badhaai swikar kare
दिल से कही गयी एक आवारा नज्म जो साथ साथ चलती है
बहुत खूब
कई रगों का,
कई मोड़ों पे ठहरती है
जमा करती है कुछ लफ़्ज
और रखकर
"मायनों" को अपनी पीठ पर
सीने दर सीने फिरती है
::
इन आवारा नज़्मों की उम्र मगर बहुत लंबी होती है
::
नज़्म का सफ़र और उमर....... आप ही के शब्दो में लिखे तो ........ :)
मेरे रास्ते मे अक्सर आकर खड़े हो जाते है
मेरे कद से बड़े है मेरी शोहरत के साये
: बहोत खूब ..... ये नज़्म हमेशा से मेरी FAV. रही है...
anurag,
bahut-2 badhai....ye nazm aapki mujhe pehle se hi pasand hai....hamari duayein ki aap hamesha aise hi likhte rahein.....
थामो हाथ तो ........
नब्ज़ रुकी-रुकी सी मिलती है
इन आवारा नज़्मों की उम्र मगर बहुत लंबी होती है
अनुराग जी बहुत बहुत बधाई
आपकी इस सुंदर नज्म के लिए शुभकामनाये आपको
डॉक्टर साहब बहुत बढिया
नबज मतलव बजने वाली नब्ज है
ऐसी ही नजम मतलव जमने वाली नज्म की उमीद आगे भी
बहुत बहुत शुभकामनायें..
ढेरों बधाईयाँ..
अनुराग जी बहुत बहुत बधाई
आपकी इस सुंदर नज्म के लिए मैं सिर्फ़ यही कहुंगा कि आपने गागर में सागर भर दिया है
किसी स्याही से लिपटी हुई
किसी सफ़हे पे सोई मिलती है
थामो हाथ तो ........
नब्ज़ रुकी-रुकी सी मिलती है
इन आवारा नज़्मों की उम्र मगर बहुत लंबी होती है
बहुत सुंदर लिखी है .यह पंक्तियाँ विशेष रूप से पसंद आई !!
हमेशा की तरह्…बहुत खूब
anurag sach hai in aawara nazmon ki umr bahut lambi hoti hai...
nice to see you here...
अच्छी नज्म,बधाई स्वीकार करें
आलोक सिंह "साहिल"
इन आवारा नज़्मों की उम्र मगर बहुत लंबी होती है
बहुत सही डा. साहब। लिख्ते रहें।
थामो हाथ तो ........
नब्ज़ रुकी-रुकी सी मिलती
बहुत सुंदर आर्य जी बहुत बहुत badhai
किसी स्याही से लिपटी हुई
किसी सफ़हे पे सोई मिलती है
थामो हाथ तो ........
नब्ज़ रुकी-रुकी सी मिलती है
इन आवारा नज़्मों की उम्र मगर बहुत लंबी होती है
अच्छी नज्म,बधाई स्वीकार करें
Regards
कविता एक बार पढने में कुछ असामान्य जरूर लगती है किंतु जब इसके रहस्य का साक्षात्कार होता है तब इसमें छुपी गहरी संवेदना की अनुभूति होती है !
bahut khoob miya kamal kiya but kuch jagah khalipan laga ...
best wishesh
बेहतरीन रचना है अनुराग जी।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
shukriya aap sabhi ka .
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