यूं जब अपनी पलके उठा के
तुम देखती हो मेरी तरफ़
मैं जानता हूँ
कि तुम्हारी आँखे
पढ़ रही होती है
मेरे उस अंतर्मन को
जो मेरा ही अनदेखा
मेरा ही अनकहा है
अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
और मन की गहरी वादियों में
चुपके से खिला देती हो
आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है
पूर्ण करती हो मेरे अस्तित्व को
छाई सरदी की पहली धूप की तरह
भर देती हो मेरे सूनेपन को
अपने साये से फैले वट वृक्ष की तरह
सम्हो लेती हो अपने सम्मोहन से
मैं जानता हूँ कि
यही सब मेरे साँस लेने की वजह है
तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
36 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुन्दर रचना रंजना जी
यूं जब अपनी पलके उठा के
तुम देखती हो मेरी तरफ़
मैं जानता हूँ
कि तुम्हारी आँखे
पढ़ रही होती है
मेरे उस अंतर्मन को
जो मेरा ही अनदेखा
मेरा ही अनकहा है
ये लाइनें मुझे सबसे अच्छी लगीं
तुम जो हो ....
एक अदा.....बहुत स्वाभाविक चित्रण,एक स्वाभाविक उम्मीद
अनकहे को पढ़ने का भाव.......बहुत बढ़िया
बहुत हीं मासूम-सी रचना है रंजू जी। दिल को छू गई।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
सरल शब्दों में सुंदर बखान....
बहुत सुंदर कविता।
रंजना जी धन्यबाद,
एक स्त्री होकर आपने संगिनी का इतना सुन्दर चित्रण किया है कि
क्या कहने .
संगिनी तेरे रूप अनेक,
लगता है हमारे मन के अन्दर बैठकर कविता लिखी है.
तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !!
-- नारी जाती को समर्पित यह छंद सुंदर है |
अवनीश तिवारी
"कि तुम्हारी आँखे
पढ़ रही होती है
मेरे उस अंतर्मन को
जो मेरा ही अनदेखा
मेरा ही अनकहा है"
बहुत ही मोहक और स्वप्निल चित्रण है 'संगनी' का...पूरी समग्रता लिए हुए .
फागुन के महीने ने आपको फिर रोमांस रस की ओर लौटा दिया लगता है ;)
बढ़िया कविता॰!
Behad Khubsoorati Se aapne In Pyaar Bhare Ehasaason ko Bayan Kiya Hai Ranjana Ji..
Har Ek Line. Har ek Lafz Dil Ko Chhoo gaya.. Bahut Sunder Chitran Kiya Hai aapne Antarmann ka..!!
Daad Kubool karen..
Vicky
अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ.....
यहाँ पर कवितायो को पड़कर लगता है पता नही कहा से खोज लेते है आप लोग शब्द और कहा से मिल जाते है नए अर्थ........
सुंदर रचना.....
see my site "www.thevishvattam.blogspot.com "
jai hindam jai vishvattam
Thanks, Sundar Rachana.
बहुत सुंदर!!
वाह ! क्या बात है..
भाव-लय तारम्य गठन पठन शिल्प विन्यास एक दम जबरदस्त
संलग्न चित्र बहुत भाया..
अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
और मन की गहरी वादियों में
चुपके से खिला देती हो
आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है
बहुत प्रभावी रचना..
रंजना जी हमेशा की तरह आपके तरकश का यह तीर भी ह्रदय भेदी है बहुत बाद पडा आपको पुरानि यादें ताज़ा हो गयीं आपकी रचना बेहद प्रभाव शाली है मुबारक हो
वाह बहूत बदिया रंजू जी
लिखते रहिये
अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
पूर्ण करती हो मेरे अस्तित्व को
छाई सरदी की पहली धूप की तरह
these lines have a great impact on the content of poem and the feelings of writer...
shirshak me sangni likha hua hai, sangini hota hai.
रंजू जी
बहुत अच्छी कविता लिखी है-
अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
और मन की गहरी वादियों में
चुपके से खिला देती हो
अति सुंदर
ranjna ji...ati sunder....
antarman ankaha andekha...bahut khoob...
यूं जब अपनी पलके उठा के
तुम देखती हो मेरी तरफ़
मैं जानता हूँ
कि तुम्हारी आँखे
पढ़ रही होती है
मेरे उस अंतर्मन को
जो मेरा ही अनदेखा
मेरा ही अनकहा है
बहुत खूब..............
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है
अच्छी पंक्तियाँ बन पड़ी हैं,अच्छा लगा,
आलोक सिंह "साहिल"
तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !!
रंजना जी सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत ही मनमोहक वर्णन रंजू जी ,आपका लिखा है ये पहली पंक्ति से जान गए ,मधुर दिलकश शब्द,पढ़कर भी जी नही भरा ,बहुत बधाई
रंजू जी, "संगिनी" कविता के लिए बधाई स्वीकारें!
आज के इस अविश्वास भरे दौर में एक नारी की ओर से इस तरह की अभिव्यक्ति भारतीय परंपरा को जीवित रखने मे सहायक है।
तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !!
नई पीढी को इन पंक्तियों से सीख लेनी चाहिए, जो छ्लावे की ओर तेजी से बढ रही है।
रंजना जी,
सुन्दर भाव भरी रचना में नारी के सभी रूपों का
सहज सौम्य चित्रण.... बधाई
तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !!
बेहतरीन रचना, डुबोने में सक्षम।
*** राजीव रंजन प्रसाद
यूं जब अपनी पलके उठा के
तुम देखती हो मेरी तरफ़
मैं जानता हूँ
कि तुम्हारी आँखे
पढ़ रही होती है
मेरे उस अंतर्मन को
जो मेरा ही अनदेखा
मेरा ही अनकहा है
"बहुत सुंदर, बहुत खूब"
Regards
तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !!
रंजू,
ये पंक्तियाँ मेरे दिल को छू गयी !
उत्कृष्ट ! एवं उत्कृष्टतम की शुभ-कामनाएं !
laazavab.......
abhivyakti aur bhav adbhut lage.
सुंदर रचना कोमल भावों को दर्शाती हुई ।
I would certainly like to congratulate you.
You have become a professional poet and writer.
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