पाँचवे स्थान के कवि प्रेमचंद सहजवाला के बारे में हम पहले भी बता चुके हैं। हिन्द-युग्म को प्रेमचंद ने बताया कि उन्हें ग़ज़ल लिखने का शौक नया-नया मिला है, इसलिए इनकी ग़ज़लों का व्याकरण बहुत दुरुस्त नहीं है। आगे कहते हैं कि वो पिछले सप्ताह से गुरूजी पंकज सुबीर की कक्षाएँ लेने लगे हैं जिससे इन्हें काफी फायदा हुआ है। यह रोज़ ८-१० शेर लिखकर ग़ज़ल-लिखने का अभ्यास करते रहते हैं। अब कितने सफल हैं, यह तो पाठक बतायेंगे।
पुरस्कृत कविता- तफ़सिरा
ज़िंदगी सीधी राह पर चलती
नाक में इक नकेल है भाई।
साँस लेने की इजाज़त भी नहीं
ज़िंदगी है कि ज़ेल है भाई।
कम किराया है फिर भी 'एसी' है
ये तो लालू की रेल है भाई।
अब बिरहमन के साथ मायावती
सब सियासत का मेल है भाई।
बच्चे बूढ़े जवाँ सभी वश में
क्या गज़ब की 'फीमेल' है भाई।
आयकर हो गया है पंद्रह करोड़
ये तो तोहफ़ों का भेल है भाई।
शिब्बू-सिद्धू हवा में घूमते हैं
संजू सल्लू को 'बेल' है भाई।
सानिया अब से नहीं खेलेंगी
मज़हबी घालमेल है भाई।
तीस प्रतिशत की छूट है सब पे
'एम.एल.ए. आन सेल' है भाई।
उन का इस्तीफ़ा हो गया मंज़ूर
आँकड़ों का ये खेल है भाई।
तुम इधर से उधर न होना अब
वर्ना सरकार 'फेल' है भाई।
अपनी किडनी सँभाल कर रखना
चंद मिनटों का खेल है भाई।
शहर मैंने कुचल दिया बस से
बोतलों की उँड़ेल है भाई।
तस्लीमा दिल की बहुत अच्छी है
पर इबादत में 'फेल' है भाई।
निगल जाती है सब को मिनटों में
एक मोटी सी 'व्हेल' है भाई।
दोस्त मोदी का बहुत गम मत कर
वो तो हिटलर की 'ट्रेल' है भाई।
ये जो सीधी कभी नहीं होती
मेरे 'डॉगी' की 'टेल' है भाई।
जिस का कल खून हुआ बँगले में
मंत्री जी की रखैल है भाई।
जाके सस्ती खरीद लो 'नैनो'
'रोड' पे धक्का-पेल है भाई।
यह मेरी भैंस अब से तेरी है
तेरी लाठी में तेल है भाई।
सब की क़ीमत बढ़ाए जाती है
जाने कैसी चुड़ैल है भाई।
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-६॰५, ५॰६, ६॰५
औसत अंक- ६॰२
स्थान- चौदहवाँ
च
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰५, ४॰५, ८, ६॰२(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰०५
स्थान- सातवाँ
अंतिम जज की टिप्पणी-
बहुत से मुद्दे और बहुत सशक्तता के साथ उठाये गये। रचना प्रभावित करती है।
कला पक्ष: ७॰४/१०
भाव पक्ष: ८॰५/१०
कुल योग: १५॰९/२०
स्थान- पाँचवाँ
पुरस्कार- चूँकि इन्हें हम पिछली दफ़ा कथा-दशक भेंट कर चुके हैं। इसलिए इस बार शहरयार का एक ग़ज़ल-संग्रह भेंट रहे हैं।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत खूब प्रेम चंद जी
आपने आजकल के मुद्दों को जिस तरीके से ग़ज़ल के रूप में
बधाई हो आपको
विशेषकर यह पंक्तियाँ
तीस प्रतिशत की छूट है सब पे
'एम.एल.ए. आन सेल' है भाई।
जाके सस्ती खरीद लो 'नैनो'
'रोड' पे धक्का-पेल है भाई।
बहुत खूब
प्रेमचंद जी,
बहुत सुंदर रचना है। लगभग सभी सामयिक विषयों को आपने उठाया है। पर ये कुछ छोटी हो सकती थी। शायद २-३ पंक्तियाँ। वैसे बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।
धन्यवाद
प्रेमचंद्र जी अच्छा लगा,बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
आपने सामयिक मुद्दों को बखूबी उठाया है। रचना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है।
आज के दुनिया के व्यंग से भरपूर बहुत ही अच्छी रचना ,बहुत बधाई ,बहुत हास्य भी आपने ,हँसी बाटने के लिए बहुत ही शुक्रान .
रचना के मुद्दे अच्छे है |
बधाई |
लेकिन पहले दो शेर याने मतले मे मेल नही है |
अवनीश तिवारी
समसामयिक मुद्दों पर अच्छा कटाक्ष है आपकी रचना के बारे में यही कहुंगा कि
गज़ल बेशक लंबी नज़र आती है
पर हर शेर मे तालमेल है भाई
हर शेर बेहतरीन है। बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अपनी किडनी सँभाल कर रखना
चंद मिनटों का खेल है भाई।
शहर मैंने कुचल दिया बस से
बोतलों की उँड़ेल है भाई।
"बहुत सुंदर रचना है,बधाई स्वीकारें"
Regards
शैली चुटीली ! मुद्दों की भरमार किंतु सशक्तिकरण का अभाव ! शीर्षक कविता के भाव वहां करने में असक्षम ! कुल मिला कर एक अच्छी मंचीय कविता !
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