कुछ अंतर नहीं
संसद और सब्ज़ी मंडी में
सिवाए झगड़े और वाकआऊट के
कुछ नही होता वहाँ!
दिल काला है..
काला रंग पसंद है इन्हे
यहाँ बैठे कथित मनुष्य
जलाते हैं जनता के नोट
रोज़ खेलते हैं होली
उनकी कालिख से...
होली की शुभकामनाएँ!
प्रहलाद तो मरा नहीं
हाँ..होलिका मर गयी
आज वो भी जल गयी
और बच गयी
दहेज की भूख!
उसके बाप ने
बेरंग आँसुओं से खेली होली
ग़रीब था बेचारा
नही खरीद पाया रंग
अपनी बेटी की ज़िंदगी में भरने!
होली की शुभकामनाएँ!
क्यों करें फागुन का इंतज़ार?
बेमौसम होली का मज़ा
और ही होता है|
मंदिर के सामने
कटा बकरा फिंकवा दिया
बस..हो गयी होली!
होलिका की जगह
अब जिंदे लोग जलेंगे!
अपनी पिचकारियों में
रंगों की जगह लहू भरते हैं हम
लाल रंग पसंद है हमें
सुर्ख होता है...
चढ़ जाए तो यूँ ही नहीं उतरता
होली की शुभकामनाएँ!
छह दरिंदों ने
खूब नोंचा उसे
फिर फेंक दिया सड़क पर
अधमरी हालत में |
अपने कुछ पलों को रंगीन बनाने
छीन लिए उन्होने
उसकी ज़िंदगी के सारे रंग!
रंग बाकी हैं कुछ..
शायद कोई और भी छीनेगा अभी !
यही तो होली है
रंगों की होली!
होली की शुभकामनाएँ!
भारत महान है
और होली भी..
पड़ोस में लाल झंडे वाले
जला रहें हैं
अधिकारों की होलिका,
खेल रहे हैं होली
तिब्बतियों के लहू से!
लाल रंग
पसंद है इन्हे भी !
हम खुश है
सब सीख रहे हैं होली खेलना
सचमुच महान है हम
और हमारी संस्कृति!
वाह!
होली की शुभकामनाएँ!
आँखें खोल कर देखो
साल भर होली मनाते हैं हम
लगाव है हमें रंगों से
खैर..आज होली है
कम्बख़्त नकली रंगों का त्योहार!
चलो अब रंग जाओ
इन नकली रंगों में
होली खेलो
परंपरा है तो निभाओ
आज यही होली सही!
होली की शुभकामनाएँ!
होली मुबारक!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
19 कविताप्रेमियों का कहना है :
विपुल जी ,आपकी लेखनी को नमन करना चाहती हूँ .....कितना बडा सत्य कितनी सहजता से लिख गए आप....सच ही हमारे देश में लोग होली को ज्यादा ही पसंद करने लगे हैं ...खून की होली ,अत्याचार की होली ,दहेज़ की होली ....बस कमी है तो रंगों की होली की ....बहुत ही सरल शब्दों में कटाक्ष किया है ....इस सुन्दर रचना के लिए बधाई...
एक-एक शब्द सच है। होली पर सबसे सुंदर रचना। काव्य-पल्लवन में जिस रंग की खोज में मैं था, वो आपकी कविता पढ़कर पूरी हो गई। आप बहुत संवेदनशील कवि हैं और हालातों पर कड़ी नज़र रखते हैं। बहुत-बहुत बधाई।
आपको भी होली बहुत-बहुत मुबारक.
Vipul ji aapki kavita kaa mai to bahut pahle se kaayal hu bt pahli baar comment kar raha hu.....kyonki aapki kavita par comment karne waale ko v Hindi ki achchi jaankaari honi chahiye.....really its 1 of d gud poetry ever i read....aur jaha tak comment karne ka sawaal hai to mai uske kaabil nahi hu bt fir v kar raha hu....koi galti ho jaaye to plz maaf kar dijiyega.....
es kavita ka sabse achcha part mujhe
"प्रहलाद तो मरा नहीं
हाँ..होलिका मर गयी
आज वो भी जल गयी
और बच गयी
दहेज की भूख!
उसके बाप ने
बेरंग आँसुओं से खेली होली
ग़रीब था बेचारा
नही खरीद पाया रंग
अपनी बेटी की ज़िंदगी में भरने!"
ye laga....kyon ki esme jo aapne Holika Dahan ko aaj ki naariyo par ho rahe atyaachaar k saath relate kiya hai wo really appreciable hai....again u proved urself dt u cn play wid words vry well.....
क्यों करें फागुन का इंतज़ार?
बेमौसम होली का मज़ा
और ही होता है|
मंदिर के सामने
कटा बकरा फिंकवा दिया
बस..हो गयी होली!
होलिका की जगह
अब जिंदे लोग जलेंगे!
अपनी पिचकारियों में
रंगों की जगह लहू भरते हैं हम
लाल रंग पसंद है हमें
सुर्ख होता है...
चढ़ जाए तो यूँ ही नहीं उतरता
बहुत खूब विपुल, हर बार की तरह इस बार भी तुम मेरी उम्मीदों पर खरे उतरे हो
बहुत खूब! होली का हर रंग साकार है
विपुल जी आपने एक एक शब्द चुन चुन कर लिखा है . प्रस्तिथियों को धयान में रखते हुए
होली के मध्यम से दर्शाया है अति सुंदर
महानुभाव,
आपकी प्रतिभाको विनम्र अभिवादन ! बहुत खूब .
बेरंग आँसुओं से खेली होली
ग़रीब था बेचारा
नही खरीद पाया रंग
अपनी बेटी की ज़िंदगी में भरने!
होली की शुभकामनाएँ!
विपुलजी दिल को झकझोर दिया आपकी कविता ने
बधाई
क्या कहुं नि:शब्द हूं आपकी इस रचना पर,एक एक शस्द ह्रदय को झंकझोर देता है आपकी सशक्त कलम को शत शत नमन और आपको प्रणाम
बहुत खूब लिखा है |
होली के माध्यम से बहुत तथ्य उजागर कराने का प्रयास किया है |
बधाई
अवनीश तिवारी
विपुल जी कविता के माध्यम से हर असंगती को सहजता से वर्णित किया ।आप सफल रहे कविता मर्मस्पर्शी लगी।
बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता , आज के हालत पर कटाक्ष करती कविता का हर शब्द बोलता है , नमन है आपकी लेखनी को , आप ने इतना कुछ कह दिया की हमारे पास कोई शब्द ही नही रहे कुछ कहने को :- हम क्या कहे और कैसे कहे ?......सीमा सचदेव
कविता के माद्यम से वर्तमान परिस्तिथियों को बहुत खूब प्रकट किया गया है . ह्रदय स्पर्शी है ,और भी बहुत कुछ कहना चाहती हूँ पर निःशब्द हूँ .इतने प्रभावी रूप से इसे लिखा गया है कि मर्म को गहरे तक छेद कर रही है .बधाई विपुल जी
पूजा अनिल
behareentam rachna holi par....
aapke hi kehne par jab maine bhi holi pe kuchh likhne ki koshish ki to i realised ki kahin par ideas nahi milte to kabhi ideas ko expression dena mushkil hota hai....aapki rachna mein koi dosh,koi kamee nahi....bas ek mega-talented person ki kavita par zordaar pakad dikhti hai.....likhte rahiye
आप की लेखनी समाज की सत्यता को उजागर करती है ..
खून की होली हो या भावनाओं की, अधिकारों की होलिका हो मनुष्यता तो अधमरा है ही ..बेहतरीन प्रस्तुति
विपिल भाई,
मैं तो चाँद के इनतजार में था.. मगर भाव-रश्मि लिये ये कविताई का सूरज देखकर हैरान..
सही कहा है शैलेश जी ने काव्य पल्लवन आपकी कविता से पूर्ण हो गया.. बहुत ही सम्वेदनशील गहरी रचना..
सचमुच अवाक करने वाली..
vishay aur bhav adbhut.par thodi kami rah gayi....shali me.....sumthin ws missin.........par bahut achchi lagi.........................
khaskar ye para .........khatarnak roop se darata hai aur collar pakad k ghaseet deta hai zameen par........
क्यों करें फागुन का इंतज़ार?
बेमौसम होली का मज़ा
और ही होता है|
मंदिर के सामने
कटा बकरा फिंकवा दिया
बस..हो गयी होली!
होलिका की जगह
अब जिंदे लोग जलेंगे!
अपनी पिचकारियों में
रंगों की जगह लहू भरते हैं हम
लाल रंग पसंद है हमें
सुर्ख होता है...
चढ़ जाए तो यूँ ही नहीं उतरता
होली की शुभकामनाएँ!
mubarak vipul tum paripakv ho rahe ho..........
Sab Ko Holi Mubarak
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)