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Saturday, March 22, 2008

कवि दीपेन्द्र बुझने को लालायित क्यूं हैं?


हिन्द-युग्म की ओर से सभी पाठको को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। होली के इस शुभ अवसर पर प्रस्तुत है प्रतियोगिता की २१वी कविता जिसके कवि हैं दीपेंद्र जी। आइए आनंद लें इनकी इस कविता का -

कविता- बुझने को लालायित क्यूं हैं?

नवरंगो को खुद में समेटे,
अंधियारों की ओट लपेटे,
सारी जलती हुयीं शमाएं,
बुझने को लालायित क्यूं हैं?
बिना कंठ के गूंगे स्वर हैं,
या स्वरों बिना बेकार गला है?
शब्द का बोझ हैं अर्थ उठाए,
या अर्थ को ढोने शब्द चला है?
इन व्यर्थ प्रश्नों के व्यर्थ से उत्तर -
इतने ज्यादा संभावित क्यूं हैं?
सारी जलती हुयीं शमाएं,
बुझने को लालायित क्यूं हैं?
भाव बिना किसी कवि का परिचय,
क्या कविता का उपहास नहीं है?
और बिना कवि के कविता यूं है,
ज्यों अधर तो हैं पर प्यास नहीं है
ये कवि उठाए भार काव्य का-
इतने ज्यादा मायावित क्यूं हैं?
सारी जलती हुयीं शमाएं,
बुझने को लालायित क्यूं हैं?
नजर मिली जब नजरों से तो,
दिल का भाव कलश भर बैठा ,
अधरों का शब्दकोष था खाली,
कैसे मन कि इच्छाएं कहता!
माना कि प्रीत में पावनता है-
पर इतनी ज्यादा मर्यादित क्यूं है?
सारी जलती हुयीं शमाएं,
बुझने को लालायित क्यूं हैं?
रोम-रोम में ख़ुशी समाई,
अंतर -अंतर पुलकित है,
गर पीडा की इज्जत है,
और सारे दुख वन्दित हैं!
माना कि सपने थोक भाव हैं-
पर सारे आयातित क्यूं हैं?
सारी जलती हुयीं शमाएं
बुझने को लालायित क्यूं हैं?

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

रोम-रोम में ख़ुशी समाई,
अंतर -अंतर पुलकित है,
गर पीडा की इज्जत है,
और सारे दुख वन्दित हैं!
माना कि सपने थोक भाव हैं-
पर सारे आयातित क्यूं हैं?
बहुत खूब बधाई

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सुंदर

अवनीश तिवारी

anju का कहना है कि -

बधाई हो दीपेंदर जी
सारी जलती हुयीं शमाएं
बुझने को लालायित क्यूं हैं?
अच्छी प्रस्तुति

Anonymous का कहना है कि -

आपकी लेखनी की शमां युं ही जलती रहे दीपेंद्र जी अच्छी रचना है बधाई

Alpana Verma का कहना है कि -

दिल का भाव कलश भर बैठा ,
अधरों का शब्दकोष था खाली,
---
और सारे दुख वन्दित हैं!
माना कि सपने थोक भाव हैं-
पर सारे आयातित क्यूं हैं?''
वाह!क्या बात है! बहुत पसंद आयीं ये पंक्तियाँ-

कविता में भावों की बहुत अच्छी प्रस्तुति है.
दीपेंद्र जी बधाई!

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

शब्द का बोझ हैं अर्थ उठाए,
या अर्थ को ढोने शब्द चला है?
इन व्यर्थ प्रश्नों के व्यर्थ से उत्तर -
इतने ज्यादा संभावित क्यूं हैं?
...................
सुंदर अभिव्यक्ति

seema gupta का कहना है कि -

रोम-रोम में ख़ुशी समाई,
अंतर -अंतर पुलकित है,
गर पीडा की इज्जत है,
और सारे दुख वन्दित हैं!
माना कि सपने थोक भाव हैं-
पर सारे आयातित क्यूं हैं?
सुंदर अच्छी अभिव्यक्ति

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

शब्द का बोझ हैं अर्थ उठाए,
या अर्थ को ढोने शब्द चला है?
इन व्यर्थ प्रश्नों के व्यर्थ से उत्तर -
इतने ज्यादा संभावित क्यूं हैं?

सुन्दर लिखा है..

Anonymous का कहना है कि -

शब्दों के साथ खेलते हुए सुंदर अभिव्यक्ति है , बधाई
पूजा अनिल

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