प्रतियोगिता की १३वीं कविता बहुत दूर से आई है। महात्मा गाँधी संस्थान, मोका (मॉरीशस) में हिन्दी से संबंधित विषयों के प्राध्यापक विनय गुदारी अपने देश में पूरी ऊर्जा से हिन्दी के प्रचार में लगे हैं। इनके मित्र गुलशन का कहना है कि हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता में मॉरिशस के कवियों का नाम देखकर वहाँ के हिन्दी भाषी लोगों में हर्ष की लहर फैल गई है। अब यह देखना है कि इनकी कविता पढ़कर पाठकों की क्या प्रतिक्रिया रहती है।
पुरस्कृत कविता- आदत पड़ चुकी है
तेरे विचारों
और उद्घोषणाओं का बोझ लादने की
मेरी सोच पर है तेरा नियंत्रण
मेरे निर्णय
मेरे अपने नहीँ
संचालित हो रहा है
मेरा सब कुछ मेरे प्रतिनिधि के द्वारा
बेहत्तर की कल्पना के लिए तेरे हाथों में सोंपा था बच्चों का भविष्य
बूढ़ी माँ को
जीवन के सुखद-आरामदेह
अंतिम क्षण देने की शपथ
सब कुछ ...
अब आती है तरस
खुद पर और दोषी करार करता हूँ
स्वयं को
कुछ था
जो उस वक्त
समझ नहीं पाया था ...
तू ठहरा
आकाश का प्राणी और तेरे आशीष
ऊपर से निकलकर
उधर ही तुम्हारे इर्द-गिर्द
सुरक्षा-घेरों द्वारा शोक लिए जाते हैं
और पृथ्वी पर हम
आशा बाँधे बैठे हैं
कि कब हमारी ज़मीन पर
तेरे कदम न सही तेरी कृपा की
एक बूँद टपक पड़े।
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-५॰५, ५॰१, ७॰१
औसत अंक- ५॰९
स्थान- बीसवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-६, ४॰८, ५, ५॰९ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰४२५
स्थान- अठारहवाँ
अंतिम जज की टिप्पणी-
रचना को कवि ने बेवजह उलझाया है।
कला पक्ष: ४॰५/१०
भाव पक्ष: ४॰८/१०
कुल योग: ९॰३/२०
स्थान- तेरहवाँ
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
और पृथवी पर हम
आशा बाँधे बैठे हैं
कि कब हमारी ज़मीन पर
तेरे कदम न सहीतेरी कृपा की
एक बूँद टपक पड़े।
" अच्छे भाव , बहुत बधाई विनय गुदारी जी "
Regards
और पृथवी पर हम
आशा बाँधे बैठे हैं
कि कब हमारी ज़मीन पर
तेरे कदम न सहीतेरी कृपा की
एक बूँद टपक पड़े।
अच्छी रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
विनय जी आपको बहुत बहुत बधाई
तेरे कदम न सहीतेरी कृपा की
एक बूँद टपक पड़े।
ati sundar
गुदारी साहब,बहुत बहुत बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
जलेबी की तरह है आपकी कविता। अगर यह रचना के आरम्भिक लक्षण हैं तब तो ठीक-ठाक है, नहीं तो अभी आपको अपनी नज़र बहुत साफ करनी होगी।
और पृथ्वी पर हम
आशा बाँधे बैठे हैं
कि कब हमारी ज़मीन पर
तेरे कदम न सही तेरी कृपा की
एक बूँद टपक पड़े। अच्छी रचना,बहुत बधाई
और पृथ्वी पर हम
आशा बाँधे बैठे हैं
कि कब हमारी ज़मीन पर
तेरे कदम न सही तेरी कृपा की
एक बूँद टपक पड़े।
तब पता चला आप किसे संबोधित कर
रहे हैं - सुन्दर रचना ।
विनय गुदारी जी को हार्दिक बधाई देते हुए..
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