का़श!
मैं बन जाऊँ एक सुगन्ध
जो सबको महका दे
सारी दुर्गन्ध उड़ा दे
मैं बन जाऊँ एक सुगन्ध
जो सबको महका दे
सारी दुर्गन्ध उड़ा दे
या फिर…
बन जाऊँ एक गीत
जिसे सब गुनगुनाएँ
हर दिल को भा जाए
अथवा…
बन जाऊँ नीर
सबकी प्यास बुझाऊँ
सबको जीवन दे आऊँ
या फिर..
बन जाऊँ एक आशा
दूर कर दूँ निराशा
हर दिल की उम्मीद
अथवा…
बन जाऊँ एक बयार
जो सबको ताज़गी दे
जीवन की उमंग दे
नव जीवन संबल बने
तनाव ग्रस्त ..
प्राणी की पीड़ा पर
मैं स्नेह लेप बन जाऊँ
जग भर की सारी
चिन्ताएँ मिटा दूँ
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
सारी सृष्टि पर अपनी
ममता लुटाऊँ
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
शोभाजी बहुत बढ़िया लेखन !
सुंदर ख्याल .....
तनाव ग्रस्त ..
प्राणी की पीड़ा पर
मैं स्नेह लेप बन जाऊँ
जग भर की सारी
चिन्ताएँ मिटा दूँ
बहुत सुंदर लिखा है आपने शोभा जी यदि हम ऐसा कर सके तो बहुत ही अच्छा है :)!!
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
सारी सृष्टि पर अपनी
ममता लुटाऊँ
:बहुत सुंदर भाव , एक नारी का हर रूप मे एक सुंदर सा सपना "
Regards
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
बहुत सुंदर
बहुत ही अच लिखा है बेहतर काव्य संग्रह सदैव मन की पीदाओं से मनुष्य मात्र के भौं का आलिंगन करती हैं
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
सारी सृष्टि पर अपनी
ममता लुटाऊँ
-- मन भावक अनुभूति है |
अवनीश तिवारी
आपकी बेहतरीन अभिव्यक्ति की प्रशंसा करते हुए आपको जन्मदिवस की कोटिश: बधाई देना चाहूँगा।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत ही सुंदर रचना है ... शोभा जी बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
"जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ"
प्रत्येक पंक्ति,
प्रत्येक भाव,
अति उत्तम
हार्दिक बधाई, शोभा जी....
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
वह क्या कहना
बहुत खूब शोभा जी
कविता अच्छी लगी
शोभा जी सच कहूँ तो मज़ा नहीं आया मुझे इस रचना में... भाव तो अच्छे थे पर शायद प्रस्तुतिकरण में कमी रह गयी !
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
शोभा जी,बेहतरीन पंक्तियाँ,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
इस तरह की कविता तो लोग बचपन में लिखते हैं।
शोभा जी,
आपके विचार बेहद सराहनीय हैं। कविता को आपने जीने की कोशिश की है,बहुत हद तक सफल भी हुई हैं आप, परंतु यह और भी अच्छी हो सकती थी।ध्यान देंगे।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
शोभा जी की शोभित कविता... बहुत खूब.. हार्दिक बधाई..
माफ कीजियेगा शोभा जी, पर कुछ मजा नहीं आया पढ़ने में। आपसे काफी उम्मीदें रहती हैं।
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