प्रतियोगिता की १२वीं कविता विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' की है जो अपनी अभियांत्रिकी कर्म से थोड़ा सा समय निकालकर रचनाकर्म में लगाते हैं।
पुरस्कृत कविता- किसना किसान का बेटा
किसना जो नामकरण संस्कार के अनुसार
मूल रूप से कृष्णा रहा होगा
किसान है ,
पारंपरिक ,पुश्तैनी किसान !
लाख रूपये एकड़ वाली धरती का मालिक
इस तरह किसना लखपति है !
मिट्टी सने हाथ ,
फटी बंडी और पट्टे वाली चड्डी पहने हुये,
वह मुझे खेत पर मिला,
हरित क्रांति का सिपाही !
किसना ने मुझे बताया कि ,
उसके पिता को ,
इसी तरह खेत में काम करते हुये ,
डँस लिया था एक साँप ने ,
और वे बच नहीं पाये थे,
तब न सड़क थी और न ही मोटर साइकिल ,
गाँव में !
इसी खेत में , पिता का दाह संस्कार किया था
मजबूर किसना ने, कम उम्र में ,अपने काँपते हाथों से !
इसलिये खेत की मिट्टी से ,
भावनात्मक रिश्ता है किसना का !
वह बाजू के खेत वाले गजोधर भैया की तरह ,
अपनी ढेर सी जमीन बेचकर ,
शहर में छोटा सा फ्लैट खरीद कर ,
कथित सुखमय जिंदगी नहीं जी सकता ,
बिना इस मिट्टी की गंध के !
नियति को स्वीकार ,वह
हल, बख्खर, से
चिलचिलाती धूप, कड़कड़ाती ठंड और भरी बरसात में
जिंदगी का हल निकालने में निरत है !
किसना के पूर्वजों को राजा के सैनिक लूटते थे,
छीन लेते थे फसल !
मालगुजार फैलाते थे आतंक,
हर गाँव आज तक बंटा है , माल और रैयत में !
समय के प्रवाह के साथ
शासन के नाम पर,
लगान वसूली जाने लगी थी किसान से
किसना के पिता के समय !
अब लोकतंत्र है,
किसना के वोट से चुन लिया गया है
नेता, बन गई है सरकार
नियम, उप नियम, उप नियमों की कँडिकायें
रच दी गई हैं !
अब स्कूल है,
और बिजली भी, सड़क आ गई है गाँव में !
सड़क पर सरकारी जीप आती है
जीपों पर अफसर, अपने कारिंदों के साथ
बैंक वाले साहब को किसना की प्रगति के लिये
अपने लोन का टारगेट पूरा करना होता है!
फारेस्ट वाले साहेब,
किसना को उसके ही खेत में, उसके ही लगाये पेड़
काटने पर, नियमों, उपनियमों, कण्डिकाओं में घेर लेते हैं !
किसना को ये अफसर ,
अजगर से कम नहीं लगते, जो लील लेना चाहते हैं, उसे
वैसे ही जैसे
डस लिया था साँप ने किसना के पिता को खेत में !
बिजली वालों का उड़नदस्ता भी आता है,
जीपों पर लाम बंद,
किसना अँगूठा लगाने को तैयार है, पंचनामें पर !
उड़नदस्ता खुश है कि एक और बिजली चोरी मिली !
किसना का बेटा आक्रोशित है,
वह कुछ पढ़ने लगा है
वह समझता है पंचनामें का मतलब है
दुगना बिल या जेल !
वह किंकर्तव्यविमूढ़ है, थोड़ा सा गुड़ बनाकर
उसे बेचकर ही तो जमा करना चाहता था वह
अस्थाई, बिजली कनेक्शन के रुपये !
पंप, गन्ना क्रशर, स्थाई, अस्थाई कनेक्शन के अलग अलग रेट,
स्थाई कनेक्शन वालों का ढेर सा बिल माफ, यह कैसा इंसाफ !
किसना और उसका बेटा उलझा हुआ है !
उड़नदस्ता उसके आक्रोश के तेवर झेल रहा है,
संवेदना बौनी हो गई है
नियमों, उपनियमों, कण्डिकाओं में बँधा उड़नदस्ता
बना रहा है पंचनामें, बिल, परिवाद !
किसना किसान के बेटे
तुम हिम्मत मत हारना
तुम्हारे मुद्दों पर, राजनैतिक रोटियाँ सेंकी जायेंगी
पर तुम छोड़कर मत भागना खेत !
मत करना आत्महत्या,
आत्महत्या हल नहीं होता समस्या का !
तुम्हें सुशिक्षित होना ही होगा,
बनना पड़ेगा एक साथ ही
डाक्टर, इंजीनियर और वकील
अगर तुम्हें बचना है साँप से
और बचाना है भावना का रिश्ता अपने खेत से !
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-७, ४॰४, ७॰३५
औसत अंक- ६॰२५
स्थान- नौवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक-५, ६॰६, ५, ६॰२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰७१२५
स्थान- ग्यारहवाँ
अंतिम जज की टिप्पणी-
एक कथानक को कविता में ढालना कठिन कार्य है। रचना को मनोभावों के साथ उतारने चढ़ाने की कवायद कवि ने अपने शब्दों में नहीं की। यही कारण है कि कविता लम्बी और बोझिल है।
कला पक्ष: ४/१०
भाव पक्ष: ६/१०
कुल योग: १०/२०
स्थान- बारहवाँ
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
विषय बहुत ही सटीक है, और कथ्य भी बहुत अच्छा, बस यदि शब्दों को समेट लेते थोड़ा, तो कविता शायद इतनी लम्बी नही होती, थोड़ा और इस कविता पर काम किया जाए तो एक उत्कृष्ट रचना बन सकती है,..... सुंदर चित्रण के लिए कवि को बधाई
बहुत अच्छी लगी। बहुत अच्छा विषय और उसकी सटीक प्रस्तुति। मैं चाहता हूँ कि यह ऐसी ही चलती रहे, मुझे इसका लंबा होना नहीं अखरता।
किसना का मर्म चालक जाता है हर शब्द से,बहुत सुंदर प्रस्तुति बधाई
वह कितना बढ़िया तरीके से किसिस किसान के भावों को व्यक्त किया है बहुत सही लिख है , की आत्महत्या किसिस भी समस्या का हल नही होती
डटे रहो करमा युद्ध में
सुंदर है किंतु कुछ बड़ी बनी है |
बधाई
अवनीश तिवारी
कथ्य को "सार सार में संसार" की तरह प्रस्तुत करने की कला ही कविता है। अन्यथा तो गद्य की कई विधायें उपलब्ध हैं...
*** राजीव रंजन प्रसाद
किसना किसान का मार्मिक चित्रण बहुत अच्छा बन पडा है ......सीमा सचदेव
विवेक जी... आपके भाव बहुत अच्छे लगे | कथ्य इतना बड़ा और संवेदनशील था कि आप उसे पूरी तीव्रता के साथ शब्दों में नहीं ढाल पाए !
अत्यंत सराहनीय प्रयास...
विवेक जी भाव अच्छे है
कविता लम्बी है
एक किसान की जिंदगी को बखूबी दर्शाया गया है
शब्द बहुत अधिक होते हुए भी,अच्छे विषय पर अच्छी कविता,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
यह एक अच्छी रचना बन सकती थी यदि क्राफ़्ट पर थोड़ी और मेहनत की गई होती तो।
बन्धु विवेक जी!
क्षणिका के युग में महाकाव्य की प्रस्तुति...
कविता को गागर में सागर किया जा सके तो ठीक लेकिन कवि के पास कहने को बहुत हो तो कथ्य लंबा हो जाता है...
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)