कवि हर्ष कुमार ने हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में पहली बार भाग भाग लिया है। इनकी कविता २४वें पायदान पर रही। आइए पढ़ते हैं-
कविता- आखिर क्यों
बहुत खुश था मैं
कल उनसे मेरी मुलकात हो गयी थी।
बहुत खुश था मैं
कल उनसे मेरी बात हो गयी थी।
बहुत गर्म जोशी से मिला था
तहे दिल से स्वागत किया था उनका।
मैं खुश था
उनके चेहरे पर मुस्कराहट थी
बहुत प्रेम भाव से मिले थे मुझसे।
मैंने पूछा - कैसे हैं?
उन्होंने कहा - कैसे हो?
मैं खुश - उन्होंने पहचान लिया मुझे !
आखिर भूलते कैसे
सुबह शाम का साथ था
बहुत करीब का रिश्ता था हमारा।
मैंने बात शुरू की
जहाँ छोड़ी थी बरसों पहले।
उनके चेहरे का भाव बदल गया।
मैं पढ़ नहीं पाया उसे -
वो भूल गये थे मुझे ?
न पहचानने की कोशिश ?
न जाने क्या ?
मैं सकते में था
रंग-रूप में परिवर्तन -
बीते दिनों के अनुपात में पूरा।
रंग-ढंग में परिवर्तन -
बिना किसी अनुपात में पूरा।
आखिर क्यों?
मैं बरसों बाद भी वहीं खड़ा था
वो बदल गया था
आखिर क्यों ?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
8 कविताप्रेमियों का कहना है :
वक्त के साथ रिश्ते बदल जाते है ,बहुत खूब बधाई
हर्ष कुमार जी, आपने आज -कल के ज़माने के अनुसार रिश्तों के बदलते चेहरों को अपने रचना के माध्यम से बहुत खूबी से प्रस्तुत किया है
बधाई,
बदलाव से परहेज क्यों?? बदलाव सकारात्मक भी तो हो सकता है बल्कि होना ही चाहिए। नहीं बदलना जड़ता का लक्षण है।
वक्त के साथ हालात बदल जाते हैं-यह तो प्रकृति का भी नियम है--परिवर्तन!
रिश्तों में परिवर्तन क्यों?
यह प्रश्न आज के हालातों में नया नहीं.कविता सीधी सरल है.
मैं बरसों बाद भी वहीं खड़ा था
वो बदल गया था
आखिर क्यों ?
" रिश्तों के बदलाव का बहुत कोमल सा चित्रण, अच्छी रचना"
अच्छी रचना
हर्ष जी बधाई
बहुत ही बढिया लिखा है जो की अन्तायान्न्त ही प्रशंशानिया है
परिवर्तन स्रष्टि का नियम है , अच्छी कविता ..सीमा सचदेव
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)