प्रतियोगिता की २३वीं कविता कवि नागेन्द्र पाठक की है जो पिछले १ महीने से हिन्द-युग्म पर बहुत सक्रिय हैं।
कविता- बोलो जय जय हिन्दुस्तान
मुंबई हो या हो आसाम, चलना सीखो सीना तान
क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान
सिरफिरे दो-चार यहाँ पर, रहते हैं गद्दार यहाँ पर
करते हैं अपनी मनमानी, मरते हैं कई बार यहाँ पर
शर्म नहीं आती है उनको, विष बुझी बातें करते हैं
मगर एकता का है बंधन, सब के सब हकदार यहाँ पर
हत्यारे तुम वोट की खातिर, क्यों बनते हो अब अनजान
श्रम के बल पर जीना सीखो, बोलो जय जय हिन्दुस्तान
इतिहास में दर्ज़ सभी हैं, करते हैं सबका सम्मान
शेर समझ मत घर के चूहे, बाहर तुम भी करो प्रयाण
करते हैं शक्ति की पूजा, सरस्वती में सदा रुझान
आराध्या रहीं हैं लक्ष्मी, मेरी, मत रहना एकदम अनजान
शान्ति का पैगाम हमारा, फिर से मत करना अपमान
क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान
विद्वानों के वंशज होकर ज़ाहिल जैसे दिखते हो
वीर शिवा की संतानों में काहिल क्यों तुम बनते हो
कद के तुम हो कद्दावर पर दिल ने क्या आकार लिया
देश तुम्हारा अपना है, फिर बेमतलब क्यों डरते हो
हाथ बढ़ाओ साथ मिलेगा, जिसका तुम्हें नहीं अनुमान
क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान
भैया तुम कहते हो जब भी, क्या मैने प्रतिकार किया
राज हमें समझा दो तुम ही, कब हमने हथियार लिया
कदम-ताल तो करना सीखो, दुनिया ही घर-आँगन है
सात समंदर पार भी देखो, कितने सारे मधुवन हैं
आओ फिर से गले लगाओ, रहें नहीं गलियाँ सुनसान
क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
आओ फिर से गले लगाओ, रहें नहीं गलियाँ सुनसान
क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान
नागेंदर जी अच्छा प्रयास
थोड़ा सा और करते तो बहुत बेहतरीन कही जा सकती थी
बहुत ही सुंदर,देश भक्ति से भरी,बहुत बधाई
हाथ बढ़ाओ साथ मिलेगा, जिसका तुम्हें नहीं अनुमान
क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान
सही समय पर आयी कविता.
वर्तमान स्थिति का अच्छा वर्णन किया है और विचार भी सही रखे गए हैं.
काश ! राज साहब भी इन भावों को समझ पायें.
--अच्छी रचना है ! बधाई!
सिरफिरे दो-चार यहाँ पर, रहते हैं गद्दार यहाँ पर
करते हैं अपनी मनमानी, मरते हैं कई बार यहाँ पर
शर्म नहीं आती है उनको, विष बुझी बातें करते हैं
मगर एकता का है बंधन, सब के सब हकदार यहाँ पर
नागेन्द्र जी कविता बहुत सुन्दर और देश भक्ति से
ओतप्रोत है
आओ फिर से गले लगाओ, रहें नहीं गलियाँ सुनसान
क्षेत्रवाद का छोड़ो नारा, बोलो जय जय हिन्दुस्तान
अच्छी रचना
नागेन्द्र जी,
सुन्दर एकता, मैत्री, राष्ट्रप्रेम का सन्देश देती अच्छी रचना है..
बहुत बहुत बधाई
डा. रमा द्विवेदीsaid...
राष्ट्रप्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति केलिए बधाई एवं शुभकामनाएं.....
sabhi hindyugm ke pathkon ko mera namaskar awam pratikriya ke liye dhanyawad .
कदम-ताल तो करना सीखो, दुनिया ही घर-आँगन है
सात समंदर पार भी देखो, कितने सारे मधुवन हैं
ैैइस पंक्ति का रूझान बाकी कविता के मूलस्वर से अलग दिख पड़ता है।
देश भक्ति से ओत प्रोत कविता ,अच्छी लगी ....सीमा सचदेव
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