मकडियों नें हर कोने को सिल दिया है
उलटे लटके चमगादड
देख रहें हैं
कैसे सिर के बल चलता आदमी
भूल गया है अपनी ज़मीन
दीवारों पर की सीलन का
फफूंद की आबादी को
दावत पर आमंत्रण है
दरवाज़ों पर दीमक की फौज़
फहराती है आज़ादी का परचम
दाहिने-बांयें थम...
मैडम का जनमदिन है
जनपथों के ट्रैफिक जाम है
साहब का मरणदिन है
रेलडिब्बे के ट्वायलेट तक में लेट कर
आदमी की खाल पहने सूअर
बढे आते हैं रैली को
थैली भर राशन उठायें
कि दिहाडी भी है, मुफ्त की गाडी भी है
देसी और ताडी भी है..
और तुम भगतसिंह?
पागल कहीं के
इस अह्सान फरामोश देश के लिये
"आत्म हत्या” कर ली?
अंग्रेजी जोंक जब यह देश छोड कर गयी
तो कफन खसोंट काबिज हो गये
अब तो कुछ मौतें सरकारी पर्व हैं
जिनके बेटों पोतों को विरासत में कुर्सियाँ मिली हैं
निपूते तुम! किसको क्या दे सके?
फाँसी पर लटक कर जिस जड को उखाडने का
दिवा-स्पप्न था तुम्हारा
वह अमरबेल हो गयी है
आज 23 मार्च है...
आज किसी बाग में फूल नहीं खिलते
कि एक सरकारी माला गुंथ सके
मीडिया को आज भी
किसी बलात्कार का
लाईव और एक्सक्लूसिव
खुलासा करना है
सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
जूतमपैजार में व्यस्त हैं
जिसके भीतर बम पटक कर तुम
बहरों को सुनाना चाहते थे...
बहरे अब अंधे भी हैं
तुम इस राष्ट्र के पिता-भ्राता या सुत
कुछ भी तो नहीं
तुम इस अभागे देश के कौन थे भगतसिंह?
*** राजीव रंजन प्रसाद
23.03.2008
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :
सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
जूतमपैजार में व्यस्त हैं
जिसके भीतर बम पटक कर तुम
बहरों को सुनाना चाहते थे...
बहरे अब अंधे भी हैं
राजीव जी , बहुत ही अच्छा चित्रण!
भगत सिंह के देश के लिये क्या सपने थे
हमारे नेता देश को किधर ले जा रहे है
रचना के प्रारम्भ में मात्र 2-4 शब्द पढ़ने से आभास हो जाता है कि वही दिव्य कलम है..
आज 23 मार्च है...
आज किसी बाग में फूल नहीं खिलते
कि एक सरकारी माला गुंथ सके
मीडिया को आज भी
किसी बलात्कार का
लाईव और एक्सक्लूसिव
खुलासा करना है
सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
जूतमपैजार में व्यस्त हैं
जिसके भीतर बम पटक कर तुम
बहरों को सुनाना चाहते थे...
बहरे अब अंधे भी हैं
नमन है राजीव जी आपकी की लेखनी को..
सही कहा बहरे अब अंधे भी हैं, और दुर्भाग्य की आज कोई भगत संघ भी नही.....उंदा तेवर
और तुम भगतसिंह?
पागल कहीं के
इस अह्सान फरामोश देश के लिये
"आत्म हत्या” कर ली?
सच बात है ....सच कहूँ तो सारी कविता का सार यही है....
राजीव जी बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ लिखी
मीडिया को आज भी
किसी बलात्कार का
लाईव और एक्सक्लूसिव
खुलासा करना है
सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
जूतमपैजार में व्यस्त हैं
ये कटु सत्य है आज हमारे नेताओ को फुरसत नहीं कुर्सी प्रेम हावी हो गया है
शहीद भगत सिंह को भुलाया नहीं जा सकता वो आज भी देश प्रेमियों के दिलों में बसते हैं ..
सुरिन्दर रत्ती
बिल्कुल सही कहा राजीव जी। हमारे नेता लोग अपने बाप दादाओं के काम और नाम पर जी रहे हैं। केवल एक ही परिवार का राज है। माफ कीजियेगा जज़्बाती हो रहा हूँ पर अगर उस परिवार का कोई नौकर भी खड़ा हो जाये तो वो भी जीत जायेगा चाहें लोग उसका नाम न जानें। यहाँ मैं लोगों को भी जिम्मेदार मानता हूँ। २ अक्तूबर हो या और कोई दिन हर तरफ समारोह होते हैं पर २३ जनवरी व २३ मार्च शायद किसी को याद नहीं रहती है। अपनी कविता में एक और पंक्ति लिखिये क्योंकि नेता लोग वो भी लिख ही देंगे कि भगत सिंह तो आतंकवादी थे।
बहुत सटीक लिखा है,गहरा प्रघात छोड़ गया,बहुत बधाई.
राजीव जी आज के परिप्रेक्ष्य में कविता का सच -सच में दहला जाता है।
आज 23 मार्च है...
आज किसी बाग में फूल नहीं खिलते
कि एक सरकारी माला गुंथ सके
मीडिया को आज भी
किसी बलात्कार का
लाईव और एक्सक्लूसिव
खुलासा करना है
सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
जूतमपैजार में व्यस्त हैं
बहुत ही अच्छा चित्रण!
अच्छा प्रहार किया है आपने मीडिया पर भी -----
सब टी र पी बढ़ने के चक्कर में रहते हैं.देश की किसे फ़िक्र है?
शहीद दिवस कब आया कब गया?23 march????किसे फ़िक्र है??हाँ वैलेंटाइन डे होता तो बात और थी--महीनों पहले शोर होता रहता-----क्या कहें??
गनीमत है ! कम से कम कुछ कलम जागी हुई हैं.
शुक्रिया!
वाह राजीव जी बहुत खूब लिखा आपने
कमाल का लिखा है
बधाई
23 march yaad dilane ke liye dhanyawaad
जय हिंद
सच मी आज हम उन शहीदों को याद करना भी गंवारा नही करते जिन्होंने देश की खातिर हस कर कुर्बानी दे दी |
शहीदों की चितायों पे लगेगे हर वर्ष मेले
वतन पे मिटने वालो का यही आख़िरी निशाँ होगा
लेकिन आज मेले टू दूर लोग नाम तक भूल चुके है |
मन को झंझोड़ देने वाली कविता ......सीमा सचदेव
डा. रमा द्विवेदीsaid....
बहुत ही कटु सत्य को लिखा है आपने....आपकी लेखनी और धारदार बने ,इन्हीं शुभकामनाओं के साथ...
आज 23 मार्च है...
आज किसी बाग में फूल नहीं खिलते
कि एक सरकारी माला गुंथ सके
मीडिया को आज भी
किसी बलात्कार का
लाईव और एक्सक्लूसिव
खुलासा करना है
सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
जूतमपैजार में व्यस्त हैं
जिसके भीतर बम पटक कर तुम
बहरों को सुनाना चाहते थे...
हमेशा की तरह अच्छी रचना जो बहुत कुछ कह रही है ..शुक्रिया यह दिन हम सबको याद कराने के लिए राजीव जी
राजीव जी,
बड़ी विचारोत्तेजक कविता है !
सच कहूँ तोह अभी तक कई बार पढ़ चुका हूँ और न ही इसके शिल्प पर मेरी दृष्टि जाती है और ना ही शब्दों पर ! पता नही आपकी रचना ने मुझे कहाँ उलझा दिया है ! सम्भव है मुझे भी कुछ लिखने के लिए प्रेरित करे !!
राजीव जी
मज़ा आ गया आपकी रचना पढ़कर-
और तुम भगतसिंह?
पागल कहीं के
इस अह्सान फरामोश देश के लिये
"आत्म हत्या” कर ली?
अंग्रेजी जोंक जब यह देश छोड कर गयी
तो कफन खसोंट काबिज हो गये
अब तो कुछ मौतें सरकारी पर्व हैं
जिनके बेटों पोतों को विरासत में कुर्सियाँ मिली हैं
निपूते तुम! किसको क्या दे सके?
फाँसी पर लटक कर जिस जड को उखाडने का
दिवा-स्पप्न था तुम्हारा
वह अमरबेल हो गयी है
अति सुंदर लिखा है. बधाई
सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
जूतमपैजार में व्यस्त हैं
जिसके भीतर बम पटक कर तुम
बहरों को सुनाना चाहते थे...
बहरे अब अंधे भी हैं
"बहुत ही कमाल का, अच्छा, सुंदर चित्रण"
Regards
प्रिये राजीव जी
पहले कभी आपकी कविता पढी हो याद नहीं पड़ता . मगर आज इस कविता को पढ़कर लगा जैसे किसी ने जगाया हो एक गहरी नींद से .....
अगर आज कोई प्रेम दिवस होता तो शायद मीडिया न जाने कितने सप्ताह पहले कई सरे पन्ने रंग चुकी होती .. मगर ये तो शहीद दिवस है न कहाँ ख़बर दुनिया को ..
एक अच्छी ही नहीं वरन बहुत अच्छी कविता.
बधाई
शाहिद "अजनबी"
राजीव रंजन जी, आप की रचना मुझे बहुत पसंद आई
बहुत ही अच्छा विषय चुना है आपने और उससे भी अच्छा आपने देश - भक्त , "भगतसिंह'' पर अपने विचार लिख कर रचना मे
चार चाँद लगा दिए हैं
धन्यवाद
Hats off to you ...
From the beginning to end, poem does not degrade the pitch level that it touches initially. Every sentence gives a shocking treatment to the reader. But this shocking treatment is really a naked truth. And moreover, for little greeds people are supporting these things because of which these bad things are now deeply rooted in our system. After reading, the poem forced me to think what can i do for this painful situation...but at the other moment i feel that i have no power. The only thing i can do is to spread this message to all my known ones, and defiantly i will do that.
I feel that we are now behaving as Frogs in this whole arena. When you try to keep a frog in a hot boiled water, it immediately tries to jump out from the vessel. But when you keep the same frog in a cold water vessel and gradually heated with low flames, it does not feel and react upon the increasing temperature of the water. And after a limit, when it feels that its too hot now, it becomes unable to do anything and fails to jump out from the same vessel. He can only be rescued if someone brings him out. In the same way, i think when the situation starts degrading we have not noticed seriously. And now the situation becomes worse and keeps on going in the same direction. We have changed the education system by removed the wing of teaching the moral values, and added ( i think added in excess ) the learning of some particular leaders in almost every chapter. Even our designers of the text books give politically oriented priorities to some late leaders over the great leaders and fighters. Well, this is also a issue that needs long to discuss and can be played as a debate.
I begin my ending by again praising you and requesting you to keep such efforts alive forever. Jai Hind !
Thanks & Regards,
Prabhat
बहुत हीं गहरा व्यंग्य है राजीव जी। आपकी लेखनी ने विषय के साथ भरपूर न्याय किया है। और अंत तो अंदर तक झकझोर देता है-
"आखिर तुम इस देश के कौन थे भगत सिंह!"
इससे बड़ा प्रश्न उन अभागे शहीद क्रांतिकारियों से नहीं पूछा जा सकता।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
जो शोणित से लिख आये थे इन्कलाबी मिसाल वक्त में
उनके बिसराये जाने पर क्यों न आये उबाल रक्त में
तुम इस राष्ट्र के पिता-भ्राता या सुत
कुछ भी तो नहीं
तुम इस अभागे देश के कौन थे भगतसिंह?
-- यह एक नवीन प्रश्न है कि भगत सिंह को कोई उपाधि नही मिली है ?
सुंदर है |
अवनीश तिवारी
तुम इस राष्ट्र के पिता-भ्राता या सुत
कुछ भी तो नहीं
तुम इस अभागे देश के कौन थे भगतसिंह?
राजीव जी बार-बार सोचने पर मजबूर कर देती है आपकी कविता। आपकी लेखनी का पैनापन असाधारण है। प्रारंभ से अंत तक बाँधे रखती है रचना।
राजीव जी
कई दिनों से नेट समस्या से ग्रस्त होने से टिपण्णी समय से नहीं दे सका. बचपन से जिन मूर्तियों के स्मरण से ही दिन का आगाज हुआ है उनके विस्मरण को राष्ट्रीय शर्म ही माना जाना चाहिए किंतु दुःख की बात यही है की अमर शहीदों की चिताओं पर हर वर्ष मेले लगने के बजाय देश को राष्ट्रीय भावना हीन तुच्छ राजनीतिक चरागाह में परिवर्तित करने का कुचक्र निरंतर जारी है
अस्तु आपकी लेखनी सदा की भांति अपना कार्य निरंतर कर रही है ... नमन आपके इस सतत प्रयास को
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