फटाफट (25 नई पोस्ट):

Monday, March 24, 2008

विज्ञापन


तलाश है ....
नए शब्दों की....
...जो नित नए उठते भावों को
समुचित अर्थ दे सकें
...जो इंसान की इन्सानियत की
वास्तविक परिभाषा गढ़ सके
ऐसे शब्द...
जो तमाम भाषाओं में
एक अर्थ-- एक भाव रखे
और बस प्रयोग मात्र से ही
बिन प्रयास किए
आम से आम के ज़ेहन में
सही तस्वीर उकेर सके
ताकि हर बार
इंसान से इंसान न धोखा खाए
ताकि इंसान भी संसार में
प्रजापति के लिहाज़ से
दुर्लभ न हो जाए
ताकि दिन भर पसीने बहाने वाला
हर शख्स खाली हाथ घर न लौटे
ला सके चंद मुट्ठी खुशियाँ बटोर
और हंसी-खुशी जैसे ज़ज़्बात
महज़ किताबी चीज न बनी रहे
ताकि शब्द उन्हें हक़ीक़त में बदल सके
ताकि शब्द... महज शब्द न रहे
ताकि शब्द ढ़लने से पहले
एक आकार ले ले
और सचमुच ब्रह्म हो जाए !

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

14 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

ताकि शब्द ढ़लने से पहले
एक आकार ले ले
और सचमुच ब्रह्म हो जाए !

सही विवेचना। एसे शब्द ब्रम्ह ही होते हैं...

*** राजीव रंजन प्रसाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

अभिषेक जी,

सुन्दर शैली , शीर्शक से न्याय करती हुई
इसी की आवश्यकता है आवेदन कर्ता बहुत कम हैं..

Sajeev का कहना है कि -

वाह, क्या बात है....

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सुंदर आह्वाहन है |

अवनीश तिवारी

VARUN ROY का कहना है कि -

अभिषेक जी ,
शब्द में इतनी ताकत तो है क्योंकि शब्द तो ब्रह्म है ही ,परन्तु काश ऐसा हो तो यह संसार रहने की एक बेहतर जगह बन जाए.
वरुण राय

Shahid Ajnabi का कहना है कि -

प्रिये पाटनी जी
बहुत दिनों बाद एक सार्थक सी कविता पढने को मिली . प्यार , मुहब्बत से दूर एक सच्चाईयों से भरी , जो बयां करती है वो सब जो इन्सान को चाहिए . आपके ही शब्द बोलते हैं -
"ताकि दिन भर पसीने बहाने वाला
हर शख्स खाली हाथ घर न लौटे
ला सके चंद मुट्ठी खुशियाँ बटोर
और हंसी-खुशी जैसे ज़ज़्बात
महज़ किताबी चीज न बनी रहे
ताकि शब्द उन्हें हक़ीक़त में बदल सके
ताकि शब्द... महज शब्द न रहे"
कविता के उनवान से टू अंदाजा नहीं होता है की इसमें कवि ने ये सब लिखा होगा . जहाँ तक मेरा मानना है कवि किसी एक के लिए लिखना शुरू करता है . और फ़िर वो पूरे संसार के लिए लिखने लगता है. यही कविता में वजन आने का संकेत है. साफ साफ झलकता है वजन आपकी कविता से . साधुवाद आपको एक ऐसी कविता के लिए..
शाहिद "अजनबी"

increase your blog traffick का कहना है कि -

क्या मै आपके ब्लोग को अपने ब्लोग पर लिंक डाल दुं।
आसा कर्ता हु जलदी बतायेंगे

anju का कहना है कि -

अभिषेक जी
बहुत कुछ बोलती है आपकी यह कविता

ताकि दिन भर पसीने बहाने वाला
हर शख्स खाली हाथ घर न लौटे
ला सके चंद मुट्ठी खुशियाँ बटोर
और हंसी-खुशी जैसे ज़ज़्बात
विशेष कर यह पंक्तिया
अति सुंदर

Alpana Verma का कहना है कि -

जो तमाम भाषाओं में
एक अर्थ-- एक भाव रखे
और बस प्रयोग मात्र से ही
बिन प्रयास किए
आम से आम के ज़ेहन में
सही तस्वीर उकेर सके
-बहुत सही सोच है.
-अगर ऐसा हो जाए तो बहुत सी समस्याएं ही सुलझने लगेंगी.
-कविता अच्छी लगी.
आभार सहित.

Harihar का कहना है कि -

अभिषेक जी क्या बताउं और कैसे बताउ
आपकी बात बिल्कुल गलत है
तलाश है ....
ऎसे शब्दों की....
सस्ते शब्दों की
जो गरीब जनता को
आकृष्ट कर सके
जो अपनी जैब खाली कर
मल्टी नेशनल कंपनियाओं की
जैब भर सकें
अब आप थोड़े में ही समझ जाइये न !

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

इंसान से इंसान न धोखा खाए
ताकि इंसान भी संसार में
प्रजापति के लिहाज़ से
दुर्लभ न हो जाए
बहुत खूब ! प्रतीकात्मक शैली और कथ्य स्पष्ट !इससे अधिक क्या चाहिए किसी भी रचना की सफलता के लिए !!
बधाई हो !!!!

Rama का कहना है कि -

डा. रमा द्विवेदी said...

अभिषेक जी, कविता बहुत भावपूर्ण है...पर मुझे यह समझ नहीं आया कि आपने’विज्ञापन’ शीर्षक क्यों दिया? कविता में यह शब्द तो कहीं नहीं है...वैसे एक अच्छी कविता के लिए बधाई...

RAVI KANT का कहना है कि -

काश! ये तलाश पूरी हो सके।

mona का कहना है कि -

"Sachch" ki tarak yah kavita bhi mujhe aapke sab kavitaon mein se behtareen lage. Kitne khubsoorat panktiyaan hain
जो इंसान की इन्सानियत की
वास्तविक परिभाषा गढ़ सके
ऐसे शब्द...


ताकि हर बार
इंसान से इंसान न धोखा खाए

ताकि दिन भर पसीने बहाने वाला
हर शख्स खाली हाथ घर न लौटे
ला सके चंद मुट्ठी खुशियाँ बटोर
और हंसी-खुशी जैसे ज़ज़्बात
महज़ किताबी चीज न बनी रहे

Loads of appreciation for such a beautiful poetry.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)