गुरु देव पंकज जी ने अपनी ग़ज़लों की कक्षा में एक होम वर्क दिया था.तभी "होली" काफिये पर ये ग़ज़ल लिखी थी.उस काफिये पर बहुत से सहपाठियों ने बहुत उम्दा रचनाएँ लिखीं. उम्मीद करता हूँ कि मेरा प्रयास भी शायद पसंद आए.
प्यार जिनके लिए ठिठोली है
सोच उनकी हुजूर पोली है
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
याद का यूँ नशा चढ़े तेरी
भंग की ज्यूँ चढाई गोली है
गुफ्तगू का मज़ा कहाँ प्यारे
बात गर सोच सोच बोली है
मस्तियां देख कर नहीं आतीं
ये महल है कि कोई खोली है
बोल कर झूट ना बचा कोई
सोच मेरी जनाब भोली है
आप उस पर यकीन मत करना
वो सियासत पसंद टोली है
खूब रब ने दिया तुझे नीरज
दिल मगर क्यों बिछाए झोली है
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
" वाह , बहुत सुंदर, अच्छी पंक्तियाँ"
Regards
बढि़या . खूब और होली की तरह ही रंगीन
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
Beautiful Sir.
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
गुफ्तगू का मज़ा कहाँ प्यारे
बात गर सोच सोच बोली है
मस्तियां देख कर नहीं आतीं
ये महल है कि कोई खोली है
उपर उद्धरित शेर खास पसंद आये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुन्दर नीरज जी,
बहुत अच्छा प्रयास, पसन्द आया...
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
बहुत सुन्दर...
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
याद का यूँ नशा चढ़े तेरी
भंग की ज्यूँ चढाई गोली है
बहुत खूब नीरज जी .होली का रंग खूब निखर के आया है इस गजल में
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
होली पर आपका संदेश देर से मिला पर अच्छा मिला ....
नीरज जी, केवल एक ही शे'र पसंद आया जिसका जिक्र बाकि पाठकों ने भी किया है। पर प्रयास अच्छा था। होली की बधाई।
नीरज जी, आप का प्रयास हमे पसंद आया आपने बहुत सुंदर गजल लिखा है
bahut achcha neeraj ji.. holi mubarak..
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
अति सुंदर
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
-खूब लिखा है.
बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
kafi samay baad yaha aanahua
ye lines bahut pasand aayi
sumit bhardwaj
नीरज जी,
जहाँ तक होली का काफिया लेकर ग़ज़ल लिखने की बात है, आपकी कोशिश हद दर्जे तक कामयाब है, लेकिन आपको नही लगता कि इसमें जज्बात की वो बौछार नही है, जो अमूमन किसी भी कविता या ग़ज़ल की जान होती है ! शास्त्रीयता तो रचना के आवरण मात्र होते हैं, उनका ह्रदय तो उनमें निहित भाव और उस ह्रदय की धड़कन उन भावों का स्पंदन होता है!
हो सकता है कि मेरी समीक्षा शायद सीमा का अतिक्रमण कर गयी हो, लेकिन उम्मीद है कि आप इसे अन्यथा न लेकर आपसे कुछ अधिक उम्मीद कर रहे एक प्रशंशक की अपेक्षा समझेंगे !
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