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Monday, March 24, 2008

तब समझना कि यार होली है


गुरु देव पंकज जी ने अपनी ग़ज़लों की कक्षा में एक होम वर्क दिया था.तभी "होली" काफिये पर ये ग़ज़ल लिखी थी.उस काफिये पर बहुत से सहपाठियों ने बहुत उम्दा रचनाएँ लिखीं. उम्मीद करता हूँ कि मेरा प्रयास भी शायद पसंद आए.

प्यार जिनके लिए ठिठोली है
सोच उनकी हुजूर पोली है

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है

याद का यूँ नशा चढ़े तेरी
भंग की ज्यूँ चढाई गोली है

गुफ्तगू का मज़ा कहाँ प्यारे
बात गर सोच सोच बोली है

मस्तियां देख कर नहीं आतीं
ये महल है कि कोई खोली है

बोल कर झूट ना बचा कोई
सोच मेरी जनाब भोली है

आप उस पर यकीन मत करना
वो सियासत पसंद टोली है

खूब रब ने दिया तुझे नीरज
दिल मगर क्यों बिछाए झोली है

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
" वाह , बहुत सुंदर, अच्छी पंक्तियाँ"
Regards

कथाकार का कहना है कि -

बढि़या . खूब और होली की तरह ही रंगीन

अमिताभ मीत का कहना है कि -

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
Beautiful Sir.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है

गुफ्तगू का मज़ा कहाँ प्यारे
बात गर सोच सोच बोली है

मस्तियां देख कर नहीं आतीं
ये महल है कि कोई खोली है

उपर उद्धरित शेर खास पसंद आये।

*** राजीव रंजन प्रसाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुन्दर नीरज जी,

बहुत अच्छा प्रयास, पसन्द आया...

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है

बहुत सुन्दर...

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है

याद का यूँ नशा चढ़े तेरी
भंग की ज्यूँ चढाई गोली है

बहुत खूब नीरज जी .होली का रंग खूब निखर के आया है इस गजल में

Sajeev का कहना है कि -

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
होली पर आपका संदेश देर से मिला पर अच्छा मिला ....

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

नीरज जी, केवल एक ही शे'र पसंद आया जिसका जिक्र बाकि पाठकों ने भी किया है। पर प्रयास अच्छा था। होली की बधाई।

Unknown का कहना है कि -

नीरज जी, आप का प्रयास हमे पसंद आया आपने बहुत सुंदर गजल लिखा है

Kavi Kulwant का कहना है कि -

bahut achcha neeraj ji.. holi mubarak..

anju का कहना है कि -

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है


अति सुंदर

Alpana Verma का कहना है कि -

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
-खूब लिखा है.

Unknown का कहना है कि -

बर्फ रिश्तों से जब पिघल जाए
तब समझना की यार होली है
kafi samay baad yaha aanahua
ye lines bahut pasand aayi

sumit bhardwaj

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

नीरज जी,
जहाँ तक होली का काफिया लेकर ग़ज़ल लिखने की बात है, आपकी कोशिश हद दर्जे तक कामयाब है, लेकिन आपको नही लगता कि इसमें जज्बात की वो बौछार नही है, जो अमूमन किसी भी कविता या ग़ज़ल की जान होती है ! शास्त्रीयता तो रचना के आवरण मात्र होते हैं, उनका ह्रदय तो उनमें निहित भाव और उस ह्रदय की धड़कन उन भावों का स्पंदन होता है!
हो सकता है कि मेरी समीक्षा शायद सीमा का अतिक्रमण कर गयी हो, लेकिन उम्मीद है कि आप इसे अन्यथा न लेकर आपसे कुछ अधिक उम्मीद कर रहे एक प्रशंशक की अपेक्षा समझेंगे !

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