कवि दीपेन्द्र का परिचय अब हमें प्राप्त हो गया है, इसलिए आज हम चौथी कविता प्रकाशित कर रहे हैं।
वास्तविक नाम - दीपेंद्र शर्मा
उम्र - २२ वर्ष
शिक्षा - बी.टेक (मेकेनिकल इन्जिनिएरिंग)
संस्थान - B.I.T (मेरठ)
सम्प्रति - बोकारो पावर प्लांट (झारखण्ड) में प्रबंधन प्रशिक्षु के पद पर कार्यरत
स्थाई पता - 842 / 10 फूल बाग़ कालोनी मेरठ (उ॰प्र॰), पिन - 250001
उपलब्धि-
(1) विद्यालय स्तर पर अनेक काव्य प्रतियोगिताओं में पुरुस्कार
(2) बोकारो में कम्पनी के वार्षिक कार्यक्रम में काव्य पाठ
(3) हिंद युग्म में पिछले तीन माह से लगातार प्रकाशित
पुरस्कृत कविता- नए सोपानों की चाह मिली
नए सफर मिले नयी राह मिली , नए सोपानों की चाह मिली
तुम साथ में थी जग रोशन था , तन्हा हैं तो दुनिया स्याह मिली
हर वेद ऋचा का सार है जो
हर आयत का श्रृंगार है जो
उस प्रेम की काल कोठरी में -
कितनों के टूटे हृदय मिले , कितनों की बेसुध आह मिली
नए सफर मिले नयी राह मिली , नए सोपानों की चाह मिली
चेहरों कि झूठी सच्चाई में
अधरों की क्रूर दिताई में
मैं रहा ढूँढता कस्तूरी
पर देखो तो हाय! ये मजबूरी
कि मानव मन की वैदेही में -
खुशियों का विकट अभाव मिला , पीड़ा की पूँजी अथाह मिली
नए सफर मिले नयी राह मिली , नए सोपानों की चाह मिली
कितने ही दीये जलाये पर
कितने ही फूल खिलाये पर
तम से ही मुझे दुलार मिला
काँटों से सच्चा प्यार मिला
कड़वी है मगर सच्चाई है
कि अपनों ने ठुकराया मुझको , गैरों से मुझे पनाह मिली
नए सफर मिले नयी राह मिली , नए सोपानों की चाह मिली
नए सफर मिले नयी राह मिली , नए सोपानों की चाह मिली
तुम साथ में थी जग रोशन था , तन्हा हैं तो दुनिया स्याह मिली
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८
स्थान- सातवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰६, ७, ८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰२
स्थान- प्रथम
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-हर तरह से सुंदर रचना।
कथ्य: ४/३ शिल्प: ३/२॰५ भाषा: ३/२॰५
कुल- ८
स्थान- प्रथम
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
त्रुटिहीन प्रवाह, सटीक शब्दचयन, बेहतरीन गीत।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ८॰५/१०
कुल योग: १५॰५/२०
पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
चेहरों कि झूठी सच्चाई में
अधरों की क्रूर दिताई में
मैं रहा ढूँढता कस्तूरी
पर देखो तो हाय! ये मजबूरी
कि मानव मन की वैदेही में -
खुशियों का विकट अभाव मिला , पीड़ा की पूँजी अथाह मिली
नए सफर मिले नयी राह मिली , नए सोपानों की चाह मिली
" वाह वाह बहुत सुंदर कवीता , बधाई"
चेहरों कि झूठी सच्चाई में
अधरों की क्रूर दिताई में
मैं रहा ढूँढता कस्तूरी
पर देखो तो हाय! ये मजबूरी
कि मानव मन की वैदेही में -
खुशियों का विकट अभाव मिला , पीड़ा की पूँजी अथाह मिली
बहुत बढ़िया पंक्तियाँ है,बधाई हो
चौथा पुरस्कार पाने पर बधाई.
कविता में शब्दों का चयन और गठन बहुत सुंदर है और प्रवाह तो देखते ही बनता है !
दीपेंद्र की कविता नए सोपानों की चाह मिली - बहुत अच्छी लगी.. लेकिन एक शब्द दिताई आया है ! उसका क्या अर्थ है?
नए सफर मिले नयी राह मिली , नए सोपानों की चाह मिली
तुम साथ में थी जग रोशन था , तन्हा हैं तो दुनिया स्याह मिली
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बहुत ही अच्छी शुरूआत हुई है......"तुम" को बहुत ही अच्छी तरह से प्रस्तूत किया है....
अच्छी रचना है.......
बधाई हो......!!!
'दिताई' का अर्थ मैं भी जानना चाहूँगा। और गीतनुमा रचना मुझे पसंद आई।
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