सखी री !
देखो आया बसन्त
बौराई पुरवा को लेकर
मदमाती अँगड़ाई लेकर
तन-मन टूटे मदमस्त अंग
सखी री !
देखो आया बसन्त
वन-वन खिलता द्रुम वनांगार
बासंती आहट ले फुहार
सेमल, टेसू कोयल पुकार
चित-चोर नयन हिय में अनंग
सखी री !
देखो आया बसन्त
यौवन चंचल काया झूमें
अद्वैत बने प्रिय संग घूमें
कुसुमित उपवन सब जड़ चेतन
हर्षित मन है उर में उमंग
सखी री !
देखो आया बसन्त
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
यौवन चंचल काया झूमें
अद्वैत बने प्रिय संग घूमें
कुसुमित उपवन सब जड़ चेतन
हर्षित मन है उर में उमंग
बहुत बढ़िया पंक्तियाँ है,बधाई हो
बहुत सुंदर |
कितना मन भवन होता है बसंत और उतना ही महकता आपकी रचना का भाव|
बड़ा romantic है|
अवनीश तिवारी
मन आनंदित करती बसंती कविता!
मनभावन काव्य कांत जी,
फाग के राग में
लिप्त अति अनुराग में
-बधाई..
वन-वन खिलता द्रुम वनांगार
बासंती आहट ले फुहार
सेमल, टेसू कोयल पुकार
चित-चोर नयन हिय में अनंग
सखी री !
देखो आया बसन्त
" सुंदर कवीता बसंत के आगमन पर मन को उल्लासित करती "
Regards
बहुत अच्छी लगी आया बसंत...
क्या कहूं की बातें लिखते कुछ और
आते जरा आज गर दूषित वादियों के ठौर
खिल उठता हृदय , कहते जब दुखित हो
आया बसंत, पर ना दिख सका आमों का बौर।
क्या कहूं की बातें लिखते कुछ और
आते जरा आज गर दूषित वादियों के ठौर
खिल उठता हृदय , कहते जब दुखित हो
आया बसंत, पर ना दिख सका आमों का बौर।
वन-वन खिलता द्रुम वनांगार
बासंती आहट ले फुहार
सेमल, टेसू कोयल पुकार
चित-चोर नयन हिय में अनंग
सखी री !
देखो आया बसन्त
वसंत आगमन की सुंदर रचना है यह ..इसको पढ़ना अच्छा लगा !!
वाह....
हर्षित मन है उर में उमंग
सखी री !
देखो आया बसन्त
देखो सचमुच ही आया बसन्त....
श्रीकान्त जी...
बधाई..
श्री कान्त जी
बसंत का आगमन सच मच ही आनंद दाई है कविता सुंदर है-
यौवन चंचल काया झूमें
अद्वैत बने प्रिय संग घूमें
कुसुमित उपवन सब जड़ चेतन
हर्षित मन है उर में उमंग
सखी री !
देखो आया बसन्त
आशा करती हूँ कि जीवन मैं भी बसंत आएगा। सस्नेह
श्रिकान्त जी!!
बहुत ही बढिया लिखा है...बसन्त का बहुत ही अच्छे से आपने स्वागत किया है....बधाई हो!!!
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यौवन चंचल काया झूमें
अद्वैत बने प्रिय संग घूमें
कुसुमित उपवन सब जड़ चेतन
हर्षित मन है उर में उमंग
सखी री !
देखो आया बसन्त
वसंत का स्वागत होना ही चाहिए।
इस कविता पर मैथिली शरण गुप्त का प्रभाव दिखता है। ११-१२वीं कक्षा में हिन्दी की पुस्तक में कुछ कविताएँ थी- जैसे-
-->रख सखी! ये खंजन आये।
-->मुझे फूल मत मारो।
वैसे शायद गुप्त का कोई कविता-संग्रह ही मौसमों के वर्णन पर है (जिसमें उर्मिला को विरह को सजाया गया है) । अवसर मिले तो आप पढ़ें।
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