यह पहला अवसर है कि हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता से हम इतने अनुभवी कवि की रचना प्रकाशित कर रहे हैं। पहली बार प्रतियोगिता में भाग लिए प्रेमचंद सहजवाला की ग़ज़ल नौवें स्थान पर है। प्रेमचंद सहजवाला हिन्द-युग्म के म्यूजिक एल्बम 'पहला सुर' के पहले खरीददार भी हैं।
नाम – प्रेमचंद सहजवाला
जन्म – १८ दिसम्बर १९४५
शिक्षा – एम एस सी (गणित)
सम्प्रति– भारत मौसम विज्ञान विभाग से सहायक मौसम विज्ञानी के पद से ३१ दिसम्बर २००५ को सेवानिवृत्त।
साहित्य यात्रा – (I) हिन्दी -हिन्दी की प्रमुख पत्रिकाओं यथा धर्मयुग, साप्ताहिक, सारिका, रविवार, कहानी आदि में लगभग ८० कहानियाँ प्रकाशित। कुछ कहानियाँ आकाशवाणी से प्रसारित। कुछ कहानियाँ पुरस्कृत।
कहानी संग्रह-१॰ सदमा २॰ कैसे-कैसे मंज़र ३॰ टुकड़े-टुकड़े आसमान।
दूसरे संग्रह पर शिक्षा मंत्रालय का पुरस्कार. पहले संग्रह की भूमिका श्रीपत राय ने लिखी जो कि ‘कहानी’ पत्रिका के संपादक थे व मुंशी प्रेमचंद के सुपुत्र थे। इनके संग्रह की भूमिका में उन्होंने इन्हें अपनी संतति घोषित किया। इनके मित्रगण प्रसन्न थे कि प्रेमचंद का सुपुत्र श्रीपत राय और उनके साहित्यिक सुपुत्र प्रेमचंद सहजवाला बने।
कविता बहुत कम लिखी व कुछ ग़ज़लें भी लिखी। थोड़ी सी सफलता भी मिली। पर मूलतः कहानीकार माने जाते हैं। एक पत्र में धारावाहिक लघु-उपन्यास भी छपा।
(II) अंग्रेज़ी- आजकल कई वेबसाइटों पर इनके इतिहास, राजनीति व धर्म संबंधित लेख हैं। (www.youthejournalist.com, www.sulekha.com, www.merinews.com). जनवरी २००६ में इनका 'इंग्लिश इनसाइक्लोपिडिया' छपा ( 'इंडिया थ्रू क्वेशचन्स एण्ड ऑनसर' दो वाल्यूमों में)।
(III) सिंधी – सिंधीभाषी होने के नाते सिंधी ग़ज़ल व लेख लिखे।
हिन्द-युग्म ने हिन्दी साहित्य से इन्हें दुबारा जोड़ लिया।
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
दुनिया में यूँ तो हर किसी का साथ-संग मिला
अफ़सोस सब के चेहरे पे एक ज़र्द रंग मिला
मज़हब की रौशनी से था रौशन हुआ जहाँ
मज़हब के मसीहाओं से पर शहर तंग मिला
सच की उड़ान जिसने भरी और उड़ चला
वो शख़्स शहादत की लिए इक उमंग मिला
कल तक गले लगा के जो करता था जाँ निसार
बातों में उसकी आज अनोखा या ढंग मिला
जिसने लिबास ओढ़ रखा था उसूल का
वो फर्द सियात की उड़ाता पतंग मिला
सूली पे चढ़ गया कोई हक़ बोलकर यहाँ
तारिख़ के पन्नों पे इक ऐसा प्रसंग मिला
शीशे में शक्ल देख हैराँ हुआ हूँ मैं
शीशा भी मुझे देखकर किस कद्र दंग मिला
मज़नू जहाँ गया वहाँ इक भीड़ थी जमा
हाथों में सबके एक नुकीला सा संग मिला
मिलकर चले थे सबके कदम सहर की तरफ
क्यों आज विरासत में ये मैदाने जंग मिला
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰७५
स्थान- तेरहवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰१, ८॰१, ७॰७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९८३३
स्थान- छठवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- ग़ज़ल की बारीकी को पकड़ा है। उम्दा है।
कथ्य: ४/३ शिल्प: ३/२॰५ भाषा: ३/२॰५
कुल- ८
स्थान- प्रथम
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कला पक्ष: ६/१०
भाव पक्ष: ७/१०
कुल योग: १३/२०
पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
कल तक गले लगा के जो करता था जाँ निसार
बातों में उसकी आज अनोखा या ढंग मिला
"प्रेमचंद जी अती सुंदर रचना के लिए और हिंद युग्म पर प्रकाशित होने के लिए बहुत बहुत बधाई"
Regards
बहुत सुंदर |
युग्म से जुड़ने के लिए आभार |
लेकिन मुझे पहले शेर मे काफिया क्या है नही समझा ?
अवनीश तिवारी
बहुत सुंदर लगी आपकी यह रचना .बधाई !!
वाह....
बहुत सुंदर शेर हैं.....
बधाई...स्वीकार करें...
बहुत खूबसूरत
जिसने लिबास ओढ़ रखा था उसूल का
वो फर्द सियात की उड़ाता पतंग मिला'
*खूबसूरत शेर हैं.
*हमारा सौभाग्य हिन्दयुग्म पर आप की रचना पढने का मौका मिला.
बहुत अच्छे,बधाई हो सर जी
अलोक संघ "साहिल"
अच्छी रचना है....हिन्दी युग्म से जुड़ के लिये आभार....
*******************
मज़हब की रौशनी से था रौशन हुआ जहाँ
मज़हब के मसीहाओं से पर शहर तंग मिला
जिसने लिबास ओढ़ रखा था उसूल का
वो फर्द सियात की उड़ाता पतंग मिला
मिलकर चले थे सबके कदम सहर की तरफ
क्यों आज विरासत में ये मैदाने जंग मिला
ग़ज़ल के व्याकरण का अतिक्रमण करती हुई रचना, मगर भाव पक्ष मज़बूत है। बधाई।
bahut hi umda gazal hai khaaskar ye sher to behatareen hai
जिसने लिबास ओढ़ रखा था उसूल का
वो फर्द सियात की उड़ाता पतंग मिला'
मिलकर चले थे सबके कदम सहर की तरफ
क्यों आज विरासत में ये मैदाने जंग मिला
Premji,
At last, I got to see your impressive profile along with even impressive photo, still young enough to charm a lot of "Urvashis". And congratulations to you for winning the prize. Keep up the good job. Also, please include your social work and charity in your profile..
Regards,
Shyamal
प्रेमचंद की 128 जयंती पर आपका लेख काफी पसंद आया। आपने जिस बारीकी से प्रेमचंद के लेखन में सामाजिक पहुलुओं को उठाया है वह नया है। पिछले तमाम प्रेमचंद संबंधी विश्लेषकों के बाद इसमें काफी कुछ नया है।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)