इस काव्य रचना में मात्रिक छंदों के साथ लय बद्धता का ध्यान तो रखा ही गया है साथ ही दो नये प्रयोग भी किए गये हैं ।
एक - पूरी काव्य रचना सिर्फ दो अक्षरीय शब्दों के साथ की गई है ।
दूसरा - किसी भी शब्द की पुनरावृत्ति नही है ।
नायक (नायिका से) :
हम तुम हर पल संग धरा पर,
सुख दुख तम गम धूप छांव उर ।
तन मन प्रण कर प्रीत गीत ऋतु
छल, काल, जाल, विष पान हेतु ।
कोटि भाव नित, होंठ नव गान,
झूम यार मद, लग अंग प्रान ।
तरु लता बंध, भेद चिर मिटा,
काम, रस, प्रेम, बाण कुछ चला ।
भय भूल झूल, राग रति निभा,
रीत मधु मास, रास वह दिखा ।
छवि कांति देह, मुख जरा उठा,
ताल शत धार, आग वन लगा ।
* * * * *
नेपथ्य से :
नीर रंग भर, सात सुर सजा,
झरें फूल नभ, गान युग बजा ।
जप-तप-व्रत, दीप रोली हार,
जगा जग रैन, नत ईश द्वार ।
शील सेवा रत, हरि हाथ सर,
प्यार रब संग, देव देवें वर ।
शूल, शैल, शर, बनें फूल खर
ढ़ाल खुद खुदा, खुशी अंक भर ।
तज राज यश, मिटा पाप ताप,
माया भ्रम क्षुधा, तोड़ डर शाप ।
ठान सत्य मूल, रोम रग धार
बल बुद्धि धूल, रूह नर सार ।
चूर दिन रात, भज राम नाम,
अश्रु आह मरु, शांति शिव धाम ।
बंधु, सखा सब, सुधि विधि छोड़,
लीन प्रभु गान, लोभ निज मोड़ ।
दृग अंत: खोल, ज्ञान अति कोष,
आत्म निज नाद, सांई सच घोष ।
भुला प्रेम जन, सुत, मीत झूठ,
ओम नाम सत, दिल बसा झूम ।
दृढ़ निज बोल, पर सेवा सोम
मेघ घन घोर, विभा सप्त व्योम ।
लिप्त गुरू नाम, रत्न जब भाव,
मोख मिले भक्त, पार मझ नाव ।
कवि कुलवंत सिंह
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
हम तुम हर पल संग धरा पर,
सुख दुख तम गम धूप छांव उर ।
तन मन प्रण कर प्रीत गीत ऋतु
छल, काल, जाल, विष पान हेतु
" बहुत सुंदर अभीव्य्क्ती प्रेम की , एक सफल प्रयोग "
Regards
आज के समय में लयबद्धता! अद्भुत। वाकई अच्छा लगा।
पढ़ते समय रचना के दो अक्षरीय शब्दों का अलंकार मन मे घर कर जाता है |
अर्थ पर मेरा कम ध्यान था |
सुंदर, नया प्रयोग |
अवनीश तिवारी
कुलवंत जी बहुत अच्छा लगा प्रयोग ..सुंदर रचना रची है आपने !!
पूरी काव्य रचना सिर्फ दो अक्षरीय शब्दों के साथ ...वाह....
दोनों रचनाएं बहुत सुंदर...
बधाई...स्वीकार करें...
रचना एक ही है.. कथ्य दो हैं...
बहुत खूबसूरत
बहुत ही जबर्दस्त प्रयोग है कुलवंत जी। कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतनी बड़ी कविता केवल दो अक्षरीय शब्दों से लिखी जा सकती है। वो भी बिना किसी शब्द का दोबारा प्रयोग करे। कमाल है। कईं बार ऐसा परयोग घातक होता है और कविता की लय व भाव बिगड़ जाते हैं। पर आपकी शानदार कविता में ये दोनों बातें हैं। आप बधाई के पात्र हैं। आपने ऐसा करने का सोचा किस तरह से और कविता लिखने में क्या कठिनाइयाँ आईं?
इससे एक साबित हुई कि आपके पास शब्दों का भण्डार है व आप चलते फिरते शब्दकोष हैं :-) इस कविता के लिये आपको धन्यवाद।
बढ़िया क्राफ्ट है कुलवंत जी
बहुत ही सुंदर--------अनूठी कविता.
कवि जी ! एक नए अच्छे प्रयोग के लिए बधाई । परन्तु पहले यह संकेत दे देने के कारण पढ़ते समय मेरा ध्यान शब्दों पर ही लगा रह गया भाव का विशेष ग्रहण नहीं हो पाया । शायद कई पाठकों के साथ ऐसा होता हो कि शब्दों के चमत्कार की आड़ में भाव छिप जाता हो । ये बात सही है कि अर्थ समझने में कठिनाई नहीं होती और पता चलता है कि आप इससे उदात्त संदेश देना चाह रहे हैं, लेकिन भावना की गहराई तक कविता के पहुँचने में चमत्कार आड़े आ जाता है । मैने दो तीन बार पढ़ा फिर भी उसे हृदय से उसे महसूस नहीं कर पाया, जिस प्रकार की बातें आप इसमें कहना चाह रहे हैं, उनमें मेरी रुचि है, इसके बावजूद भी । आपने एक कठिन प्रयोग लिया है और काफ़ी हद तक सफल भी हुए हैं पर तीन शब्दों की पुनरावृत्ति हो गई है- पर, गान, नाम (यदि ये दो कविताएँ नहीं हैं । यदि ये दो कविताएँ हैं तो भी नाम की पुनरावृत्ति तो हुई ही है) । क्षमा कीजिएगा (यदि आपको कष्ट हो) कि मैं इनमें से गुण तो (विषय प्रिय होने पर भी) ग्रहण नहीं कर पाया और कमियाँ गिना दीं ।
कुल्वन्त जी!!
बहुत ही अच्छी रचना है..दो अक्षरीय शब्दों का जबर्दस्त प्रयोग हुआ है...नया प्रयोग पर बहुत ही अनोखी रचना बनी है...
बधाई हो!!
सभी मित्रों को मेरा हार्दिक धन्यवाद । दिवाकर मिश्र जी.. आपने इतनी खूबसूरत विवेचना की है.. उसके लिए मेरी ओर से विशेष हार्दिक धन्यवाद । कष्ट नही मुझे बहुत ही खुशी हुई है । आपने तीन शब्दों पर ध्यान दिलाया.. आपका अति आभारी हूँ।
कुल्वन्त जी, अच्छा प्रयोग है। बधाई।
शब्दों की कलात्मकता भावों को खा गई है। कोई भी पाठक इस कविता के भावों पर ध्यान एकत्रित नहीं कर सकता। कवि मंचों से इसपर वाहवाही बटोर सकता है।
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