आयो री आयो री सखी,बसंत आयो
अँगना खंजन फुदके गावे
फाग राग के गीत सुनावे
पुरवा कैसो शोर मचायो
आयो री
आओ री आयो री..........
पीरी पीरी सब फुलवारी
देख देख सब पीर बिसारी
खेत खेत झूमो लहलहायो
आयो री
आओ री आयो री..........
पीहु पीहु जब करे पपीहा
धक-धक बोले मेरो जीया
हर पैछर जैसे कंत आयो
आयो री
आओ री आयो री..........
लता डारि से लिपटी ऐसे
बाहुपाश मोरा प्रियतम जैसे
झुकी पलक ढ़ाड़ो सकुचायो
आयो री
आओ री आयो री..........
रश्मि-रथ चढ़ आयो सूरज
पुलकित वसुधा कण-कण रज-रज
मुदित भई श्रंगार सजायो
आयो री
आओ री आयो री..........
भँवरों की गुन-गुन गुंजन में
देख ठिठोली कली सुमन में
मेरो मन आतुर, शरमायो
आयो री
आओ री आयो री..........
हाँ री सखी री बसंत आयो......
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुंदर प्रस्तुति ....
रश्मि-रथ चढ़ आयो सूरज
पुलकित वसुधा कण-कण रज-रज
मुदित भई श्रंगार सजायो
आयो री
हिंद युग्म पर वसंत ही वसन्त छा गया है :).बहुत ही बसंती रचना लगी आपकी राघव जी ..बधाई !!
आप तो सचमुच ही बसंत लेकर आ गए.....सुंदर गीत बना है..
राघव जी...
बधाई |
बहुत सुंदर चित्रण |
अवनीश तिवारी
भँवरों की गुन-गुन गुंजन में
देख ठिठोली कली सुमन में
मेरो मन आतुर, शरमायो
आयो री
आओ री आयो री..........
हाँ री सखी री बसंत आयो......
"वाह पढ़ कर दिल खुश हो गया पीली सरसों की खुशबू यहाँ तक आने लगी बेहद सुंदर प्रस्तुती "
बहुत खूबसूरत
सरल ,सुंदर और मन मोहक गीत-
बहुत बढिया राघव जी!!!
बहुत ही सुंदर गीत है.....गीत के मध्यम से आपने बसंत का बहुत ही संदर चित्रण किया है...
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हर पैछर जैसे कंत आयो
लता डारि से लिपटी ऐसे
बाहुपाश मोरा प्रियतम जैसे
झुकी पलक ढ़ाड़ो सकुचायो
रश्मि-रथ चढ़ आयो सूरज
पुलकित वसुधा कण-कण रज-रज
मुदित भई श्रंगार सजायो
वसंत का स्वागतगान करती रचना सुन्दर है। सबके जीवन में भी वसंत आए इस कामना के साथ।
पुलकित वसुधा कण-कण रज-रज । बसंत ऋतु के प्रति ऐसी सँवेदंशीलता, तथा स्वागत के भावो ने मन को पुलकित कर दिया । चित पर बसंत छा गया । मेरा मन बसंत के आगमन के अवसर पर बसंती रंग मे रंगी रचना पढने को व्याकुल था, बडा अच्छा लगा । बसंत पंचमी की हार्दिक मंगलमय शुभकामनाए ।
यह कविता भी श्रीकांत जी की कविता की तरह मैथिली शरण गुप्त की शैली और कथ्य की पुनरावृत्ति है।
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