१०वें स्थान के कवि शशि कुमार का परिचय हमें प्राप्त हो गया है। कवि अपने मित्रों में बर्बाद देहलवी के नाम से भी जाने जाते हैं। इस प्रतियोगिता के लिए बिलकुल नये हैं।
जन्म तिथि : 16/01/1975
योग्यता : एम. ए.(हिन्दी), बी. एड.,
व्यवसाय : अध्यापन
रूचि : कविता व ग़ज़ल लिखना, हिन्दी व उर्दू साहित्य पढ़ना, शतरंज खेलना
साहित्यिक उपलब्धियां : विभिन्न समचार पत्रों व पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन, कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ,
जैन टी.वी. के लाइव इंडिया में काव्य पाठ,
ई-मेल : barbaddehalavi@gmail.com
पुरस्कृत कविता- किस लिए
करता हूँ मै हाले दिल बयान किस लिए
होता नहीं कोई मुझपर मेहरबान किस लिए
हिफाज़त ना कर सके जो गुल ओ बुलबुल की
गुलशन में हो वो फिर बागवान किस लिए
चाक दिल कर देते हो ज़ख़्म नए-नए
मरहम लगाते हो फिर साहिबान किसलिए
ना लरज़िशे लब ना ज़ुबान हिल सकी
दिल-दिल में उठा है फिर ये तूफान किस लिए
हमसफ़र भी है हम और मंज़िल एक है
फासला फिर है दिलों के दरमियाँ किसलिए
चल सका ना दो कदम ना जो साथ मिलकर मेरे
होता है फिर दिल उसपर कुर्बान किसलिए
नफ़रत और अदावत की बू जिसमें घुली हो
फ़िज़ा में बाकी उस हवा का निशान किस लिए
संग दिल है जहाँ और बुत बना है खुदा
कहे किसी से अब दिल के अरमाँ किसलिए
बेबसों पर ज़ुल्म हों और हम खामोश रहे
खुदा ने बख्शी है हमें फिर ये ज़ुबान किस लिए
दे नहीं सकते खुलकर दाद गज़लों की अगर
पढ़ते हैं फिर बर्बाद के दीवान किस लिए
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰८
स्थान- दसवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰२, ८॰५, ७॰८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰१६६७
स्थान- दूसरा
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- उम्दा ग़ज़ल है।
कथ्य: ४/२॰५ शिल्प: ३/२॰५ भाषा: ३/२
कुल- ७
स्थान- तीसरा
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-कुछ शेर अच्छे बन पड़े हैं, एक प्रशंसनीय प्रयास।
कला पक्ष: ६॰१/१०
भाव पक्ष: ६॰५/१०
कुल योग: १२॰६/२०
पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छी ग़ज़ल है |
पसंद आयी |
बधाई
अवनीश तिवारी
"दे नहीं सकते खुलकर दाद गज़लों की अगर
पढ़ते हैं फिर बर्बाद के दीवान किस लिए"
बढिया है भाई ! गजल बहुत भाई.
गज़ल बहुत अच्छी है पर कहीं कहीं मात्रा दोष है ।
करता हूँ मै हाले दिल बयान किस लिए
होता नहीं कोई मुझपर मेहरबान किस लिए
यहाँ मुझपर के बजाय य़दि दो या कम शब्दों का लफ्ज़ हो तो गजल तरन्नुम नें गाना आसान होगा ।
होता नहीं कोई भी मेहरबान किस लिए
देहलवी जनाब ,दाद खुलकर देंगे आपके ग़ज़ल की ,क्या खूब लिखा है,वह वह.बधाई हो.
करता हूँ मै हाले दिल बयान किस लिए
होता नहीं कोई मुझपर मेहरबान किस लिए
ऒ कवि जी तुमहारी कल्पना बडी वॊ है। देखॊ मैं बताता हमं कि क्या परेशानी है। एक तॊ तुम बर्बाद हॊ दमजे कवि हॊ तॊ वॊ मेहरबान कैसे हॊगी।
हा हा। बर्बाद दीवान पे जाम छलकाऒ।
एक गिलास हमारे लिए भी मंगबाऒ।
बर्बाद देहलवी जी!
माफ़ी चाहूँगा मगर आपकी गज़ल (?) मुझे कुछ खास जमी नहीं. पूरी रचना में कुछ ऐसी खामियाँ नज़र आती हैं जिनके चलते यह एक अच्छी गज़ल बनते बनते रह जाती है. सभी अशआरों में बहर यकसाँ न रहने से रवानगी में भी दिक्कत है. कुछ शब्द-प्रयोग भी गलत प्रतीत होते हैं, जैसे ’ना लरज़िशे लब ना ज़ुबान हिल सकी’ में ’लरज़िशे’ का अर्थ कुछ समझ नहीं आता.
उम्मीद है कि आप मेरी बातों को अन्यथा न लेंगे और अगली बार हमें आपकी ज़ानिब से एक बहुत खुबसूरत गज़ल पढ़ने को मिलेगी.
बर्बाद साहब गजल तो खासी प्यारी लिख डाली आपने,अब मुबारकबाद के सिवा कुछ बचता ही नहीं,
आलोक सिंह "साहिल"
मात्रादोष रसास्वादन में बाधक बन रहा है।
दे नहीं सकते खुलकर दाद गज़लों की अगर
पढ़ते हैं फिर बर्बाद के दीवान किस लिए
बर्बाद साहब पढ़नेवाला अपनी राय दे सकता है और जरूरी नही कि वो दाद हो ही।
दे नहीं सकते खुलकर दाद गज़लों की अगर
पढ़ते हैं फिर बर्बाद के दीवान किस लिए"
बहुत अच्छी ग़ज़ल है |
बधाई
देहलवी जी ,
अजय जी से सहमत हूँ गजल बहुत अच्छी बन सकती थी बस थोडा सा शब्द-विन्यास इधर उधर करने की जरूरत लग रही है..
देहलवी जी यह ग़ज़ल साधारण लगी मगर दसवें स्थान पर आयी है तो कुछ ख़ास बात जरुर रही होगी.
**ख्याल अच्छे है.
[मुझे न जाने क्यों कहीं संतुलन और आकर्षण की कुछ कमी लग रही है.]
लिखते रहिये ,आप का लिखा आगे और भी पढ़ना चाहेंगे.
आप सभी कद्रदानों का तह-ए-दिल से शुक्रिया कि आपने अपना बेशकीमती वक्त मेरी इस रचना को पडने के लिये दिया,कुछ मित्रों ने सुधार हेतु कुछ सुझाव दिये है उन्का ध्यान रखुंगा और कोशिश करुंगा कि आगे और बेहतर रचना पेश करुं
ना लरज़िशे लब ना ज़ुबान हिल सकी
दिल-दिल में उठा है फिर ये तूफान किस लिए
बहुत अच्छी ग़ज़ल ...
बधाई
ग़ज़ल के न तेवर में नयापन है न ही कथ्य में, न ही व्याकरण दुरुस्त है। बर्बाद जी अभी आपको बहुत मेहनत करना है।
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