अन्धकार के भीतर अनुभव करती
एक शून्य का स्पर्श
कुम्हला जाता बदन...
उद्वेलित मन
एक छंद हीन रात के उल्लास को ...
जिसके उन्मुक्त संगीत से
रक्त का दिया जलने लगता है
ह्रदय के कक्ष में ...
फ़िर तेज गति से निकलती है
मेरी छाती के गव्हर से
बनकर वह दीर्घ निश्वास ...
धक्का दे -देकर तुमने समेट लिया था
मंत्रमुग्ध वसंत की संध्या में
फ़िर तृषित आत्मा को तृप्त किया
अपनी तीव्र आसक्ति से
बढ़ा दिया था ह्रुदगति !
वह तुम हो समुद्र !!.....
पर अब?
मन है दिशा हीन ....खोया...बहुत दिनों से
गिनती रही तुम्हारी हर तरंग को मैं
खोजती रही तुम्हारी आंखों के मौन संकेत
संजोये हुए सीपी के शरीर में ...
स्वप्न मेरे छिप गए
तुम्हारे अनंत बालुका राशि में
अपरिचित पदचिन्हों- सी ....
तुम्ही बोलो
ऎसी अनुभूतियों का ज्ञापन
किसे कैसे दूँ..........
सुनीता यादव
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुनीता जी,
छंद हीन रात, रक्त का दिया जैसे बिंब सुन्दर हैं।
स्वप्न मेरे छिप गए
तुम्हारे अनंत बालुका राशि में
अपरिचित पदचिन्हों- सी ....
अच्छी रचना।
फ़िर तृषित आत्मा को तृप्त किया
अपनी तीव्र आसक्ति से
बढ़ा दिया था ह्रुदगति !
वह तुम हो समुद्र !!.....
इसमे आसक्ति का तृप्ति का हेतु होना विस्मित करता है।
सुनीता जी
अद्भुत शिल्प और अनूठे बिम्बों के साथ यह रचना श्रृंगार की अतिरेकावस्था का प्रतिबिम्ब भी प्रतीत होती है. किस बात पर कहूँ कि वाह... ! वाह ..! अति सुंदर ...!!! समझ नहीं आता .. महिला बिहारी के युग्म आगमन पर ..... अस्तु ईश्वर आपकी लेखनी को और भी पोषित करे और आपकी संवेदनशीलता को और भी दृष्टिक्षेप .......
स्नेह शुभकामना
क्या कहूँ सुनीता जी... मुग्ध हो गया हूँ आपकी रचना पढ़कर.. सांग रूपक का इतना बढ़ुया प्रयोग वाह..!
"स्वप्न मेरे छिप गए
तुम्हारे अनंत बालुका राशि में
अपरिचित पदचिन्हों- सी ...."
कई बिंब तो असाधारण बन पड़े हैं जैसे की...
किसी एक पंक्ति की तारीफ करना ग़लत हो जाएगा.... संपूर्ण कविता अद्भुत बन पड़ी है बधाई..!
पर अब?
मन है दिशा हीन ....खोया...बहुत दिनों से
गिनती रही तुम्हारी हर तरंग को मैं
खोजती रही तुम्हारी आंखों के मौन संकेत
संजोये हुए सीपी के शरीर में ...
स्वप्न मेरे छिप गए
तुम्हारे अनंत बालुका राशि में
अपरिचित पदचिन्हों- सी ....
तुम्ही बोलो
ऎसी अनुभूतियों का ज्ञापन
किसे कैसे दूँ..........
लाजवाब कविता,हिला दिया आपने,सुनीता जी हिला दिया हमे,बधाई
अलोक संघ "साहिल"
एक छंद हीन रात के उल्लास को ...
जिसके उन्मुक्त संगीत से
रक्त का दिया जलने लगता है
ह्रदय के कक्ष में ...
संजोये हुए सीपी के शरीर में ...
स्वप्न मेरे छिप गए
तुम्हारे अनंत बालुका राशि में
अपरिचित पदचिन्हों- सी ....
सुनीता जी,
अद्भुत पंक्तियाँ रच डाली हैं आपने। आपकी लेखनी को नमन!
-विश्व दीपक ’तन्हा’
रचना बहुत ही प्रभावी बन पड़ी है. यद्यपि यह बात काव्य के सौन्दर्य को उद्घाटित नहीं कर सकती, पर सचमुच इस रचना की प्रशंसा के लिये मुझे शब्द नहीं मिल रहे.
तुम्ही बोलो
ऎसी अनुभूतियों का ज्ञापन
किसे कैसे दूँ..........
इतनी सुंदर कविता पढ़वाने के लिये आभार!
बहुत ही अच्छी कविता है...
भाव एकदम कसे हुए....
आपकी कविताएँ देखते ही पता चल जाता है कि ये आपकी ही हैं...ये कवि की खासियत है...आपके शब्दों का जादू है....
मन है दिशा हीन ....खोया...बहुत दिनों से
गिनती रही तुम्हारी हर तरंग को मैं
खोजती रही तुम्हारी आंखों के मौन संकेत
बहुत सुंदर सुनीता जी ..!!
स्वप्न मेरे छिप गए
तुम्हारे अनंत बालुका राशि में
अपरिचित पदचिन्हों- सी ...."
सुंदर कविता
Regards
सुनीता जी,
सुन्दर लिखा है...मैं ऊपर दी सभी टिप्पणियों से सहमत हूं :)
"एक शून्य का स्पर्श"
"एक छंद हीन रात"
"रक्त का दिया जलने लगता है"
"ह्रदय के कक्ष"
"छाती के गव्हर"
"सीपी के शरीर में"
रचना बेहतरीन है और आपकी प्रदत्त उपमाये अनुपमेय हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
वाह !
छंद हीन रात
वाह
फ़िर तेज गति से निकलती है
मेरी छाती के गव्हर से
बनकर वह दीर्घ निश्वास ...
बहुत सुंदर हैं भाव, तीव्र असाक्ति का....
पर अब?
मन है दिशा हीन ....खोया...बहुत दिनों से
गिनती रही तुम्हारी हर तरंग को मैं
खोजती रही तुम्हारी आंखों के मौन संकेत
बधाई ......
सुनीता जी एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई.
बहुत अच्छी रचना है बधाई
bakwas. ekdum bakwas.
संपूर्ण रचना अद्भुत ....
पर अब?
मन है दिशा हीन ....खोया...बहुत दिनों से
गिनती रही तुम्हारी हर तरंग को मैं
खोजती रही तुम्हारी आंखों के मौन संकेत
संजोये हुए सीपी के शरीर में ...
स्वप्न मेरे छिप गए
तुम्हारे अनंत बालुका राशि में
अपरिचित पदचिन्हों- सी ....
तुम्ही बोलो
ऎसी अनुभूतियों का ज्ञापन
किसे कैसे दूँ..........
अति सुंदर.....
बधाई |
बहुत सुंदर कविता। हालाँकि यह अनुभव मेरे पास नहीं, लेकिन कल्पना के पर लगाकर सभी नदियों में नहा आया हूँ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)