हिन्दी चिट्ठाकारों की जमात कुछ मामलों में बहुत ऊर्जावान दिखाई पड़ती है। पिछले १ वर्षों से दुनिया भर के कई कोनों में हिन्दी ब्लॉगरों ने बैठकें की है, जिनमें से अधिकतर बैठकों के पीछे मेलजोल को और आगे ले जाना ही रहा है। यद्यपि ऐसी बैठकों का भी खासा प्रभाव ब्लॉगिंग के प्रति रूझान बढ़ने पर देखा जा सकता है।
अख़बारों व पत्रिकाओं में हिन्दी ब्लॉग के लिए भी एक कोना तय हो जाने से तमाम पत्रकारों, लेखकों, विचारकों, फिल्ममेकरों में कीबोर्डीय हलचल बढ़ सी गई है। और बहुत खुशी की बात है कि आपसी मेल-मिलाप से आगे निकलकर ब्लॉगर्स इसके भविष्य को लेकर भी चिंतित हो गये हैं। बड़े पैमाने पर देखें तो इस तरह की बैठक अब तक तीन ही हुई हैं।
१४ जुलाई २००७ को मैथिली जी के आवास पर इस तरह की चर्चा हुई। दूसरी चर्चा अंग्रेज़ी और हिन्दी ब्लॉगरों के एक साथ १२ जनवरी २००८ को जमा होने पर हुई, जहाँ हिन्दी ब्लॉगरों का नेतृत्व किया मशहूर कवि अशोक चक्रधर ने।
तीसरी बड़ी और सफल ब्लॉगर मीट, कल यानी १३ फरवरी २००८ को २९, राजपुर रोड, सिविल लाइन्स, दिल्ली में हुई, जिसपर थोड़ी सी सामग्री आज के दैनिक भास्कर में है। कुछ आरोप-प्रत्यारोपों को नज़र अंदाज़ करें तो यह ब्लॉगर वैयक्तयिक चर्चाओं से ऊपर उठकर ब्लॉगिंग के बारे में हुई।
दैनिक-भास्कर ने जिन मुद्दों को छोड़ दिया है, वो मैं अपनी मार्फत जोड़ना चाहूँगा।
१॰ सुनील दीपक ने ब्लॉगिग से जुड़ने के पीछे अभिव्यक्ति के एक मंच खोजने की वकालत की।
२॰ मसिजीवी ने पाठक संख्या बढ़ाने को लेकर मुझसे और ब्लॉगवाणी के तकनीक प्रमुख सिरील से सुझाव माँगे।
३॰ अविनाश ने कहा कि मोहल्ला एक कम्न्यूनिटी ब्लॉग है इसलिए मुझे जब अपनी नोस्टालजिया में जाना होता है तो मैं दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन पर लिखता हूँ।
४॰ अमर उजाला के ऐसोसिएट एडीटरअरूण आदित्य ने ब्लॉग की शक्ति इस तरह से बसारी कि अब वो अपने अखबार में ब्लॉग से कंटेंट उठाकर प्रकाशित करने लगे हैं, हालाँकि उसी समय गाहे-बगाहे के विनीत कुमार ने उनका विरोध किया कि आपने वहाँ भी नामी लेखकों (अरूण कमल, उदय प्रकाश आदि) की प्रतिक्रियाएँ प्रकाशित की है।,
५॰ बहुत से लोग मौन रहें जिनसे विशेषरूप से बोलने का आग्रह किया गया।
६॰ इरफान और आकाशवाणी के मुनीश ने ब्लॉगिंग को सकारात्मक टूल की तरह इस्तेमाल किए जाने इर बल दिया।
७॰ नोटपैड ने उद्देश्यपरक ब्लॉगों की अहमियत पर ज़ोर दिया
८॰ सराय के राकेश सिंह ने इस तरह के आयोजनों की निरंतरता पर ज़ोर दिया
इस तरह की मासिक मीट आवश्यक सी लगती है।
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
जी हाँ ! सराय में कल हुई ब्लॉगर संगत जरूरी सी लगती है । केवल ब्लॉग के माध्यम से होने वाले सम्पर्क में चाहे जितना करीब आ लें पर वह मिलना आभासीय (वर्चुअल) सा ही होता है । साक्षात् मिलने की तो बात ही अलग है जिसकी जगह वर्चुअल मुलाकात नहीं ले सकती । इस संगत के दूरगामी सकारात्मक परिणाम आएँगे जैसाकि आप कह ही चुके हैं कि संगत काफ़ी सफल रही । शुभकामनाएँ देते हैं कि आगे भी इससे भी अच्छी और महत्त्वपूर्ण संगतें सफलता पूर्वक होती रहें ।
शैलेश जी मुझे भी मासिक मिलन आवश्यक सा लगता है. आपने इसकी रपट बहुत अच्छी तरह लिखी है.
कार्यदिवस होने के कारण इस मिलन में शामिल नहीं हो पाया इसका अफ़सोस है.. ऐसे मिलन होते रहें तो शायद हम एक दूसरे को बेहतर जान सकेंगे और ब्लागिगं व ब्लागर्स के लिये एक सामूहिक मंच तैयार कर पाने में सफ़ल होंगे.
अच्छी कवरेज....लेकिन मेरा नाम तो आप भूल गए बन्धुवर... :-(
सच है ,हिन्दी ब्लोगरों की बैठकें होती रहनी चाहिये.
आप की रिपोर्ट से इन गति विधियों की जानकारी हुई.
धन्यवाद.
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