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Tuesday, February 26, 2008

शबनम-ए-हयात





उन्हें चाहत तो है मुझसे, ऐतबार नहीं है
होगी हासिल ये मंजिल, उस्तुवार नहीं है

वो जब चाहें पलट जायें अपनी जुबान से
हमको मगर इतना भी, इख्तियार नही है

सब्र तलबी कब तक जमाने तू ही बता दे
सब कुछ तो है बस सिर्फ़, करार नहीं है

वाकिफ़ हूं खूब मैं उन कलियों के दर्द से
आई हिस्से में जिनके कोई, बहार नहीं है

शबनम-ए-हयात खो जायेगी धुआं बन के
ये इल्तजा-ए-दिल है कोई, गुब्बार नहीं है
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चाहत = प्यार, ऐतबार = भरोसा, उस्तुवार = पक्का भरोसा
जुबान =बातों, इख्तियार = कब्जा या कंट्रोल,
सब्र-तलबी = मन मारना
करार = चैन, वाकिफ़ = जानकारी,
शबनम-ए-हयात = ओस सी जिन्दगी,
इल्तजा-ए-दिल = दिल की याचना
गुब्बार = हवा में उडती हुई धूल

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सब्र तलबी कब तक जमाने तू ही बता दे
सब कुछ तो है बस सिर्फ़, करार नहीं है

बहुत खूब ....

वाकिफ़ हूं खूब मैं उन कलियों के दर्द से
आई हिस्से में जिनके कोई, बहार नहीं है

अतिसुन्दर..बहुत पसन्द आई आपकी यह गजल मोहिंदर जी ..इसको अपनी आवाज़ दे और भी खूबसूरत लगेगी !!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

शबनम-ए-हयात खो जायेगी धुआं बन के
ये इल्तजा-ए-दिल है कोई, गुब्बार नहीं है

गज़ल तो अच्छी है ही साथ में उर्दू की कोचिंग भी आपने खूब दी है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी गजल,चौथा और पांचवां शेर विशेष पसंद आया,
आलोक सिंह "साहिल"

Udan Tashtari का कहना है कि -

वाह वाह...क्या बात है मोहिन्दर भाई.

Sunny Chanchlani का कहना है कि -

kabile-tareef

Anonymous का कहना है कि -

सब्र तलबी कब तक जमाने तू ही बता दे
सब कुछ तो है बस सिर्फ़, करार नहीं है

वाह॒! वाह! बहुत ही उम्दा गज़ल है मुबारक हो मोहिंदर जी

mehek का कहना है कि -

शबनम-ए-हयात खो जायेगी धुआं बन के
ये इल्तजा-ए-दिल है कोई, गुब्बार नहीं है
बहुत बढ़िया

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर |


जो साथ मी छायाचित्र है बहुत ही रोचक है |
अवनीश तिवारी

Alpana Verma का कहना है कि -

'सब्र तलबी कब तक जमाने तू ही बता दे
सब कुछ तो है बस सिर्फ़, करार नहीं है'

बहुत खूब!

साथ दिया चित्र भी अच्छा है.

Harihar का कहना है कि -

उन्हें चाहत तो है मुझसे, ऐतबार नहीं है
होगी हासिल ये मंजिल, उस्तुवार नहीं है

बहुत खूब मोहिन्दर भाई

seema gupta का कहना है कि -

वाकिफ़ हूं खूब मैं उन कलियों के दर्द से
आई हिस्से में जिनके कोई, बहार नहीं है
बहुत खूब, अच्छी गजल.
Regards

Sajeev का कहना है कि -

वो जब चाहें पलट जायें अपनी जुबान से
हमको मगर इतना भी, इख्तियार नही है

सब्र तलबी कब तक जमाने तू ही बता दे
सब कुछ तो है बस सिर्फ़, करार नहीं है

वाकिफ़ हूं खूब मैं उन कलियों के दर्द से
आई हिस्से में जिनके कोई, बहार नहीं है

वाह मोहिंदर जी वाह, सभी एक से बढ़कर एक उन्दा शेर कहे हैं आपने

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

वो जब चाहें पलट जायें अपनी जुबान से
हमको मगर इतना भी, इख्तियार नही है !
वाकिफ़ हूं खूब मैं उन कलियों के दर्द से
आई हिस्से में जिनके कोई, बहार नहीं है !!

इरशाद ! माशा अल्लाह !!
रुमानियत के साथ दर्द का सुंदर मिश्रण !!

RAVI KANT का कहना है कि -

सब्र तलबी कब तक जमाने तू ही बता दे
सब कुछ तो है बस सिर्फ़, करार नहीं है

सुन्दर प्रस्तुति।

शोभा का कहना है कि -

मोहिंदर जी
सुंदर ग़ज़ल लिखी है-
वाकिफ़ हूं खूब मैं उन कलियों के दर्द से
आई हिस्से में जिनके कोई, बहार नहीं है
अति सुंदर .

गीता पंडित का कहना है कि -

शबनम-ए-हयात खो जायेगी धुआं बन के
ये इल्तजा-ए-दिल है कोई, गुब्बार नहीं है

बहुत खूब ....

शुभ-कामनाएं |

सस्नेह
गीता पंडित

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

मार डाला, मार डाला....

तेरी लेखनी ने ये क्या लिख दिया है
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है....

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

सब्र तलबी कब तक जमाने तू ही बता दे
सब कुछ तो है बस सिर्फ़, करार नहीं है
बहुत खूब !
सुनीता यादव

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