इक बार मुड़ के देख ले
किसी को तुझसे प्यार है
किसी को इन्तज़ार है
इक निगाह का सवाल है
बस तेरा ही ख्याल है
इक बार मुड़ के देख ले
इक बार मुड़ के देख ले
सफ़र की तल्लखियां भुला
शम्मा आस की जला
खडा है कोई मोड पर
नजरें राह में बिछा
इक बार मुड़ के देख ले
इक बार मुड़ के देख ले
बस इतनी सी अर्ज है
निभा, दोस्ती का फ़र्ज है
जाने फ़िर मिलें न मिलें
अगर आज जुदा राह है
इक बार मुड़ के देख ले
इक बार मुड़ के देख ले
ख्वाबों को पलकों में लिये
टिमटिमा रहे हैं कुछ दीये
बेकाबू हुई दिल की धडकने
बसा के आरजू बेशुमार ये
इक बार मुड़ के देख ले
इक बार मुड़ के देख ले
मंजिलों को तलाशता
है रुका हुआ एक रास्ता
बन हमसफ़र मेरी हमनशीं
हो सफ़र मेरा भी दिलकशीं
इक बार मुड़ के देख ले
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
22 कविताप्रेमियों का कहना है :
इक बार मुड के देख ले
सफ़र की तल्लखियां भुला
शम्मा आस की जला
खडा है कोई मोड पर
नजरें राह में बिछा
इक बार मुड के देख ले
सुंदर गीत सुंदर भाव से सजा हुआ ..बहुत पसन्द आया .बधाई मोहिंदर जी !!
बहुत सुंदर बधाई
ये लिखना भूल गए की जितनी खूबसूरत kavita hai saath juda chitra bhi utna hi khubsurat hai.
’इक बार मुड़ के देख ले’ मगर यहाँ तो सब देखा हुआ लग रहा है. मोहिन्दर जी! पूरी रचना कहीं भी पाठक को बाँध नहीं पाती. प्रयुक्त सारे प्रतीक और बिंब पुराने हो चुके हैं. लयबद्धता के लिये कई भर्ती के शब्दों का प्रयोग खटकता है.
आशा है कि अगली बार फिर आप अपनी पुरानी रंगत में नज़र आयेंगे!
मोहिन्दर जी, अजय जी से सहमत हुँ। आपकी अन्य रचनाओं से कमजोर है यह।
इक बार मुड के देख ले
सफ़र की तल्लखियां भुला
शम्मा आस की जला
खडा है कोई मोड पर
नजरें राह में बिछा
इक बार मुड के देख ले
सुंदर गीत .बधाई
इक बार मुड के देख ले
सफ़र की तल्लखियां भुला
इक बार मुड के देख ले
मंजिलों को तलाशता
है रुका हुआ एक रास्ता
गाये जाने पर इसे सुनने का अलग अनुभव होगा। अच्छी रचना..
*** राजीव रंजन प्रसाद
madhur geet....
आपकी अन्य कविताओं व रचनाओं के तुलनात्मक दृष्टिकोण से तो लेखनी कमतर प्रतीत हुई परंतु गायन के साथ देखा जाये तो मधुर गीत बनेगा..
अन्य से थोडा हटकर है..
मोहिन्दर जी
दिल के भाव सुन्दर रूप में व्यक्त हुए हैं ।
इक बार मुड के देख ले
सफ़र की तल्लखियां भुला
शम्मा आस की जला
खडा है कोई मोड पर
नजरें राह में बिछा
इक बार मुड के देख ले
बधाई
मोहिंदर जी इक बार मुद के देखने की तमन्ना तो हमारी भी थी,पर नयापन नही लगा तो चाह कर भी नही देख पाए,कविता सुंदर बन पड़ी है पर पाठक अब नए उपमान तलाशता है और खासकर आप जैसे लोगो से तो हक़ बनता है,सुंदर गीत के लिए बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"
एक बेहतरीन गीत देने के लिये बधाई. आनन्द आ गया.
रचना मे उतार - चढाव होता रहता है |
यह रचना विशेष तो नही लेकिन भाव तो अच्छे हैं ही |
इसके लिए बधाई |
अवनीश तिवारी
यह अगर फ़िल्मी गीत बने तो बहुत प्यारा गाना बनेगा। एलबम के लिए बहुत अच्छा गाना है।
मोहिंदर जी !
मैं भी गौरव जी से सहमत हूँ. इस बार सजीव जी की टीम को कोई और कारण नहीं मिलना चाहिए इस गीत को लेकर
इक बार मेरे पास आ ,
इक बार तो ये एहसान कर ,
मेरी तड़पती निगाह को ,
अपनी इक झलक तो दे ,
जो मै न देख पाऊ तुझे कभी ,
इक बार तू ही मुड़कर देख ले ....
आपकी इस प्यारी सी रचना को पढ़कर मेरे दिल से कुछ यही शब्द निकले हैं ....बहुत खूब
जालिम की कल्पना :-
कवि कल्पना कर रहा है मगर पीछे से .....वोः बुलाना चाहता है किसी को की जरा पीछे मुड़ कर देख.... परन्तु कवि कल्पना के सगर में डूब चूका है...
कवि महोदय जरा जोर से उसका नाम पुकारिये वो जरूर पीछे पलटेगा/पलटेगी
हा हा ..या उसके आगे खडे हो जाओ जी
सच में एक बढिया गीत बन पड़ा है। सजीव जी को इसपर नज़र डालनी चाहिए।
मोहिन्दर जी!
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
सुंदर भाव, अच्छे शब्द बढिया रचना....
नीरज
mohindar ji
achchi kavita
इक बार मुड के देख ले
सफ़र की तल्लखियां भुला
शम्मा आस की जला
खडा है कोई मोड पर
नजरें राह में बिछा
इक बार मुड के देख ले
सुंदर गीत
बधाई
स-स्नेह
गीता पंडित
शिल्प बहुत कमज़ोर है
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)