दसवें स्थान के कवि 'बर्बाद देहलवी' ने अपना परिचय व चित्र अभी तक नहीं भेजा है। इसलिए हम ग्याहरवीं कविता प्रकाशित कर रहे हैं। इस स्थान के कवि सुनील प्रताप सिंह कई माह से इस प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- ख़ालीपन
टूट गयी है जिसकी डोरी ,मन वो पतंग उड़ाता है
वादियाँ सब सुन लेती हैं ,जो ये दीवाना गाता है
इन पर्वतों के वीरानों से........कैसा अपना नाता है
कि ये ख़ालीपन रह-रह कर तेरी याद दिलाता है
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जब देखूँ तस्वीर तुम्हारी दिल में कुछ हो जाता है
आँखों में हाँ रंग तुम्हारे मन कहीं खो........जाता है
जागती रहतीं हैं रातें और दिन जैसे सो जाता है
कि ये ख़ालीपन रह-रह कर तेरी याद दिलाता है
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भुलाना चाहूँ जो तुझको कुछ याद मुझे आजाता है
ये सन्नाटा भी जैसे हरदम तेरी आवाज़ सुनाता है
तू नहीं है फिर क्यूँ ये दर्पण तेरी छवि दिखाता है
कि ये ख़ालीपन रह-रह कर तेरी याद दिलाता है
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यूँ तो दीवाना महफिलों में ,फूलों सा मुस्काता है
पर तुम उससे पूछ न लेना वो जो दर्द छुपाता है
तन्हा रातों में आखों से कितने अश्क बहाता है
कि ये ख़ालीपन रह-रह कर तेरी याद दिलाता है
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८
स्थान- सातवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰९, ५॰४, ८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰४३३३३
स्थान- छठवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- भीड़ को आकर्षित करने वाली कविता।
कथ्य: ४/२॰५ शिल्प: ३/२ भाषा: ३//१॰५
कुल- ६
स्थान- पाँचवाँ
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी- गीत की रवानगी पर कवि काम करे तो इस विधा को साध सकता है। रचना यद्यपि बहुत प्रभाव छोड़ने अथवा गहरे उतरने में सक्षम तो नहीं है, तथापि मनोभावों का सुन्दर चित्रण अवश्य है।
कला पक्ष: ६/१०
भाव पक्ष: ६॰५/१०
कुल योग: १२॰५/२०
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
यूँ तो दीवाना महफिलों में ,फूलों सा मुस्काता है
पर तुम उससे पूछ न लेना वो जो दर्द छुपाता है
तन्हा रातों में आखों से कितने अश्क बहाता है
कि ये ख़ालीपन रह-रह कर तेरी याद दिलाता है
काफ़ी संभावनाएँ हैं कवि में।
बहुत मार्मिक,बधाई
तन्हा रातों में आखों से कितने अश्क बहाता है
कि ये ख़ालीपन रह-रह कर तेरी याद दिलाता है
--- सुंदर पंक्तियाँ
जब देखूँ तस्वीर तुम्हारी दिल में कुछ हो जाता है
आँखों में हाँ रंग तुम्हारे मन कहीं खो........जाता है
जागती रहतीं हैं रातें और दिन जैसे सो जाता है
कि ये ख़ालीपन रह-रह कर तेरी याद दिलाता है
" वाह खालीपन की सुंदर व्याख्या "
Regards
सुनील जी आपने मेरे खालीपन के जख्म को कुरेद दिया,बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.मुबारक हो
आलोक सिंह "साहिल"
भुलाना चाहूँ जो तुझको कुछ याद मुझे आजाता है
ये सन्नाटा भी जैसे हरदम तेरी आवाज़ सुनाता है
तू नहीं है फिर क्यूँ ये दर्पण तेरी छवि दिखाता है
कि ये ख़ालीपन रह-रह कर तेरी याद दिलाता है
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यूँ तो दीवाना महफिलों में ,फूलों सा मुस्काता है
पर तुम उससे पूछ न लेना वो जो दर्द छुपाता है
तन्हा रातों में आखों से कितने अश्क बहाता है
कि ये ख़ालीपन रह-रह कर तेरी याद दिलाता है
बहुत अच्छे.....
सुनील जी,
मैंने आज तक आपकी ऐसी कोई कविता नहीं पढ़ी जो कुमार विश्वास की किसी कविता से प्रभावित न हो। शब्दों को बदल दें तो आपकी कविता कुमार विश्वास की कविता बन जायेगी।
कविता में नयापन नहीं लगा लेकिन फ़िर भी भोली भली सी रचना लगी.
लिखते रहिये.
शुभकामनाएं.
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