विश्च पुस्तक मेला बाइट्स-१
(हिन्द-युग्म का विश्व पुस्तक मेला २००८ में आबंटित स्टैंड)
२ फरवरी २००८ को विश्व पुस्तक मेला में ही बहुत कम भीड़ थी। जबकि वाणी प्रकाशन, राजकमल प्रकाशन, गीताप्रेस, गोरखपुर पर ही पाठक नहीं थे फिर हिन्द-युग्म जैसे छोटे व नये लोगों के स्टैंड पर कौन आता!
हमारी पूरी टीम इस मेले के लिए नई थी। इससे पहले बहुत से सदस्य विश्व पुस्तक मेले ज़रूर जाते रहे थे मगर स्टैंड लगाने जैसी बात बिलकुल नई बात थी। हिन्द-युग्म के सभी सदस्यों को ऐसा लग रहा था कि शायद हमें 1X1 वर्ग मीटर का बंद स्टैंड मिलेगा जैसा कि स्टॉल वालों को 3X3 वर्ग मीटर का बंद क्षेत्रफल मिलता है।
(स्टैंड के पास चमक रहा 'पहला सुर' का बैनर)
हिन्द-युग्म के मनीष वंदेमातरम और शैलेश भारतवासी जब आबंटित स्थान पर पहुँचे तो बहुत निराशा हुई क्योंकि वो एक खुली जगह में था जिसे कम से कम १ वर्ग मीटर का नहीं कहा जा सकता। ऊपर से हिन्द-युग्म (और ४ स्टैंड को साथ ऐसे स्थान पर बनाये गये थे जो बहुत सँकरी जगह में था)। फिर मोहिन्दर कुमार, रंजना भाटिया, निखिल आनंद गिरि,गौरव सोलंकी और आलोक सिंह साहिल ने समझाया कि करना तो यहीं है, जब लकी ड्रा से यही मिला तो यही सही। उस दिन शाम तक हिन्द-युग्म इसी फ़िराक में था कि कोई ठीक सी जगह मिल जाय। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
(हिन्द-युग्म का काव्यात्मक परिचय जिसे हमने आस-पास की खाली दीवारों पर चिपकाया)
उस दिन मुश्किल से ४०-५० लोगों का हमारी स्टैंड पर आना हुआ। कई लोगों ने कहा कि कविता-कहानी से लोगों का रूझान खत्म हो रहा है, आपके स्टैंड पर कौन आयेगा? ब्लॉगिंग से क्या फायदा है?
लेकिन नहीं, अगले ही दिन जब हिन्द-युग्म के म्यूजिक एल्बम 'पहला सुर' का विमोचन हुआ तो अचानक हिन्द-युग्म के स्टैंड पर लोगों का आना-जाना बढ़ गया। लोग हिन्दी टाइपिंग और ब्लॉग बनाना जैसे वहीं सीख लेने को उत्सुक हो गये। उसी दिन आसपास के २ स्टैंड वालों ने अपने स्टैंडों को कहीं और शिफ्ट करा लिया तो हिन्द-युग्म के पास ३ स्टैंडों की जगह हो गई। जगह भी खूब और हमारे कार्यकर्ता भी कई सारे। लुधियाना से आये दैनिक भास्कर के रिपोर्टर और हिन्द-युग्म प्रेमी जगदीप 'दीप' भी हमारी टीम में शामिल हो गये और टीम के उत्साह हो दुगुना कर दिया।
रविवार ३ फरवरी को हिन्द-युग्म के २० से अधिक कार्यकर्ता मेले में थे। भूपेन्द्र राघव, अवनीश गौतम, सुनीता चोटिया, शोभा महेन्द्रू , दिवाकर मणि, तपन शर्मा, प्रभाकर सिंह, मनुज मेहता,सुनील डोगरा 'ज़ालिम' और उनकी पत्नी इत्यादि ने घूम-घूमकर हिन्द-युग्म का प्रचार किया।
इस दिन से हिन्द-युग्म के छोटे से स्टैंड पर कुछ प्रसिद्ध प्रकाशकों के स्टॉलों को छोड़कर किसी भी स्टॉल से अधिक भीड़ लगने लगी। ९ और १० फरवरी को तो यह हालत हो गई कि लोगों को हिन्द-युग्म का 'इंटरनेट और हिन्दी' पर सर्वेक्षण फॉर्म भरने के लिए पंक्तिबद्ध होना पड़ा।
(हिन्द-युग्म के बारे में जानती और सर्वेक्षण पत्र भरती लोगों की भीड़)
१० फरवरी को मेले के समापन से पहले की एक तस्वीर आप भी देखें।
(समापन के बाद खुशियाँ मनाती हमारी टीम के कुछ सदस्य)
(आसपास की दीवारों पर चमकती हिन्द-युग्म की कविताएँ)
(क्षणिकाओं का संसार वहाँ भी था, लोगों ने खूब सराहा)
(सफल आयोजन की खुशी वहाँ मौज़ूद सभी सदस्यों के चेहरे पर थी)
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छी ख़बर .
बधाई !बधाई! बधाई!!
मन से किया काम सफल होता है.
हिंद युग्म से जुड़ने के गौरव से मन अभिभूत हो गया |
बहुत अच्छा लगा ये पढ़कर के हिन्दयुग्म को लोगोने इतना पसंद किया.बहुत बधाई.
हिप हिप हुर्रे..ऐसे ही दस लेख छापें....
वाह क्या बात है!!! मज़ा आ गया !
हम सब की एक छोटी सी कोशिश कामयाब हुई अभी बहुत आगे जाना है .वहाँ लिए यह चित्र ख़ुद एक कहानी कहते हैं कुछ चित्र और खबर यहाँ देखे
http://ranjanabhatia.blogspot.com/2008/02/blog-post_16.html
मज़ा आ गया सच में... :)
सच में, हिन्दी प्रेमियों ने हमें जिस तरह से अपने सर-आँखों पर बिठाया हम गदगद हो गये और हमें हौसला भी मिला।
इस बार के पुस्तक मेले से मैंने जो सबसे बड़ा उपहार पाया, वह ’हिन्दयुग्म परिवार के अधिकांश लोगों से मिलना’ रहा.
हिन्दयुग्म के आधारस्तंभ भारतवासीजी, सजीव जी, निखिलजी, गौरव, रंजना जी, आलोक’साहिल’, वंदेमातरम जी इत्यादि को बहुत बहुत धन्यवाद, जिन्होंने अपने अथक परिश्रम से ’हिन्दयुग्म’ को एक नये क्षितिज पर पहुँचाया है.
हें....मुझे पता ही नहीं था कि "जालिम" शादीशुदा हैं.भाई, देर से ही सही शुभकामना प्रेषित कर रहा हूँ.
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