फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, February 08, 2008

हरिहर झा को यंत्रणा क्यों?


छठवीं स्थान की कविता 'यंत्रणा क्यों' कवि हरिहर झा द्वारा लिखित है। हरिहर झा हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम यूनिपाठक प्रतियोगिता में पिछले ७-८ महीनों से भाग ले रहे हैं और हर बार ही इनकी कविता टॉप २० में रहती है। इस माह के अंत से हरिहर जी हिन्द-युग्म के स्थाई कवि के रूप में अपनी सेवाएँ देंगे।

पुरस्कृत कविता- यंत्रणा क्यों

रो पड़ा सुन कर कहानी गहन यह संवेदना
दिल नहीं पत्थर हो वे ना समझ सकते वेदना

भेद खुलवाने को शठ का निहत्थे पर वार हो
यन्त्रणा देता कसाई भोंक रहा कटार हो
पिघलता लोहा जब दिल में मशीनी हथियार हो
बरसता बन दर्द बिजली आग की बौछार हो

दिल को ठंडक दे सकूँ कुछ भी करते ना बना
चोंट तुझको रो पड़ा मैं गहन यह संवेदना

रेंगते कीड़ों का आतंक बस गये हैं घाव में
मनोरंजन कर रहे मवाद पीते चाव में
खून ज्यों लावा पिघलता अस्थि मज्जा जल रहे
वायरस उन्माद के धर्मान्धता के पल रहे

लहू के आंसू छलकते जीभ खुलना है मना
चोंट तुझको रो पड़ा मैं गहन यह संवेदना

हे विधाता यन्त्रणा क्यों ? बस यही मलाल है
दिया क्यों शरीर? सारे दर्द की जंजाल है
मनोवृत्ति परपीड़क शैतान की ही चाल है
मौत से बदतर हुआ इस ज़िन्दगी का हाल है

बस करो पिशाच मानवता के उर को छेदना
चोट तुझको रो पड़ा मैं गहन यह संवेदना


निर्णायकों की नज़र में-


प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰२
स्थान- छब्बीसवाँ


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰८, ७, ७॰२ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰६६७
स्थान- नौवाँ


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कोमल शब्दों की कमी दिखती है।
कथ्य: ४/२ शिल्प: ३/२ भाषा: ३/१॰५
कुल- ५॰५
स्थान- नौवाँ


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
प्रवाह अच्छा है किंतु शब्दचयन के कारण कवि स्पष्टता से अपनी बात नहीं रख सका। कई बिम्ब बेहद सशक्त हैं।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५/२०


पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

10 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

रो पड़ा सुन कर कहानी गहन यह संवेदना
दिल नहीं पत्थर हो वे ना समझ सकते वेदना
हरिहर झा जी " यंत्रणा क्यों" मे जो यंत्रणा का जीवंत
और मार्मिक चित्रण आपने किया है वो देखते ही बनता है . बहुत बहुत बधाई इतनी सुंदर रचना के लिए.
Regards

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बड़ा ही सुन्दर सृजन किया है झा जी...

लहू के आंसू छलकते जीभ खुलना है मना
चोंट तुझको रो पड़ा मैं गहन यह संवेदना

हे विधाता यन्त्रणा क्यों ? बस यही मलाल है
दिया क्यों शरीर? सारे दर्द की जंजाल है
मनोवृत्ति परपीड़क शैतान की ही चाल है
मौत से बदतर हुआ इस ज़िन्दगी का हाल है

बस करो पिशाच मानवता के उर को छेदना
चोट तुझको रो पड़ा मैं गहन यह संवेदना

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत सुंदर |
क्या संवेदना है, क्या वेदना है |

सुंदर शिकायत की है विधाता से |

अवनीश तिवारी

शोभा का कहना है कि -

हरिहर जी
आपकी कविता हमेशा ही प्रभावी होती है । इस बार फिर आपने दिल को छूने वाली कविता लिखी है -
बस करो पिशाच मानवता के उर को छेदना
चोट तुझको रो पड़ा मैं गहन यह संवेदना
बधाई

mehek का कहना है कि -

बहुत सवेदनशील सवेदना है,बधाई

RAVI KANT का कहना है कि -

हरिहर जी, आपकी संवेदना काबिलेतारीफ़ है।

बस करो पिशाच मानवता के उर को छेदना
चोट तुझको रो पड़ा मैं गहन यह संवेदना

गीता पंडित का कहना है कि -

सुंदर रचना .....

यंत्रणा का जीवंत चित्रण....


हरिहर जी !
बहुत बहुत बधाई |

Alpana Verma का कहना है कि -

आप की पिछली कविताओं की तरह यह कविता भी अपने आप में सम्पूरण है.
भावों का सफल चित्रण भावो को भी विचलित कर गया फ़िर विधाता ने भी जरुर आंसूं छलकाए होंगे---एक बेहतरीन रचना-

Anonymous का कहना है कि -

हरिहर जी बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

यह कविता गीत की शैली में लिखी गई है, उस हिसाब से बहुत कमज़ोर है इसका शिल्प। शेष यही कहूँगा कि बोलचाल के ही शब्द इस्तेमाल करने की कोशिश करें।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)